नई दिल्ली। हमारा प्यारा भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन आजादी पाने के लिए हमने वर्षों तक लड़ाई लड़ी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले 1857 में बिगुल फूंकी गई और इसे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पैदा हुए मंगल पांडेय ने अंजाम दिया था।
मंगल पांडेय ने 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगल पांडेय भारत के ऐसे वीर सपूत थे, जिन्होंने ये एहसास दिलाया कि अगर हम चाहे तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। उन्हीं के बदौलत आजादी की लड़ाई ने रफ्तार पकड़ी और हम आजाद हुए।
कौन थे मंगल पांडेय?:-
मंगल पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 19 जुलाई 1827 को हुआ था। उनके गांव का नाम नगवा है और उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पांडेय के पिता का नाम दिवाकर पांडे था। मंगल पांडेय का महज 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना चयन हो गया। वह बंगाल नेटिव इंफेंट्री की 34 बटालियन में शामिल हुए थे। इस बटालियन में अधिक संख्या में ब्राह्मणों की भर्ती होती थी, जिस वजह से उनका चयन हुआ था।
मंगल पांडेय क्यों हुए मशहूर?:-
स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय ने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने अपने ही बटालियन के खिलाफ बगावत कर दिया था। मंगल पांडेय ने चर्बी वाले कारतूस को मुंह से खोलने से मना कर दिया था, जिस वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 08 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई। इसी बगावत ने उन्हें मशहूर कर दिया और आजादी की ज्वाला में घी का काम किया। इसी वजह से उन्हें स्वातंत्रता सेनानी कहा गया। क्या था
1857 का विद्रोह?:-
कहते हैं कि 'अंत ही आरंभ है' और मंगल पांडेय के जीवन का अंत ही स्वाधीनता संग्राम का आरंभ था। 1857 का विद्रोह की शुरुआत तो सिर्फ एक बंदूक की गोली की वजह से हुआ था, लेकिन इसका परिणाम ऐसा होगा कि आजादी मिलने तक जारी रहेगा, ये किसी ने नहीं सोचा था। अंग्रेसी शासन ने अपने इस बटालियन को एन्फील्ड राइफल दी थी, जिसका निशाना अचूक था। इस बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया काफी पुरानी थी। इसमें गोली भरने के लिए कारतूस को दांतों से खोलना होता था और मंगल पांडेय ने इसका विरोध कर दिया था, क्योंकि ऐसी बात फैल चुकी थी कि इस कारतूस में गाय व सुअर के मांस का उपयोग किया जा रहा है। मंगल पांडेय का विद्रोह अंग्रजी हुकूमत को पसंद नहीं आया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। मंगल पांडेय को तय तिथि से 10 दिन पहले 08 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई, क्योंकि ऐसी आशंका जताई गई कि उनकी फांसी से हालात बिगड़ सकता है। मंगल पांडेय ने अपने अन्य साथियों से भी इसका विरोध करने के लिए कहा और ऐसा ही हुआ। क्या निकला 1857 के विद्रोह का परिणाम? मंगल पांडेय की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गया। उनकी मृत्यु ने अंग्रेजी शासन को स्पष्ट संदेश दे दिया कि आने वाला दौर मुश्किल होने वाला है। मंगल पांडेय की फांसी के एक महीने बाद ही 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत हो गई। इसके बाद कई और जगह से भी ऐसी ही खबर सामने आने लगी थी।
मंगल पांडेय से जुड़े कुछ तथ्यः-
मंगल पांडेय को जब उनके साथियों ने गिरफ्तार करने से मना किया तो उन्होंने खुद को गोली मारी थी, जिसमें वह घायल हुए थे। मंगल पांडेय ने अपने साथियों को अंग्रेजी हुकूमत का सामना करने के लिए प्रेरित किया था। मंगल पांडेय के बलिदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1984 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। मंगल पांडेय का महज 22 वर्ष में अंग्रेजी सेना में चयन हुआ था। मंगल पांडेय ने केवल 30 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था। मंगल पांडेय के जीवन पर प्रसिद्ध नारायण सिंह द्वारा लिखी गई एक कविता की पंक्ति कुछ प्रकार है, 'गोली के तुरत निसान भइल, जननी के भेंट परान भइल। आजादी का बलिवेदी पर, मंगल पांडेय बलिदान भइल।' यानी कि मंगल पांडेय का जब गोलियों से सामना हुआ तो वीर सपूत आजादी के लिए कुर्बान हो गया।