वाल्मीकि जयंती की कहानी:-
महर्षि वाल्मीकि भारत के दर्शन और इतिहास में एक बहुत ही चर्चित नाम हैं। जिन्होंने रामायण जैसा महाकाव्य लिखा, जिन्होंने सीता मां को वनवास के समय शरण दी और राम के दो पुत्रों लव-कुश को शिक्षा दी। उनका एक ऋषि रूप में चरित्र सुनकर शायद ही किसी को इस बात का यकीन हो सकता है कि ऐसा इंसान कभी एक लुटेरा और डाकू रहा होगा। रत्नाकर नाम का एक डाकू जो राह से गुजरते लोगों पर घात लगाकर हमला करता और उन्हें लूट लेता। यहां जानिए एक डाकू के ऋषि बनने की कहानी
एक समय की बात है कि रत्नाकर नाम का एक डाकू लोगों पर हमला करके जबरन उनसे उनकी संपत्ति छीनने का काम करता था। ऐसा करते काफी समय हो गया, इसी बीच उस लुटेरे के जीवन में नारद मुनि से मिलन की जीवन बदलने वाली घटना आई। जब नारद से हुई डाकू रत्नाकर की मुलाकात... अचानक नारद मुनि के सामने आकर रत्नाकर ने उन्हें डराने की कोशिश की लेकिन नारद बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए। नारद के इस स्वभाव को देखकर रत्नाकर को थोड़ी हैरानी हुई और उसने देखा कि नारद के पास वीड़ा के अलावा छीनने के लिए कोई खास संपत्ति भी नहीं है। इसके बाद भी रत्नाकर ने नारद से कहा कि जान बचानी है तो जो भी कीमती उनके पास सब उसे दे दें। नारद ने कहा कि उनके पास एक बहुत अनमोल चीज है लेकिन - 'रत्नाकर क्या तुम उसे ले पाओगे।' रत्नाकर फिर थोड़ा हैरान हुआ।
'क्या इस कर्म में परिवार तुम्हारा सहभागी है?' फिर नारद ने एक प्रश्न किया कि रत्नाकर लूट का जो काम करता है वह किसके लिए कर रहा है। उसका जवाब था अपने परिवार को सुविधाएं देने और उनका भरण पोषण करने के लिए। नारद का अगला सवाल था- 'तुम अपने परिवार को लोगों से धन लूटकर दे रहे हो, क्या जब इस कर्म का परिणाम आने पर भी वो परिवार तुम्हारा साथ देगा। क्या इस डकैती के कर्म में तुम्हारा परिवार तुम्हारा सहभागी है, क्या समय आने पर इस काम के लिए परिजन तुम्हारे साथ खड़ा होगा।' रत्नाकर के मन में भी जिज्ञासा उठी और वह नारद को एक पेड़ से बांधकर अपने परिवार से सवाल करने गया। तब परिजनों यानी पत्नी और पिता दोनों ने साफ इनकार कर दिया कि वह भले ही लूट के धन से सुख-सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं लेकिन डकैती के कर्म का फल रत्नाकर को अकेले ही भोगना होगा, वह इस काम में उसके सहभागी नहीं हो सकते।
'डकैती छोड़कर पाई राम नाम की संपत्ति' परिवार के जवाब से हताश-निराश रत्नाकर नारद के पास वापस लौटा। उसको अहसास हुआ कि वह व्यर्थ के कामों में जीवन नष्ट कर रहा है, और जिनके लिए कर रहा है वह भी उसके साथी नहीं। उसके अंदर बदलाव की चाह जगी और तब नारद मुनि ने डाकू रत्नाकर को राम नाम की संपत्ति के बारे में बताया। यहां से शुरू हुआ रत्नाकर का आध्यात्मिक सफर। एक ऐसा सफर जिसने एक डाकू को महर्षि वाल्मीकि में बदल दिया।
आज भी हम उनको सम्मान से याद करते हैं और उनकी याद में वाल्मीकि जयंती मना रहे हैं।