बच्चों को मोबाइल देना पड़ सकता है भारी,अपराधी बच्चों को बना रहे निशाना, अकाउंट हो रहे साफ - डॉ स्वाति वधवा पढे पूरी खबर।

Neemuch headlines February 16, 2024, 1:43 pm Technology

नीमच । यदि आपका बच्चा मोबाइल पर घंटो तक गेम खेलता रहता है तो आपका बच्चा ऑनलाइन गेमिंग का आदी बनता जा रहा है और माता पिता को इस और ध्यान देने की जरूरत है। आजकल देश-विदेश में बैठे सायबर अपराधी ऑनलाइन गेमिंग में लुभावने ऑफर देकर बच्चों के जरिए बड़ों के बैंक खातों को निशाना बना रहे है। मोबाइल पर पबजी, फ्री फायर, रमी, तीन पत्ती, लुडो, जीटीए, द एसकेप, फाइटिंग आदि अन्य गेम्स सहित कई ऐसे गेम्स है, जो बच्चों को जीतने पर भारी- भारी - भरकम पुरस्कार देने की बात करते है। बच्चों को पहले तो इन गेम्स की लत लग जाती है। बाद में वह गेम्स से संबंधित अच्छे हथियार और पॉइंट्स अर्न करने के लालच में इन्हें खरीदने के लिए अपने माता-पिता का बैंक खाता उपयोग में लेते है। ऐसे में सायबर अपराधी बच्चों को आसानी से अपना निशाना बना लेते हैं। वहीं गेम्स के आदी होने पर बच्चों को इन गेम्स से दूर करना भी आसान नहीं होता और उनमें चीड़ चिड़ापन, तनाव, गुस्सा आदि लक्षण पैदा हो जाते है। गेमिंग से इस तरह होता है सायबर अपराध - एक्सपर्ट के अनुसार जब भी हम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से पेमेंट करते है तब हमारे डेबिट कार्ड अथवा क्रेडिट कार्ड का डाटा सेव हो जाता है। इन सॉफ्टवेयर में ऑनलाइन की-लॉगर्स होते हैं। ऐसे में ये डेटा वहां पर फीड हो जाता है। इससे गेमिंग एप ही नहीं बल्कि दूसरे एप से भी बैंक खाते से पैसे निकलने का खतरा हो जाता है। कई एप्स में ट्रोजन या दूसरे मैलवेयर भी होते हैं। ये फोन में इन्स्टॉल होकर आपके डेटा को चुराते हैं। ऐसे में जब बच्चे गेम के लिए किसी चीज की खरीदारी करते है अथवा कोई गेमिंग एप खरीदते हैं तो आपका कार्ड ऑटोमेटिक पेमेंट मोड पर आ जाता है। ऐसे में बच्चे एकाउंट की जानकारी होने पर आसानी से ट्रांजेक्शन को अंजाम दे देते हैं। वहीं कई बार बच्चे माता पिता के वालेट या काड़ का पिन जानते है, तो ट्रांजैक्शन भी कर र देते है। ऐसे में में ऑनलाइन गेमिंग के माध्यम से देश-विदेश में बैठे सायबर अपराधी लुभावने ऑफर से बच्चों को अपना निशाना बनाकर बैंक खाते साफ करते हैं। ऐसे में माता पिता को चाहिए कि वह बच्चे की काउंसलिंग कराएं । वहीं उधर, ऐसे मामले आने पर पुलिस भी महज खानापूर्ति नहीं करें तथा पुलिस विभाग को भी समय समय पर जागरूकता अभियान चलाकर बच्चों को ऑनलाइन गेम्स से होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिए जानकारी देनी चाहिए। एक्सपर्ट व्यू... अभिभावक के साथ स्कूल प्रबंधन भी दें ध्यान - स्कूल में अगर ऐसे बच्चे नजर आएं तो स्कूल प्रबंधन उन बच्चों की काउंसलिंग करें। इसके अलावा बच्चें की संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी अभिभावकों को दें। अभिभावक भी बच्चों पर नजर रखें और मोबाइल को हमेशा जांचते रहे। बच्चें की भूमिका असहज दिखे तो स्कूल और उसके दोस्तों से संपर्क कर पूछताछ करें। ऑनलाइन गेम्स एक तरह से एडिक्शन बनता जा रहा है। इसके माध्यम से सायबर अपराध भी हो रहे हैं। ऑनलाइन गेम्स को लेकर बच्चे पहले आकर्षित होते हैं। बाद में वे कब इसके एडिक्ट हो जाते हैं, उन्हें पता नहीं चलता है। इससे बच्चों