नीमच। प्रजातंत्र में राजनीति बहुत विचित्र होती हे, वक़्त राजनीति में कब और कैसे अकल्पनीय बदलाव कर दे उसकी भविष्य-वाणी राजनीति के प्रकांड विद्वान भी नही कर सकते हे ।
राजनीति में जो आज शीर्ष पर हे वो कल फ़र्श पर हो सकता हे और जो कही पर भी नहीं हे वो शीर्ष पर पहुँच सकता हे ..यह ही प्रजातंत्र की ख़ूबी हे जिसे भारत की राजनीति में देख सकते हे. भारत का प्रजातांत्रिक राजनीतिक इतिहास इस तरह की घटनाओ का गवाह हे .
जब राजनीति में किसी सत्ताधारी व्यक्ति का विकल्प नही दिखता था और उनका वर्चस्व एक तरफ़ा माना जाता था जनता ने बिना विकल्प के एक झटके में बदलाव कर दिया .पूर्व में हुए कई लोकसभा चुनाव में किसी दल विशेष का व्यक्ति विशेष के नेतृत्व में एक पक्षीय माहोल होने के बाद भी वो दल चुनाव में पराजित हो गए .
यही इस देश के प्रजातंत्र की ख़ूबी हे। आज भारत की राजनीति एक अद्भुत दौर से गुज़र रही हे।
राजनीतिक बदलाव की चर्चा शुरू हो गई हे और परंतु ठोस विकल्प अभी अपना रूप ले नही पाया हे जिसके कारण अभी भ्रम की स्थिति बनीहुई हे . आने वाले समय में भ्रम के बादल छँट जाएँगे और बदलाव किस तरह का होगा स्पष्ट मालूम पड़ जाएगा .
लेकिन जो बदलाव हो सकते हे उनका अनुमान लगा कर विश्लेषण तो कर ही सकते हे । देश में अगले माह बिहार और कई प्रदेशों में विधानसभा के उपचुनाव होने जा रहे हैं .
ये चुनाव कोविड -19 के समय हो रहे हैं इन चुनावों में चुनाव आयोग से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलो की साख दाँव पर लगी हैं जहाँ चुनाव आयोग की शाख़ मतदान के प्रतिशत से लेकर परिणाम तक में पारदर्शिता एवम् सुचारु रूप से करवाने की लिये लगी हैं वही राजनीतिक दलो और कई स्थापित नेताओ का राजनीतिक भविष्य दाँव पर लगा है।
भारतीय प्रजातंत्र में मतदाता बहुत ही परिपक्वता से चुनावो में भागीदारी निभाता हैं चुनाव परिणाम का असर देश की भविष्य की राजनीति तय करेंगे .
सम्पूर्ण विश्व में मीडिया एवम् भारतीय मूल के लोग अगले माह होने वाले चुनाव की समीक्षा कर अपना अपना आँकलन कर रहे हैं ।