कुकडेश्वर । शासन दिपीका महआसतइवर्यआ प पू श्री जय श्री जी मसा का संक्षिप्त विवरण के साथ जगह जगह गुणानुवाद सभा व चार चार लोगस्य से आंदराजंलि दी। ब्यावर समता भवन में बताया कि महा सति जी ने सजोडे दिक्षा अंगीकार कर आत्मा का कल्याण किया अपने पति धर्मेश के साथ शादी की प्रथम रात्री को वैराग्य की चर्चा करने से दोनो ने लिया था दीक्षा का संकल्प.... व्यसन मुक्ति प्रणेता, परमागम रहस्यज्ञाता, आचार्य श्री रामेश की आज्ञानुवर्तिनी शिष्या आदर्श त्यागी शासन दीपिका महासती श्री जयश्री जी म. सा. का संथारा दिनांक 13-12-2023 को सायंकाल लगभग 4 बजे सीज गया है।म सा समता भवन महारानी फार्म दुर्गापुरा मे ही विराज रहे थे। जहां पर इलाज चल रहा था। आदर्श त्यागी म सा ने सजोडे से दीक्षा ली थी पति शासन प्रभावक श्री धर्मेश मुनि जी म सा चार साल पहले देवलोक हो गये थे। इनकी शादि के प्रथम रात मे पति से वैराग्य की चर्चा करते हुए दीक्षा लेने का सकंल्प लिया बाद में उन्होने आचार्य श्री नानेश के समक्ष उपस्थित होकर दीक्षा के भाव प्रकट किये और रायपुर छतीसगढ मे फागन बदी 9 सवंत 2023 दिनांक 4/3/1967 को अपने पति के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली थी। यह उनका 57 वां दीक्षा पर्याय वर्ष चल रहा था। प्रवचन के दौरान शासन दीपक श्री हेमंत मुनि जी म सा ने कहा महासती जयश्री जी ने संथारे को संगीत बनाकर अंतिम समय अपनी मृत्यु को महोत्सव मे बदल दिया। भगवान महावीर गोतम को कहते हैं गोतम तू समय मात्र का प्रमाद मत कर बाहर क्या हो रहा यह महत्व नही अपने अंदर क्या हो रहा उस महत्व पर ध्यान देवें। म सा ने कहा साधु को जाग्रति रहती कब क्या करना वह सदेव आत्म समाधि मे जीना सिखते रहे। भजन के माध्यम से बताया "तेरे सुख की ऐक ही दशा तू भीतर आ तू भीतर आ"साधु धर्म आचरण से ढता हुआ चलते हुए महावीर है। जग जा रे चेतन जगने मे सार है, जग गयी दुनिया हुई भव पार हैं। उक्त अवसर पर श्री हिंमाशु मुनि जी म सा ने कहा मरने की कला कौन सी होनी चाहिए। मरने की कला संथारा है जो सिद्ध गामी बना देता है। संथारे मे किसी का सहारा नही ले सकते। जयश्री जी महा सतिया जी थी जयश्री का मतलब लक्ष्मी होता है वह पण्डित मरण हो या अंतिम समय संथारा लेकर महोत्सव बना लिया क्यों कि संथारा मरने की कला है। साध्वी प्रेक्षा श्रीजी म सा ने कहा वह जो अंतिम समय मे भावना भावे मेरी मृत्यु महोत्सव बने जैसे जयश्री जी की बनी छोड तू झंजाल तू तेरी संभाल जयश्री म सा का जम्बु धर्मेश मुनि था। दोनो एक दूसरे को समझाते रहें दीक्षा लेकर अपने जीवन को जगाकर हर समय साधना करते रहे। इसी प्रकार कई शहरों व नगर, गांव में जैन संघो द्वारा गुणानुवाद सभा व लोगस्य, नवकार आराधना के साथ श्रृंध्दाजली दी। इसी प्रकार जयपुर में देश भर से श्रावक श्राविका व साधुमार्गी जैन संघ अभा वर्षीय साधुमार्गी जैन संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की उपस्थिति में चकडौल यात्रा निकाली समता भवन महारानी फार्म से होकर मुख्य मार्ग से निकाली गई व महारानी फार्म मोक्षधाम Esze जयपुर में अंतिम विदाई दी। अंत मे धर्माराधना चार चार लोग्गस का ध्यान करवाया गया।