में आक्रामकता, चिडचिडापन, गुस्सा करना, पागलों जैसी हरकत करना आदि समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसके कारण वे एंग्जायटी व डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। अभिभावकों को इसके प्रति ध्यान देना बहुत जरूरी है। बच्चों को आउटडोर गेम्स खेलने कौ प्रोत्साहित करें व इन खेलों में उसकी भागीदारी बढ़ाएं। सरकार द्वारा बच्चों को काउंसलिंग के लिए ग्वालियर और इंदौर में दो केंद्र स्थापित किए गए हैं। बच्चों को मोबाइल से दूर करने के लिए सरकार द्वारा मनोरोग चिकित्सक के माध्यम से पूरे रे साल में विद्यालयों में 10 से अधिक सेमिनार आर्याजित किए जाते हैं। सरकार शीघ्र ही शिक्षक और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के बाद इस अभियान को घर-घर तक पहुंचाने का प्रयास करेगी, मेंटल प्रोग्राम के अंतर्गत बच्चों को ऑनलाइन काउंसलिंग के लिए हेल्पलाइन क्रमांक 14416 तथा 18008914414 इन नंबर पर माता- पिता एवं बच्चे 24 घंटे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। बच्चों को मोबाइल से दूर करने के लिए पढ़ाई का शेड्यूल इस प्रकार बनाएं और समय इस प्रकार निर्धारित करें कि बच्चों को कहे कि वह इस विषय की इतनी पढ़ाई करेगा तो उसे रिवॉर्ड के रूप में 1 घंटे सुबह और शाम को मोबाइल चलाने को मिलेगा तो बच्चा प्रोत्साहित होकर मोबाइल से दूर हो सकता है। माता-पिता बच्चों को 90 - 60 - 30 के सूत्र के माध्यम से बच्चों को पढ़ाई से जोड़ सकते हैं। बच्चों को 90 मिनट से अधिक मोबाइल नहीं देखना चाहिए, सभी बच्चे विद्यार्थी भोजन करने के बाद 60 मिनट तक मोबाइल नहीं देखना चाहिए। सभी बच्चे और विद्यार्थी सोने से 30 मिनट पूर्व तक मोबाइल नहीं देखें। तो वे सीधे-सीधे पढ़ाई से जुड़ सकते हैं और मोबाइल से दूर हो सकते है- डॉ स्वाति वधवा, मनोरोग विशेषज्ञ, जिला चिकित्सालय, नीमच मोबाइल से बच्चे मानसिक रोगी बन सकते हैं - यदि सामान्य बच्चों लगातार मोबाइल के संपर्क में रहेंगे तो उनकी आंखोंकी रोशनी कमजोर होना हृदय की शक्ति कम होना कान के सुनने की शक्ति कम होना मानसिक विकास बौद्धिक विकास शारीरिक विकास रोक सकता है बच्चा बाहर की दुनिया से दूर हो जाएगा पढ़ाई में मन नहीं लगेगा ऐसे में बच्चों को आउटडोर शक्तिशाली खेल से जोड़कर स्वस्थ बनाया जा सकता है। खेल से शारीरिक थकावट होगी पसीना निकलेगा तो बच्चा मन से स्वस्थ रहेगा और उसकी पढ़ाई में भी मन लग सकता है-डॉ महेंद्र पाटील, सिविल सर्जन, जिला चिकित्सालय नीमच, पुलिस विभाग की अभिभावकों से अपील - अभिभावक अपने बच्चों को को गेम्स खेलने के लिए ऐसे मोबाईल देने से बचें जिसमें बैंकों खातों से संबंधित जानकारी/युपीआई/वालेट हो। अभिभावक समय समय पर अपने बच्चों के मोबाईल को चेक करते रहे तथा बच्चों की गतिविधियों पर सतत् निगाह रखें। बच्चों के ऑनलाइन गेम्स खेलने के दौरान इस बात का धयान रखें कि अपनी व्यक्तिगत जानकारी आपका बच्चा शेयर तो नही कर रहा है तथा इस बात का भी ध्यान रखे कि बच्चा परिचित बच्चों के साथ ही ऑनलाइन गेम्स खेले। ऑनलाइन गेम्स खेलने के दौरान थर्ड पार्टी एप्स का उपयोग नही करें। ऑनलाइन गेम्स के दौरान धोखाधड़ी का शिकार होने पर तत्काल 1930 पर कॉल कर अथवा नजदीकी पुलिस थानें / सायबर सेल में अपनी शिकायत दर्ज करवायें।

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