हर साल 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। ये दिन दुनियाभर के उन करोड़ों मेहनतकश लोगों को समर्पित है जो अपने श्रम से समाज और राष्ट्र की नींव मजबूत करते हैं। मजदूर दिवस हमें श्रमिकों के अधिकार, उनके योगदान और उनके संघर्षों की याद दिलाता है। आज का दिन सिर्फ श्रमिकों की एकता और उपलब्धियों का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि उन ऐतिहासिक आंदोलनों को भी याद करता है, जिन्होंने श्रमिक अधिकारों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आइए आज मजदूर दिवस पर विश्व के कुछ प्रमुख मजदूर आंदोलनों पर नजर डालते हैं।
1. हेमार्केट आंदोलन, शिकागो (1886) अमेरिका के शिकागो में 1886 में शुरू हुआ हेमार्केट आंदोलन मजदूर दिवस की नींव माना जाता है। उस दौर में मजदूरों को 15-18 घंटे तक काम करना पड़ता था, वो भी बिना किसी निर्धारित छुट्टी के। 1 मई 1886 को हजारों मजदूरों ने 8 घंटे के कार्यदिवस की मांग को लेकर हड़ताल की। 4 मई को हेमार्केट स्क्वायर में एक रैली के दौरान बम विस्फोट और पुलिस के साथ झड़प में कई मजदूरों और पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस घटना ने वैश्विक स्तर पर मजदूर आंदोलनों को प्रेरित किया। 1889 में पेरिस में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ने 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया।
2. रूसी मजदूर आंदोलन, रूस (1917) 19वीं सदी के अंत में रूस में औद्योगीकरण के साथ मजदूरों ने कम मजदूरी और लंबे कामकाजी घंटों के खिलाफ हड़तालें शुरू की। 1898 में रूसी सोशल डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी बनी। 1905 में “ब्लडी संडे” की घटना ने मजदूरों को और संगठित किया, जब ज़ार की सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भोजन की कमी और युद्ध से तंग मजदूरों ने पेत्रोग्राद में हड़ताल शुरू की। 1917 में ज़ार निकोलस द्वितीय को गद्दी छोड़नी पड़ी और अस्थायी सरकार बनी। मजदूरों ने पेत्रोग्राद सोवियत बनाया। यहां ‘अक्टूबर क्रांति’ उल्लेखनीय है जब लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने मजदूरों और सैनिकों के साथ मिलकर अस्थायी सरकार को उखाड़ फेंका। इसके बाद 8 घंटे का कार्यदिवस और श्रमिक अधिकारों के लिए कानून लागू किए गए। रूसी क्रांति ने मजदूरों की एकता की ताकत दिखाई और विश्व भर में श्रमिक आंदोलनों को प्रेरित किया।
3. बॉम्बे मिल हड़ताल, भारत (1928) भारत में मजदूर आंदोलनों का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के साथ गहराई से जुड़ा है। 1928 में बॉम्बे (अब मुंबई) की सूती मिलों में कम्युनिस्ट नेताओं के नेतृत्व में मजदूरों ने बड़े पैमाने पर हड़ताल की। इस हड़ताल का उद्देश्य बेहतर मजदूरी और कार्यस्थल पर बेहतर परिस्थितियों की मांग था। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने इस आंदोलन को संगठित किया, जिसने भारतीय मजदूर आंदोलनों को नई दिशा दी। इसने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी संगठित करने की प्रेरणा दी..हालांकि कई मजदूर ट्रेड यूनियनों के दायरे से भी बाहर रहे।
4. मई आंदोलन, फ्रांस (1968) फ्रांस में मई 1968 में मजदूरों और छात्रों ने मिलकर एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू किया, जो सामाजिक और श्रम सुधारों की मांग के लिए था। इस आंदोलन की शुरुआत पेरिस में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों से हुई जो जल्द ही मजदूर यूनियनों के साथ जुड़ गया। इसमें लगभग 10 मिलियन मजदूरों ने हड़ताल में हिस्सा लिया जिस कारण न्यूनतम वेतन में 35% की वृद्धि और कार्यस्थल पर बेहतर अधिकार प्राप्त हुए। इस आंदोलन ने फ्रांस की सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला और वैश्विक स्तर पर मजदूर आंदोलनों को प्रेरित किया।
5. सॉलिडेरिटी मूवमेंट, पोलैंड (1980) पोलैंड में 1980 के दशक में सॉलिडेरिटी मजदूर आंदोलन ने कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई। ग्दान्स्क शिपयार्ड में लेच वालेंसा के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन बेहतर मजदूरी, कार्यस्थल सुरक्षा और यूनियन बनाने के अधिकार की मांग करता था। इस आंदोलन ने न सिर्फ श्रमिक अधिकारों को मजबूत किया बल्कि पोलैंड में कम्युनिस्ट शासन के पतन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सॉलिडेरिटी को वैश्विक स्तर पर मजदूर आंदोलनों के लिए एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
6. दक्षिण अफ्रीका का खनन मजदूर आंदोलन (2012) 2012 में दक्षिण अफ्रीका की मारिकाना खदान में स्थानीय मजदूरों ने बेहतर वेतन और कार्यस्थल सुरक्षा की मांग को लेकर हड़ताल की। इस हड़ताल के दौरान पुलिस के साथ हिंसक झड़प में 34 मजदूरों की मौत हो गई, जिसने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया। इस घटना ने दक्षिण अफ्रीका में श्रमिक अधिकारों और असमानता के मुद्दों को उजागर किया। इस आंदोलन ने मजदूर यूनियनों को और मजबूत किया और श्रमिकों के लिए बेहतर नीतियों की मांग को तेज किया।