नई दिल्ली। मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने बहुमत से जयदा बीटें हासिल की है। इन तीनों राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में हुए जातीय सर्ववाण के बाद इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। विपधी पार्टियों का दावा या कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी करे नुव्रन्सान ही सकता है। लेकिन नतीजा कुछ और ही आणा। बीजेपी ने अपने चिर-परिचित वोट बैंक के अलावा यही संख्या में ओबीसी बोट भी हासिल किया। अपने बिज़नेस को फाइनेंशियल कंसल्टेंसी के रूप में विकसित करें बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के मादिवासी इलाकों में भी इस बार माथिकांवा सीटें जीती, वहीं मध्य प्रदेशा में भी पार्टी को अभी-खासी संख्या में ओबीची समुद्राप का बोट मिला। नतीजों के बाद सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी ने क्या हिंदुता के मुद्दे के साथ-साथ विपक्ष को जातिमत राजनीति में भी पीछे छोड़ दिया है? क्या विधानसभा चुनाव के नतीजे के आधार पर बीजेपी लोकभा चुनाव में भी बढ़त हासिल कर पाएगी या विपक्ष बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगा और ओबीसी वोट लोकसभा चुनाव के दौरान अलग तरीके से करम करेंगे?
'मंडल' ने कैसी बदली देश की सियासत 'जब तक समाज में विषयता है, तब तक समाजिक न्याय की आवश्यकता है। ये शब्द पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ओबीसी मानी बन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की जरूरत जाहिर करने के लिए कहें। चरिक्ष पकार नीरजा बौधी अपनी किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड में लिखती है, "अटल बिहारी कजपेयी के सब्दों से ये जाहिर होता है कि कैसे महल आयोग की सिफारिशों लागू होने के बाद इसने देश के राजनीतिक एजेंडा को बदल दिया। जाति समाज के एक वर्ग से अधिक राजनीतिक वर्ग के तौर पर देशी जाने लगी। मंडल आयोग ने क्षेत्रीय पार्टियों और जातिगत पमान से जुड़ी राजनीति को भी परख दिए। उत्तर प्रदेश और बिहार में आरजेडी, समाजवादी पार्टी, जनता दल युनाइटेड जैसी पार्टियों का कद बढ़ा। साथ ही छोटे-छोटे जाति आधारित समूह भी पनपने लगे। जैसे अकेले यूपी में ही राजभर समुदाय का प्रतिनिधित्य करने वाली पार्टी, कुर्मी समुदाय की बात करने वाले अपना दल और निषाद समुदाय की आवाज उठाने बाली पार्टी का जन्म हुआ। ये छोटी मारियाँ मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के लिए अहमियत रखने लगी। राजनीति की में धारा 1990 के दशक में बीपी सिंह की सरकार में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए लीकरियों और शैक्षणिक में आरक्षण की बान करने वाले बीपी मंडल आयोग की सिफारिश को जागू करने के बाद शुरू हुई थी। ये वो समय था जब भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर अभियान पर जोर दे रही थी, इसे मंडल की राजनीति कहा गया। वीपी सिंह के बाद आई हर सरकार ने मारक्षण का समर्थन किया। भारतीय जनता पार्टी भी हिंदुत्व की रागनीति को भार तो देती रही, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर पार्टी की राय अन्य पार्टियों के जैसी ही थी।
