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बसंत पंचमी पर इस मंत्र से प्रसन्न करें देवी सरस्वती को, जानें सरस्वती पूजा का महत्व और मुहूर्त

Neemuch Headlines February 16, 2021, 7:59 am Technology

मां सरस्वती को विद्या की देवी का दर्जा दिया जाता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार 16 फरवरी 2021 को बसंत पंचमी मनाई जा रही है। विद्वान मानते हैं कि विधिपूर्वक इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से भक्तों को देवी मां की कृपा से बुद्धि और विद्या का वरदान प्राप्त होता है।

आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी खास बातें:-

पूजा का मुहूर्त:-

पंचमी तिथि आरंभ – सुबह 3 बजकर 36 मिनट से

मध्याह्न काल – दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक

सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक

कुल अवधि – 5 घंटे 37 मिनट

पंचमी तिथि समाप्त – फरवरी 17, 2021 को सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर

बसंत पंचमी का महत्व:-

ये पर्व बसंत मौसम की शुरुआत का सूचक है, पूरे दिन अबूझ मुहूर्त रहेगा। इसका अर्थ है कि बसंत पंचमी का दिन बेहद शुभ होता है और इस दिन किसी भी नए कार्य की शुरुआत की जा सकती है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस दिन लोग बगैर पंचांग देखे दिन भर में कभी भी अपने कार्य को पूरा कर सकते हैं। वहीं, कई लोग इस दिन परिवार में छोटे बच्चों को पहली बार किताब और कलम पकड़ाने का भी विधान है।

क्या है पूजा विधि:-

इस दिन केवल घरों में ही नहीं, शिक्षण संस्थानों में भी मां सरस्वती की पूजा आयोजित की जाती है। सुबह जल्दी उठकर नहा-धो लें और पूजा घर की साफ-सफाई करें। फिर मां सरस्वती की पूजा करें और उन्हें पुष्प अर्पित करें। उनके मंत्रों का जाप करें। इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना बेहतर होगा। इस दिन पीला रंग का कुछ मीठा पकवान बनाएं। खासकर पीले चावल खाने को इस दिन उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा, इस दिन वाद्य यंत्रों और किताबों की पूजा करने का भी विधान है।

देवी सरस्वती के मंत्र:-

श्लोक – ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।

कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्। वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।

रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्। सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।

वन्दे भक्तया वन्दिता च

वंदना :-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

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