नीमच। जिले के अंतर्गत विकासखंड मनासा नगर के अनुपपुरा गली स्थित चिंतामणी पार्श्वनाथ मन्दिर पर 4 अप्रैल से चैत्र नवपद ओली जी की आराधना आरम्भ हुई है। छोटे-बड़े 22 आराधक इस ओली जी में विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ आत्म शुद्धि हेतु तप कर रहे हैं। नवपद ओली जी के लाभार्थी एवं जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ के अध्यक्ष प्रकाश हिंगड़ ने बताया कि हमारी आस्था के केंद्र पूज्य भोजराज यति जी महाराज की कृपा एवं सागर समुदाय वर्तिनी परम् पूज्य सौम्ययशा श्रीजी मसा की पावन प्रेरणा स्वरूप चैत्र सुदी सप्तमी से वैशाख बुदी एकम तक नवपद ओली की नो दिन तक चिंतामणी पार्श्वनाथ जैन मंदिर मनासा में यह आराधना हो रही है। देश के विभिन्न तीर्थो के मंदिरों पर यह आराधना एक साथ प्रारम्भ होती है जैन अनुयायी बड़ी श्रद्धा के साथ इस धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लेकर आत्म शुद्धि करते हैं। कैसे होती है ओली की आराधना प्रति दिन प्रातः 8 बजे से मन्दिर में स्नात्र पूजा पढ़ाई जाती है। प्रातः 9 बजे से महिला मंडल द्वारा सामूहिक क्रिया करवाई जाती है। 11-30 बजे से आयम्बिल (ओली आराधकों का आहार) प्रारम्भ होता है। शाम को प्रतिक्रमण सूत्र का वाचन, 7 बजे परमात्मा की आरती एवं ततपश्चात भक्ति सम्पन्न होती है। क्या रहती है आहार व्यवस्था ओली के आराधक दिन में सिर्फ एक बार एक बैठक पर उबला हुआ आहार लेते है। जैसे मूंग, मूंग का उबला पानी, तुवर, उड़द दाल चपाती चावल आदि। हरी सब्जी एवं फल पूर्णतः निषेध रहते है। आराधकों की सेवा भी एक प्रकार का तप है शारीरिक रूप से अक्षम जैन अनुयायी आराधना नही कर पाते है तो वे ओली आराधकों की सेवा में लग जाते है। इस सेवा सुश्रुषा को जैन धर्म में "वैयावच्च" शब्द कहा गया है। वैयावच्च व्यवस्था में लगी श्रीमती मनीषा-सुनील पामेचा एवं श्रीमती संगीता - हेमेंद्र हिंगड़ ने बताया कि नवपद ओली जी के आराधकों की सेवा करना भी एक प्रकार का तप ही है। हम सौभाग्यशाली है कि परमात्मा ने हमें कम से कम ये अवसर तो प्रदान किया। दिन भर इनकी आहार एवं अन्य व्यवस्थाओं में लगे रहना बड़ा सुकून भरा समय होता है। क्यों की जाती है नवपद ओली जी सबसे कम उम्र की आराधक अक्षिता एवं साक्षी नपावलिया ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में उनके प्रति आस्था प्रकट करने के लिए ओली की जाती है। इस आराधना को करने से आत्म शुद्धि हेतु उपवास, पूजा एवं ध्यान करने का अवसर मिलता है। सामाजिक समरसता बढ़ती है, आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का पालन भी करना होता है।