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बेटी को आत्म सम्मान के साथ आत्मनिर्भर होकर जीना अवश्य सिखाएं- केवल दूसरे घर भेजकर अपने दायित्वों से मुँह ना मोड़े

अतिथि लेखिका - दर्शना जैन May 17, 2020, 1:20 pm Technology

हमने कई बार सुना है कि मां ममता की और त्याग की मूरत होती है, अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ त्याग करती है। पर क्या कभी यह मां अपने ही बच्चों से दूर रह सकती है या उनका भी त्याग कर सकती है ?

हो सकता है आपको आश्चर्य होगा यह इसका जवाब जानकर :- जी हां, जब बात हो आत्मसम्मान की, चरित्र की, अधिकार की, हक की और आत्मनिर्भर होने की । आइए इस संदर्भ में सुनते हैं।

यह कहानी जो हाल ही में मेरे समक्ष आई:- जब कोई लड़की शादी हो कर अपने ससुराल जाती है तब वह गीली कच्ची मिट्टी के समान होती है उसे आप प्यार से खुद के परिवेश में बदल सकते हैं । गीली कच्ची मिट्टी को आप जो भी आकार देंगे चाहे वह गमले का हो या घड़े का उसी सांचे में ढल जाएगी। कई बार ऐसा नहीं होता है घर परिवार वाले नव विवाहित लड़की को शादी करके आने पर इतना बड़ा समझ लेते हैं की उससे पहले ही दिन से इस तरह से पेश आया जाता है कि जैसे वह सब कुछ आपके घर में ही सालों से रह कर सीख रही होगी और आप ही के अनुसार सब कुछ करेगी।

जब वह ऐसा नहीं करती है तो उसे कई सारे ताने सुनाए जाते हैं। कुछ समय तक वह उन तानों को चुपचाप सहन करती है , किंतु हमेशा उसे और उसके परिवार वालों को बुरा भला कहने पर किसी का भी सदा के लिए मौन रहना शायद असंभव होता है और थोड़ा गुस्सा होना स्वाभाविक हो जाता है । फिर भी धीरे-धीरे समय निकलता चला जाता है। घर में उन तानों के अतिरिक्त बाकी सब सही चल रहा होता है। पति का व्यापार एवं व्यवहार आदि इसलिए वह दूसरे तानों को ज्यादा दिल पर नहीं लगाती है ।

किंतु समय बीतता जाता है और दो बच्चों के साथ सभी चीज़ की आवश्यकताएं बढ़ जाती है और जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती है। किंतु इन बढ़ती आवश्यकताओं के विपरित पति का व्यापार भी धीरे-धीरे ठप हो जाता है, इस कारण घर में अन्य प्रकार के झगड़े भी होने लगते हैं जो कि शायद स्वाभाविक थे क्योंकि पैसों की कमी के कारण जब हम बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं, उन्हें स्कूल नहीं भेज पाते हैं , हमारे जीवन शैली में कुछ कमियां आने लगती है, तो वह कुछ समय तक तो ढकी जा सकती है पर बाद में वह उजागर होने लगती है और झगड़े बढ़ने लगते हैं। इन सबके चलते , इस कमजोर वक्त में ,घर के बुजुर्ग एवं पति द्वारा अपनी पत्नी को ताने देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाती है। जबकि वह कतई कोई व्यर्थ खर्चे कभी नहीं करती है, घर परिवार को लेकर चलती है , सबके लिए जितना संभव हुआ सब करती है।

अपनी जिंदगी के आठ नौ साल वह अपने ससुराल वालों को दे चुकी होती है। किंतु फिर भी ऐसे बुरे समय में सिर्फ उसी की गलती है और तुमने किया ही क्या है हमारे लिए जैसे कई सारे ताने उसे सुनाए जाते हैं । कई बार झगड़ों में बात उसके चरित्र आत्मसम्मान तक पहुंच जाती है । घर के इन हालातों को देखते हुए वह नौकरी करने की बात करती है फिर भी उस पर हाथ उठाया जाता है और घर के बड़े बुजुर्गों के सामने मारपीट को भी वह सहन करती है, और घर के बड़े यह सारा तमाशा हंसकर देखते रहते हैं ।इसे भी वह टालने की कोशिश करती है, किंतु बुरे वक्त पर उसे इतना बुरा बना दिया जाता है जैसे कि सारी गलती उसी की है।

व्यापार ठप होना भी उसी की गलती है और उसके साथ साथ उसका चरित्र भी खराब है जैसे कई ताने सुनाए जाते हैं। उसे यह भी अहसास होने लगता है कि उन दोनों पति पत्नी के बीच में लड़ाई की वजह कहीं ना कहीं उनके घर के बड़े हैं। इन सारी बातों को वह अब कतई सहन नहीं कर पाती है। जब तक बात उसकी गलतियों की थी तब तक तानों को सुनती रही और कभी कभी जरूरत पड़ने पर बोलती भी थी या उनसे उनकी बोली पर झगड़ते भी थी किंतु उसने ससुराल वालों के लिए कभी कोई बात मन में गांठ बांधकर नहीं रखी थी बोलकर वह अपना मन हल्का कर लेती थी।

