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श्रावण मास कैसे करें सावन सोमवार की पूजा, जानिए

Neemuch headlines July 25, 2021, 8:05 am Technology

इस बार श्रावण माह का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 जुलाई 2021 रविवार यानी आज है और 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार रहेगा। 22 अगस्त रविवार रक्षा बंधन के दिन श्रावण मास समाप्त हो जाएगा।

आओ जानते हैं कि किस तरह करें सावन सोमवार की पूजा। :-

पूजा के 5 प्रकार में से एक है इज्या। उपचारों के द्वारा अपने आराध्य देव की पूजा करना 'इज्या' के अंतर्गत आती है।

पूजन के 16 उपचार होते हैं जैसे:-

1. पांच उपचार,

2. दस उपचार,

3. सोलह उपचार।

1. पांच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।

2. दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।

3. सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।

सावन सोमवार की पूजा :-

1. सावन सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है।

2. सोमवार के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।

3. उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनका जलाभिषेक करें।

4. फिर शिवलिंग पर दूध, फूल, धतूरा आदि चढ़ाएं। मंत्रोच्चार सहित शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियां चढ़ाएं। माता पार्वती जी को सोलह श्रृंगार की चीजें चढ़ाएं

5. इसके बाद उनके समक्ष धूप, तिल के तेल का दीप और अगरबत्ती जलाएं।

6. इसके बाद ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।

7. पूजा के अंत में शिव चालीसा और शिव आरती का पाठ करें।

8. पूजा समाप्त होते ही प्रसाद का वितरण करें।

9. शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है।

10. व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।

11. दिन में दो बार (सुबह और सायं) भगवान शिव की प्रार्थना करें।

12. संध्याकाल में पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें और सामान्य भोजन करें।

पूजा का कॉमन तरीका :-

1. पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो भगवान का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करते हैं।

2. नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने ईष्ट देव या जिसका भी पूजन कर रहे हैं उन देव या भगवान की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।

3. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।

4. फिर देवताओं के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।

5. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।

6. अंत में आरती करें। जिस भी देवी या देवता के तीज त्योहार पर या नित्य उनकी पूजा की जा रही है तो अंत में उनकी आरती करने नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।

7. घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित ही करता है अत: आप ऑनलाइन भी किसी पंडित की मदद से विशेष पूजा कर सकते हैं। विशेष पूजन पंडित की मदद से ही करवाने चाहिए, ताकि पूजा विधिवत हो सके।

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