नीमच! कोरोना महामारी से मौत का खौफ दिखाना अब बंद किया जाना चाहिए। महामारी के नाम पर बाजार बंद का निर्णय कतई उचित नहीं है। अब इस बात पर गौर करने का समय आ गया है कि इस महामारी के कारण देश में कितने युवा बेरोजगार हुए हैं? कितने गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की रोजी-रोटी छिन चुकी है? महामारी के साथ ही लॉकडाउन के कारण कितने परिवारों के समक्ष फाका कशी की नौबत है? अभाव और भूख से मौत के खौफ से कब तक लोगों को घर में बैठाया जाएगा? कोविड-19 यानी कोरोना महामारी के कारण देशभर में मार्च के दूसरे सप्ताह से लॉकडाउन हुआ। इसके बाद कभी कभार लॉकडाउन में छूट भी देखने को मिली। महामारी से मौत के खौफ ने आम जनता को बेहद दुखी किया।
कतिपय व्यापारियों ने जरूरी सामानों का अधिक दाम वसूल कर ऐसे समय में धन लिप्सा को भी पूरा करने की कोशिश की। जरूरी यह है कि सभी लोग कोरोनावायरस से बचाव के लिए सावधानी रखें। जिस घर या एरिया में कोरोना पॉजिटिव मरीज पाए जाते हैं, वहां के एरिया को ही सील किया जाए और बीमारी की रोकथाम के प्रयास सतत रूप से किये जाए। शनिवार और रविवार को लॉक डाउन करने से यह बीमारी खत्म नहीं हो जाएगी। सच तो यह है कि कोरोना महामारी को देश में आने के बाद अब तक की अवधि में लोगों में अव्यवस्थाओं के कारण असंतोष पनपा है। विकास कार्य अवरुद्ध हो गए हैं।
किराना रेडीमेड कपड़ा शोरूम आदि पर काम करने वाले युवाओं का रोजगार छिन गया है। हाथ ठेला और गुमटी चलाने वालों की मुसीबतें बढ़ गई है। हजारों मध्यमवर्गीय परिवार गुजारा चलाने के लिए साहूकारों की शरण में है। इस कारण सूदखोरी भी बढ़ चुकी है। देखा जाए तो देश में कोरोनावायरस के कारण मौतों की तुलना में स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या अधिक है। इससे अधिक मौतें तो देश में केवल सड़क दुर्घटनाओं में ही हो जाया करती है। महामारी से बचने के लिए जरूरी है कि जनता को और जागरूक किया जाए, नियमों का पालन करने के लिए और अधिक प्रेरित किया जाए। लेकिन बंद इसका हल नहीं है और यह सर्वथा अनुचित है।
कहते हैं
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें ?
देश की भली-भोली और भरोसा करने वाली जनता से वोट लेकर जो लोग नेता बने हैं वह भी इस विषय पर थोड़ा गंभीरता से विचार करें। चार किताबें पढ़कर अफसर साहब बने लोग भी भौतिक सुख सुविधाओं से लैस बंगलों से बाहर निकले! फरमान जारी करने वाले लोग देश की गरीब और मध्यमवर्गीय जनता को और उनकी परेशानी को समझें। जिनके हाथों में फरमान जारी करने की डोर है उन्हें मोटी तनख्वाह मिलती है, वे ध्यान रखें कि 2 से ₹4000 में घर का गुजारा करने वाले लोगों पर क्या बीत रही है? आम लोग खासकर मध्यम वर्गीय परिवारों के लोग अपनी क्षमता और व्यवस्था के अनुसार ठीक से गुजारा कर पाए इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।
जो लोग ठेला रेडी लगाकर गुजारा करते हैं उनकी समस्या को समझा जाए। केवल गरीबों को इतना राशन दे रहे हैं! इससे पूरे देश की जनता का पेट नहीं भरता है! जो लोग सभी का पेट भरने का आधार बन रहे थे उनका रोजगार छीन कर देश को तरक्की के रास्ते पर नहीं ले जाया जा सकता।