पवित्र और शुद्ध आहार मोक्ष द्वार का प्रथम प्रवेश द्वार - आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा प्रवाहित

Neemuch headlines November 4, 2023, 5:40 pm Technology

नीमच । मनुष्य जीवन में जैसा वह आहार ग्रहण करता है वैसे ही उसके विचार उत्पन्न होते हैं। आहार शुद्ध है तो सत्व शुद्ध है। जो इंद्रिय भी पवित्र रहती है। पांचों इंद्रिय पवित्र रहती है तो भक्ति तपस्या शांतिपूर्वक सफलता के साथ पूरी होती है। सत्व शुद्ध है तो सब कुछ शुद्ध होता है। आहार सात्विक है तो विचार भी सात्विक होंगे। यदि आहार तामसिक है तो विचार भी तामसिक होंगे।

इसलिए सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए तभी मन पवित्र होगा और पवित्र मन ही आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आत्मा के उत्थान के लिए मोह का त्याग करना आवश्यक होता है। सद्भावना ज्यादा होगी पुरुषार्थ उतना ही ज्यादा होगा। घर परिवार में आदर प्रेम सद्भाव ज्यादा होगा तभी सभी कार्य समय पर पूर्ण होंगे जितना आदर ज्यादा होगा उतना ही पुरुषार्थ ज्यादा होगा। व्यक्ति हर कार्य के लिए सोचता है कि बाद में करूंगा इसी कारण व्यक्ति का जीवन पिछड़ जाता है। संसार में धर्म कर्म बिना समय गंवाए ही शीघ्र करना चाहिए तभी उसका फल मिलता है। संसार के प्रति राग रखेंगे तो धर्म कर्म पूर्ण नहीं हो सकता है। शरीर को महत्व देंगे तो राग बढ़ेगा जो क्रिया पाप करने वाली है । इसका ज्ञान हमें होना चाहिए और जीव दया का पालन करते हुए संपूर्ण संसार में जीवन यापन करना चाहिए। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है। वैसे-वैसे उसे शुद्ध आहार का ज्ञान होता जाता है। आहार से ही परिग्रह उत्पन्न होता है। इसलिए आहार शुद्ध होना चाहिए। तेल घी और घरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए तभी भक्ति और तपस्या हो सकती है। सच्चे श्रावक को जमीन कंद त्याग कर रात्रि भोज का त्याग करना चाहिए तभी उसके जीवन का कल्याण हो सकता है। वृक्ष का पानी से, पशु का पेट से, और श्रावक का धर्म पूर्ण विवेक से जीवन सफल होता है। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

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