किंतु इस बुरे समय में उसने अब यह भी सिख लिया की जितनी रामायण की रचना जरूरी थी उतनी ही महाभारत की भी। इसलिए जब बात उसके आत्मसम्मान चरित्र आत्मनिर्भरता कि आई तब उसने भी अपने अधिकारों और हक का प्रश्न उठाया किंतु उसे सिर्फ लज्जित ही होना पड़ा। तब उसने दृढ़ निश्चय किया कि वह किसी की गुलाम नहीं है। ससुराल में शादी होकर आई है यह भी उसका घर है और यहाँ भी उसका हक और अधिकार भी है । तो फिर यह गुलामी कैसी या यहाँ पर सिर्फ कामवाली बाई बनने नहीं आई है। कामवाली भी अपने आत्मसम्मान के साथ काम करके, दो पैसे कमाती है और आत्म सम्मान के साथ जीती है।

और इसलिए वह निकल पड़ी खुद की खोज में। ऐसा नहीं था कि वह शादी के पहले आत्मनिर्भर नहीं थी उसके परिवार वालों ने उसे काफी सक्षम बनाया था अपने पैरों पर खड़ी थी, उसने भी अपनी एक पहचान बनाई थी। पर शादी के बाद उसने ससुराल वालों के लिए अपनी इस योग्यता को कहीं खो दिया था। घर के कामकाज और बच्चों में ही लगी रहती थी, पति के व्यापार में भी जितना संभव होता उतना सहयोग करती थी। उसने वापस स्वयं को तराशा और यह निश्चय किया कि वह अब अपने पैरों पर वापस खड़ी होगी । पुन्ह सक्षम बनेगी। क्योंकि हाल फिलहाल वह ससुराल वालों पर निर्भर थी वह कुछ नहीं कर पा रही थी । उसने निश्चय किया और नौकरी की तलाश में निकल चली। समय अनुसार एवं उसकी योग्यता अनुसार उसे जो भी नौकरी मिली वह करने का निर्णय लिया और अपने हालातों को बदलने का निर्णय लिया। इस निर्णय मैं उसे एक और कठोर फैसला लेना पड़ा उसे अपने बच्चों से ही दूर रहने को मजबूर होना पड़ा । वह कभी अपने दिल के टुकड़ों से दिल से अलग नहीं हुई, बस कुछ किलोमीटर की दूरी मां और बच्चों के बीच में आ गई। और अब एक और नए ताने के साथ कि यह तो माँ ही बुरी है, अपने बच्चों को छोड़कर चली गई है, के साथ भी जीने की आदत डाल ली। लेकिन क्या यह फर्ज सिर्फ माँ का ही होता है कि वह बच्चों को पैदा करके बड़ा करें और उनकी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करें, क्या इसमें उनके पिता या ससुराल वालों का कोई योगदान नहीं होता है । कहने को तो वे लोग बड़े आराम से कह देते हैं कि बच्चे हमारे हैं तू क्या तेरे पीहर से लाई थी जो तेरे हो गए। अब उस मां को ही बुरा बना देते हैं कि वह बच्चों को छोड़कर चली गई उनके लिए कुछ करा नहीं, कोई त्याग नहीं कर सकती थी, हमने ऐसा क्या कह दिया था, हम उसको बैठाकर खिला तो रहे थे। क्या ताने? सास है, वह तो बोलेगी, तुमसे बड़ी है ,चुपचाप सुन लो, तुम्हारा समय खराब चल रहा है, पति के पास पैसे नहीं है इसलिए चुपचाप सिर्फ सुनों।

क्यों भाई क्यों सुने और कब तक? पैसे खत्म हुए थे पति पत्नी के बीच का प्यार और विश्वास कैसे खत्म हो गया उनके बीच कोई क्यों आ गया? बच्चों से दूर रहना उस की मजबूरी थी और इसके पीछे भी उसकी एक गहरी सोच थी, कि जब वह खुद ही उसके ससुराल वालों पर निर्भर है तो क्या वह अपने बच्चों का पालन-पोषण कर सकती है?? नहीं ! इसलिए कुछ समय के लिए भले ही अपने बच्चों से दूर रहना पड़े किंतु पहले अब अपने आपको, स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना अति आवश्यक है। तब ही वह अपने बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से कर पाएगी अन्यथा वह सिर्फ गुलामी की जंजीरों में अपने ही बच्चों के सामने हमेशा तानों से लज्जित कर दी जाएगी। जो कि आगे भविष्य में हो सकता है कि उसके बच्चे ही उसे सुनाएं या उस की कद्र ही ना करें। हर मां की तरह वह भी अपने बच्चों को अपनी जान से ज्यादा चाहती है। इसलिए उसने एक नई दिशा चुनी और उस राह पर निकल पड़ी।

अंत में मैं उन मां-बाप से यह निवेदन करना चाहूंगी जो अपनी बेटी के ससुराल में हुए विवादों के बाद उसे कुछ समय के लिए अपने घर तो ले आते हैं किंतु वापस उसी कुएं में डालकर भी आ जाते हैं , अगर घर लाने से समस्या हल हो जाती है तो ठीक है, अन्यथा लड़की को दूसरी बार उस घर में पहुंचाने से पहले लड़की को आत्म सम्मान के साथ आत्मनिर्भर होकर जीना अवश्य सिखाएं ताकि वह वहां या जहां भी रहे अपने पैरों पर खड़ी रहें और खुश रहें। कम से कम उसे खुद के मां बाप के लिए कोई ताना ना सुन ना पड़े और शायद आपने भी कभी उन्हें कोई गलत संस्कार या शिक्षा नहीं दी होगी जिसे कि वह ससुराल में सुनती होगी।

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