ईद उल फितर और ईद उल अजहा में क्या है अंतर, जानें किसे कहते हैं मीठी ईद और क्यों?

Neemuch headlines April 11, 2024, 8:29 am Technology

लसऊदी अरब, यूएई समेत कई देशों में ईद 10 अप्रैल को मनाई जारी है, वहीं भारत में 11 अप्रैल को ईद उल-फित्र यानी मीठी ईद मनाई जाएगी और इसको लेकर जोर शोर से तैयारियां भी चल रही हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, साल भर में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है, लेकिन दोनों ही त्योहारों में काफी अंतर है। एक ईद को मीठी ईद और दूसरी ईद को बकरीद कहा जाता है। आइए जानते हैं दोनों ईद में अंतर...

भारत में 11 अप्रैल दिन गुरुवार को ईद उल-फित्र यानी मीठी ईद का पर्व मनाया जाएगा। रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है और इसे माह-ए-रमजान कहा जाता है। रमजान के पूरे महीने अल्लाह से इबादत करते हैं और गुनाहों की माफी मांगते हैं। रमजान का माह खत्म होने के बाद ईद की तारीख चांद के देखने के हिसाब से मुकम्मल की जाती है। जिस दिन चांद दिखता है, उस दिन को चांद मुबारक भी कहा जाता है और फिर उसके अगले दिन ईद का पर्व मनाया जाता है। बहुत से लोगों के मन सवाल रहता है कि आखिर ईद-उल-फितर और ईद उल-अजहा में क्या अंतर है, एक ईद को मीठी ईद और एक ईद को बकरी ईद क्यों कहा जाता है...

मीठी ईद और बकरा ईद में अंतर मुस्लिम समुदाय में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है, एक ईद को ईद उल-फित्र कहा जाता है, जिसे मीठी ईद भी कहते हैं। वहीं दूसरी ईद को ईद उल अजहा कहते हैं, जिसे बकरा ईद कहते हैं। मीठी ईद के तकरीबन 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय में दोनों ही त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। दोनों ही पर्व को आम भाषा में ईद कहा जाता है। इसलिए ज्यादातर लोग दोनों ईद फर्क नहीं कर पाते हैं। आज हम आपको बताते हैं ईद उल-फितर (मीठी ईद) और ईद-उल-अजहा (बकरा ईद) में क्या अंतर है, जानते हैं। यह है ईद उल-फितर साल में जो सबसे पहली ईद आती है, उसे ईद उल-फितर कहा जाता है, इस ईद को मीठी ईद या फिर सेवाइयों वाली ईद भी कहा जाता है। मीठी ईद को रोजा खत्म होने के बाद त्योहार के रूप में मनाई जाती है।

पहली ईद उल-फित्र पैगंबर मुहम्मद साहब ने सन् 624 ई. में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। इस दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी। यह ईद उन लोगों के लिए इनाम के रूप में मनाई जाती है, जिन्होंने पूरे महीने रोजा रखे थे। खुदा को किया जाता है शुक्रिया ईद उल-फित्र में मुस्लिम समुदाय खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने महीनेभर रोजा रखने की शक्ति दी। इस ईद में एक खास रकम गरीब व जरूरतमंद के लिए निकाल दी जाती है। इस दान को जकात उल-फित्र कहते हैं।

मीठी ईद के दिन नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है, जिसको हर रोज खाया जा सके। इसमें गेहूं, आटा, चावल कुछ भी हो सकता है। इस ईद को मीठी ईद इसलिए भी कहते हैं कि रोजों के बाद ईद पर जिस चीज का पहले सेवन किया जाता है, वही मीठी होनी चाहिए। वैसे मिठाइयों के लेन-देन, सेवइयों और शीर खुरमा के कारण भी इसे मीठी ईद कहते हैं। यह है ईद-उल-अजहा ईद-उल-अजहा यानी बकरीद को मीठी ईद के तकरीबन 70 दिनों बाद मनाया जाता है। ईद-उल-अजहा को ईद-ए-कुर्बानी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन नियमों का पालन करते हुए हलाल जानवर कुर्बानी दी जाती है। इसे कुर्बानी की ईद और सुन्नत-ए-इब्राहिम भी कहते हैं। क्योंकि इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद को साल का आखिरी महीने यानी ज़ु अल-हज्जा या ज़ुल हिज्जा को मनाया जाता है। कुर्बानी एक जरिया है, जिससे बंदा अल्लाह की रजा हासिल करता है।

इस तरह ईद-उल-अजहा की हुई शुरुआत ईद-उल-अजहा यानी बकरीद को लेकर मान्यता है कि एक बार खुदा ने ख्वाब में आकर इब्राहिम अलैय सलाम से प्यारे बेटे इस्माइल (जो बाद में पैगंबर हुए) की कुर्बानी मांगी थी। इब्राहिम अलैय सलाम के लिए इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ तो बेटे से मोहब्बत थी तो दूसरी तरफ अल्लाह का हुक्म। लेकिन इब्राहिम ने अल्लाह का हुक्म मानते हुए अपने प्यारे बेटे को कुर्बानी देने को तैयार हो गए। इब्राहिम जब अपने बेटे की बलि देने लगे तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब पट्टी खोली तो उनका बेटा जिंदा खड़ा था बेटे की जगह दुंबा (भेड़ जैसा एक जानवर) की कुर्बानी चली गई, तभी से कुर्बानी देने की रिवाज चल पड़ा। ईद पर क्या करते हैं बड़ी ईद (ईद-उल-अजहा) और छोटी ईद (ईद-उल-फितर) दोनों अलग-अलग होते हुए भी सामाजिक रूप से एक जैसी होती हैं। इन दोनों ईद पर 6 बार नमाज अदा की जाती है, जकात दिया जाता है और ईद की बधाई भी दी जाती हैं। रिश्तेदारों-संबंधियों के घर जाना और सामाजिक सरोकार के काम किए जाते हैं। बच्चे नए कपड़े पहनते हैं और घर के बड़े, छोटे बच्चों को ईदी भी देते हैं। जरूरतमंद को खाना खिलाया जाता है और कपड़े व जरूरत की चीजें बांटी जाती हैं।

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