मुद्दा क्यों हुआ बेअसर साल 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार ने बीपी गडस की अमुवाई में आयोग का गठन किया। लेकिन सिफारिशों को 10 साल बाद बीपी सिंह ने लागू करवाया। ये कहा जाता है कि बीपी सिंह ने चुनाव में ओबीसी वोटबैंक को अपनी ओर लाने के लिए इस आयोग की सिफारिशे लागू की। पे वह समाज बीजेपी तीची सिंह की सरकार को समर्थन देने के साथ ही राम मंदिर अभियान पर भी ज़ोर दे रही थी। नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती है कि ओबीसी समुदाय ने आरक्षण को लागू करने वाले वीपी सिंह की अपने नेता के तौर पर स्वीकार नहीं किया, बल्कि मतदाताओं का झुकाव अपनी जाति से आने वाले नेताओं की जरा मादा दिखा। लेकिन बीपी सिंह के प्रेन्सले ने देश में नई ओबीसी लीडरशिप जरूर खड़ी कर दी, जो अगले दो दशক বয়া भारत की सजा का अहम अंग बने रहे। मुलापन सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, उमा भारती, कल्याण सिंह, शिवराज सिंह चौहान, अशोक गहलोत और अन्य कई नेताओं ने यूपी, बिहार, अध्य प्रदेश और राजास्थान में सरकार बलाई। धीरे-धीरे बीजेपी में भी पीढी का परिवर्तन हुआ। साल 2014 में ओबीसी समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। हिंदुना की राजनीति करने बालों बीजेपी इसके बाद चुनाव-दर-चुनाव बढ़त ही हासिल करती रही।
2019 में फिर से केंद्र में मोदी सरकार चनी और इस दौरान कई राज्यों में भी पार्टी ने भारी बहुमत के साथ सत्ता पाई। इसी साल बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के अकड़े जारी किए गए और जब अगले महीने 22 तारीख को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। बिहार के सर्वे में सबसे अधिक 36.1 फीसदी आ अत्यंत पिछड़ा वर्ग की बताई गई। वहीं, कुल हिंदुओं की संख्या 82 पिसदी है। इसके बाद कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने देवाभर में जातिगत गणना का मुद्दा उठाया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस सर्वे का समर्थन करते हुए रत के जातिगन आँकड़े जानने की ज़रूरत बताई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का प्रण है जितनी भावादी, जाना ऐसा कहा जाने लगा कि बिहार में जातिगत सर्व के ऑकटों के सामने आने के बाद बीजेपी को चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है। जानकार इसे मंडल बनाम कमंडल राजनीति के दौर की नापसी के तौर पर देखने लगे। हालांकि, लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहे जा रहे पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों में में मुद्दा बेअसर दिखा। उन्हें अपने चुनावी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहा कि देश में सिर्फ बार जातियाँ है गरीब, किवान, महिला और युवा। उन्होंने कहा कि जाति सर्वेक्षण के जरिए देश को बाँटने की कोशिश हो रही है। हमके चाद जब बीजेपी में हुन जीनी राज्यों में मुख्यमंत्री और कर मुख्यमंत्रियों का चुनाव किया तो उसे 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष के जातीय मुद्दे को साधने की कोशिश के तौर पर देखा गया। शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जैसे दिमाज नेताओं को चुनने की बजाय पार्टी ने मोहन यादद भजन लाल शर्मा और विष्णु देव साप को मुख्यमंत्री के पद दिए हैं। हालाँकि, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता कपित श्रीवासाय की नज़र में मुख्यमंत्रियों के चुनाव के पीछे वजह जातीय समीकरण को साफ्ना नहीं बल्कि पार्टी में मोदी की हाँ में हाँ मिलाने वालों को अहम भूमिका में साना है।
