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युग पुरुष युवाओ के प्रणेता महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर विशेष

Neemuch Headlines January 12, 2021, 8:44 am Technology

12 जनवरी यानी मंगलवार को देश के महान दार्शनिक और विश्व में भारत के अध्यात्म का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद की जयंती है। यह दिन पूरे देश में युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके विचार और जीवन हमारे लिए प्रेरणादायी हैं। विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में 1893 में विश्व धर्म महासभा में देश के सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। उनकी याद में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। यह आज देशभर में काम कर रहा है।

विवेकानंद जयंती के मौके पर आइये जानते हैं उनसे जुड़ी 10 प्रमुख बातें :-

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त हाईकोर्ट के वकील थे। मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली थीं।

नरेंद्र नाथ 1871 में आठ साल की उम्र में स्कूल गए। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान पाया।

वह 25 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे। संन्यास के बाद इनका नाम विवेकानंद रखा गया। गुरु रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद की मुलाकात 1881 कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी। परमहंस ने उन्हें मंत्र दिया सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना ही सेवा है।

विवेकानंद जब रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने सबसे अहम सवाल किया 'क्या आपने ईश्वर को देखा है?' इस पर परमहंस ने जवाब दिया- 'हां मैंने देखा है, मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं, जितना कि तुम्हें देख सकता हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं'। शिकागो धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानंद ने 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' कहकर भाषण शुरू किया तो दो मिनट तक सभागार में तालियां बजती रहीं। 11 सितंबर 1893 का यह दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।

विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन यानी 12 जनवरी को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। यह शुरुआत 1985 से हुई।

विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी। यह पता चलने पर उन्होंने कह दिया था- 'ये बीमारियां मुझे 40 साल भी पार नहीं करने देंगी।' उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई और उन्होंने 39 बरस में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में ही महासमाधि धारण कर ली। उनका अंतिम संस्कार बेलूर में गंगा तट पर किया गया।

इसी तट के दूसरी ओर रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

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