प्रयागराज, 28 जनवरीः महाकुंभ के दौरान संगम जाने की होड़ ने हालात को इतना बेकाबू कर दिया कि भगदड़ मच गई। 28 जनवरी की शाम से ही श्रद्धालुओं का रेला संगम की ओर बढ़ने लगा था। हजारों की संख्या में लोग वहां इकट्ठा होते चले गए। थोड़ी ही देर में लगभग 500 वर्ग मीटर का एरिया ठसाठस भर गया। प्रयागराज के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत छोटे लाउडस्पीकर से बार-बार बताते रहे कि 'सभी श्रद्धालु सुन लें... यहां (संगम तट) लेटे रहने से कोई फायदा नहीं है। जो सोवत है, वो खोवत है। उठिए और स्नान करिए। आपके सुरक्षित रहने के लिए यह जरूरी है। बहुत लोग आएंगे और भगदड़ मचने की आशंका है। आप पहले आ गए हैं तो आपको सबसे पहले अमृत स्नान कर लेना चाहिए। सभी श्रद्धालुओं से करबद्ध निवेदन है कि उठें... उठें...'। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि एक कदम आगे बढ़ना भी मुश्किल था। ऐसे में 'दौड़ने' या भगदड़ की अफवाहें फैलाई जा रही हैं," कुछ लोग कहते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि जब हालात इतने काबू में थे, तो झुंसी में इतने जूते-चप्पल क्यों बिखरे पड़े थे? झुंसी में त्रासदीः तीन दिशाओं से भिड़ती भीड़; झुंसी में स्थिति और भी गंभीर थी। यहां एक प्रमुख चौराहे पर तीन दिशाओं से भीड़ एक ही जगह इकट्ठा हो रही थी।
पांटून पुल से संगम जाने की कोशिश कर रहे श्रद्धालुओं को पुलिस बैरिकेड्स लगाकर झूसी पुल से भेजने की अपील कर रही थी। लेकिन इस दौरान अफरा-तफरी मच गई। "हम भी उस दिन निकले थे... सड़कों से लेकर संगम तक सिर ही सिर नजर आ रहे थे," एक प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं। "जो सड़क किनारे थककर बैठ गए थे, वे उठ ही नहीं पाए... वे कुचल गए," एक चश्मदीद ने भावुक होकर बताया। "झुंसी में भी संगम जैसी ही स्थिति थी। बस वहां घटना छिपाई जा रही है," एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी का दावा। असम से आई मधुमिता ने बताया, "संगम घाट पर लोग सुबह होने के इंतजार में बैठे और लेटे थे। तभी लोगों की भीड़ अखाड़ों के अमृत स्नान के लिए बने बैरियरों को तोड़ते हुए घाट की तरफ बढ़ी और घाट पर लेटे हुए लोग इस भीड़ की चपेट में आ गए। क्या कहती हैं मीडिया रिपोर्ट: भास्कर को एक महिला ने बताया, करीब 1 बजे की घटना है। लोग सिर के बल दबे रहे। दो घंटे भगदड़ के हालात थे। कई लोग बिजली के खंभे पर चढ़ गए। इसी तरह एबीपी के अनुसार झारखंड के पलामू से आए राम सुमिरन ने बताया, "144 साल बाद यह पुण्य स्नान का अवसर आया है जिसे कोई भी गंवाना नहीं चाहता। यही वजह है कि देश दुनिया से लोग संगम के किनारे खुले आसमान के नीचे डेरा डालकर पड़े थे। तभी बैरियर तोड़कर आए जनसैलाब के नीचे वे दब गए।" एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "संगम पर गहराई है। गहराई पर उतरने-चढ़ने के दौरान थोड़ी-सी दिक्कत हो गई। इसी वजह से ऐसे हालात हुए हैं। भीड़ बहुत है। प्रत्यक्षदर्शियों की आंखों देखी कहानियां इस त्रासदी का ऐसा सच बयां करती हैं, जिसे शायद कोई सुनना नहीं चाहता... लेकिन यह सच सामने आना ज़रूरी है! सवाल उठता है- क्या यह हादसा टाला जा सकता था? क्या सुरक्षा इंतज़ाम नाकाफी थे? और सबसे बड़ा सवाल-झुंसी की भगदड़ की सच्चाई क्यों छिपाई जा रही है? प्रत्यक्षदर्शियों की आंखों देखी कहानियां इस त्रासदी का ऐसा सच बयां करती हैं, जिसे शायद कोई सुनना नहीं चाहता... लेकिन यह सच सामने आना ज़रूरी है!