मध्य प्रदेश की सीमा उत्तर प्रदेश से लगती है। ऐसे में मोहन पादग को एमपी का सीएम बना देने से बीजेपी यूपी और बिहार के पादयों का ज्यादा समर्थन लेने में कामयान हो सकेगी। इसपर कपिश श्रीवास्तव कहते हैं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को चुनकर किस तरह से गोदी-शाह ने अपने हाथ जला लिए, इसलिए इन्होंने तीनों जगहों पर बैकबैयर्स को फॉच्याई किया है, ताकि 2024 से पहले जहाँ पर हाँ में ही मिलाने वाले की नियुक्ति होने अपने सक्षम नेतृत्व को बेकनेचर बना दिया है।" बीजेपी की रणनीति ओबीची उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा रहे हैं। लेकिन बीजेपी ने पैर यादह ओबीसी के बीच एक मजबूत आधार बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी के यादव-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को पौधे लोड़ दिया है। साल 2019 में बीजेपी की जीत के पीछे पह वर्ग प्रमुख कारण रहा। मध्य प्रदेश में 50 निसदी गोबीसी मतदाता हैं। मध्य मदेख में बीजेपी की जीत में ओबीसी समुदाय के वोटरों की बही भूमिका रही है। पार्टी ने यहाँ ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को ही सीएम बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीस देवड़ा को डिप्टी सीएम बना दिया। छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाकों में मिली बढ़त को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इसी समुदाय के विष्णुदेव साप को सीएम पद दिया है। इसका फ़ायदा पार्टी को ओडिशा और झारखंड में भी हो सकता है, जहाँ अच्छी संख्या में आदिवासी है और लोकसभा चुनाव के बाद यहाँ भी विधानसभा चुनाव होने राजस्थान में भी पार्टी ने ब्राह्मण सीएम के साथ राजपूत और दलित समुदाय से जाने वाले दो डिप्टी सीएम भी नियुक्त कर दिए है। लेकिन क्या इन चेहरों के सहारे बीजेपी पादक मुनिम ममुदाय के बीच महबूत समर्थन एलने वाली और मंडल आयोग का समर्थन करने वाली समाजवादी पार्टी और जनता दल (आरजेडी) जैसे दलों को क्या पीछे तोड़ पाएगी? कपिन श्रीवासाव कहते हैं, "विल्कुना नहीं। अगर इन्हें वाकई ओबीसी या दलित समाज के लिए कुछ करना होता तो आप सिर्फ एक मुख्यमंत्री बैठाकर ये नहीं करते। आप जातीय जनगणना कराते।" लेकिन ओगीसी समुदाय के बीच बीजेपी के लगातार बढ़ते जनाधार के पीछे की वजह वरिष्ठ आरजेडी नेता शिग्रानंद तिवारी पोएम के इसी समुदाय से होने को मानते हैं। यह कहते हैं कि इससे बीजेपी को प्रनषदा पहुँच रहा ये कहते हैं, "मंडल समर्थक पार्टियों के बीच मतभेद हुए। इस मतभेद की वजह पिछड़ों की एकता खत्म हुई। उसको भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सराक जोड़ा। उत्तर पार्टी ने अपनी तरफ किया: पीएम मोदी अन्य पिछड़ा वर्ग प्रदेश में, बिहार में ओबीसी वोटरों को भारतीय जनता से आते हैं और इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी उळाती शिमानंद तिवारी कहते है कि हिंदूल का एजेजा और राष्ट्रवाद को बीजेपी ने देश का वैरेटिव बना दिया है। हालाँकि, इसको काउंटर किस तरह किया जाए, सवाल ये नेतृत्व परिवर्तन का प्रव्यदा?
बीजेपी के एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिशों का जिक्र करते हुए टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसीज के प्रोग्रेनार पुष्पेंद्र कुमार सिंह पार्टी की बदलती नीति को उसकी सफलता की वजह मानते हैं। यह कहते हैं, "मंडल की राजनीति ओबीसी की राजनीति है, पहले जो कमंडल की राजनीति थी वो सवणों की थी। लेकिन बीजेपी के अंदर में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है। बीजेपी के नेतृत्व में ओबीसी के लोग है। बीजेपी इसे खासतौर पर बहावा दे रही है। इससे मंडल की राजनीति के साथ वो मइनस्ट करने की कोशिश कर रही है। सका लाभ उसे हिंदी पट्टी में मिला है।" "मोदी ओबीसी समुदाय से आते है, लेकिन यह अगड़ों के बीच भी लोकप्रिय है। क्योंकि अगड़ी जातियों को गो यी अपील कर रही थी यह हिंदुत्व थी। ओबीसी पार्टी के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मध्य प्रदेश में अभी ही ओबीसी सीएम नहीं चुने गए बल्कि शिवराज सिंह भी ओबीसी हो थे। इसी बदला की रेखांकित करते हुए युष्मद्र सिंह कहते हैं. "बीजेपी ने अपने नेतृत्व में काफी परिवर्तन किया है, जिसकी वजह से ओबीसी समुदाय में उसकी पैक बड़ी है और उनके पास अगड़ी जातियों का एक स्थायी वोट बैंक है ही। कुल मिलाकर एक विजयी फॉर्मूला मिल गया है। उनका 40 से 45 फीसदी वोट बैंक तो कहीं नहीं जा विपक्ष के पास क्या कोई काट है? मध्य प्रदेश हो या राजस्व फिरतीय जीमों जगह चुनाों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लहाई थी। लेकिन इन राज्यों में विपक्ष व उठाया जाति का मुद्दा हम नहीं जाया। शिवानंद तिवारी इसकी वजह प्रेस के कच्छ में अस्पता को भी मानते हैं। वे कहते हैं, "मध्य प्रदेश का चुनाव हुआ। समको लग रहा था कि कांग्रेस आसानी से बहुमत पा लेगी। लेकिन ये कमलनाथ बागेश्वर बाबा वने भारती उतार रहे हैं। पे नरम हिंदुत्व क्या है? उनके यहाँ आप पार्टर्ड प्लेन से गए। इसके बाद उनकी आरती उतारी। ऐसे में क्या मुकाबला करेंगे आप भारतीय जनता पार्टी का? जब कांग्रेस को मुस्लिमों के साथ हमदर्दी रखने वाली पार्टी माना जाने लगा, तो राहुल गांधी को जनेऊ पहना दिया गया। कोई सरहता है ही नहीं।" विपक्ष के पास बीजेपी के इस विजय रथ को रोकने का क्या कोई फॉर्मूला है? इस पर कपिश श्रीवास्तव कहते हैं, "कड़ी कोई जीत रहा है तो उसे जीत में हर समुदाय का योगदान है। जब भी कोई पूर्ण बहुमत की सरकार बनती है, तो हर समुदाय बोट देता है। हाँ, ये जरूर है कि 'इंडिया के गठन के बाद अगर बदलों ने मिलकर इन पाँच राज्यों में भी चुनाव लड़ा होता, जो आज गतीने कुछ और होते।" वहीं, एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट, पटना के पूर्व निदेशक बीएम दिवाकर का भी मानना है कि कांग्रेस की बेरोजगारी गरीबी जैसे बुनियादी मुद्दों पर टिके रहना चाहिए। इसी की आगे का रास्ता तय होगा। यह कहते हैं, "राहुल गांधी अगर पिछड़ी जातियों की राजनीति करेंगे तो नहीं बलेगा। अगर वही बात लालू प्रसाद यादव कहकर आए होते तो असर पड़ता। अर्क है। पिछड़ी जातियों की राजनीति करनी होगी और माप अखिलेश राहुल यादव, लालू प्रसाद यादव की बात नहीं करेंगे तो नहीं होगा।
जनता अपना माइकन्न खोजती है और पिछड़ी जातियों के आइवन्न नहीं हैं। इसीलिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस का दांव नहींला।" बीजेपी के नेतृत्व में पिछड़े समुदाय की भागीदारी मढ़ी है लेकिन पार्टी की राजनीति अभी भी हिंदूत्य आधारित ही राजनीति करने वालों के हाथ में ही कमाल दे दिया है? है। तो लया में माना जाए कि बीजेपी ने मंडल की इसपर डीएन दिवाकर कहते हैं, "पहले भी बीजेपी ने दलित-आदिवासियों के बीच में भी उन्होंने हिंदुत्य के मुद्दे पर काम किया है। लेकिन वो मंडल की राजनीति नहीं थी. यो कमंडल का ही विस्तार है। आज भी बीजेपी अपनी कमंडल की राजनीति को उन जगहों तक ले जा रही है जहाँ पर मंडल की राजनीति होती है।" ये कहते हैं, "बीजेपी मंडल और कमंडल की राजनीति नहीं कर रहीं बल्कि मंडल का कमंडलीकरण कर रही है। कमंडल का विस्तार करने के लिए जो भी पार्टी को करना पड़ता है वह कहती है। विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए भले ही उशाहजनक रहे हो, लेकिन क्या लोकसभा चुनाव में स्थिति यही रहेगी या विपक्षी गठबंधन कर कोई काट निकाल फरेंगे, में देखने वाली बात होगी।