चेक बाउंस होने की दशा में कार्यवाही के प्रावधान, कानून क्या कहता है.?, जानिए हाईकोर्ट एड.प्रवीण कचोले से

Neemuch headlines March 29, 2023, 8:01 am Technology

जब कोई एक व्यक्ति/कम्पनी किसी अन्य को यह भरोसा दिला कर की चेक बैंक में प्रस्तुत करने पर सीकर जावेगा जिसके बाद जब निर्धारित तिथि के अन्दर, बैंक में चेक लगाया जाता है और किसी भी कारण से चेक अनादरित हो जाता है इसे चेक का अनादरण/ चेक बाउंस कहते है। तब हमे डरना नही चाहिए, धैर्य से काम लेना चाहिए व कानून की सहायता से जल्द ही अपना पैसा सामने वाले से लेने हेतु विहित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए । चेक लगाने की समय सीमा कोई भी चेक को, चेक पर लिखी तिथि से तीन महीने के भीतर बैंक में प्रस्तुत कर सकता है, अर्थात चेक की वैधता की समाप्ति के साथ, उसके साथ जुड़े व्यक्ति के सभी कानूनी अधिकार भी समाप्त हो जाते है । जैसे – चेक पर तिथि –10/07/2022 लिखी गई हो, तो 10/10/2022 तक ही चेक को बैंक में प्रस्तुत किया जा सकता है. उसके पश्चात उसकी कोई वैधता नही रहेगी ।

कानूनी नोटिस / सुचना की समय सीमा :-

जैसे ही चेक अनादर हो, उसके ठीक 30 दिनों में सामने वाली पार्टी/ प्रतिवादी को कानूनी सूचना देना अनिवार्य है, उसमे 15 दिनों का समय प्रतिवादी को देना भी अनिवार्य है। अर्थात सुचना के बिना केस फाइल नही किया जा सकेगा और करने का प्रयत्न भी किया गया तो वह स्वतः जज से ख़ारिज कर दिया जायेगा ।

अनादर की वजह :-

बैंक अकाउंट बंद करवा दिया गया हो पहले से ही बैंक अकाउंट बंद था और बंद अकाउंट का चेक दिया गया था। चेक देने वाले ने चेक पर रोक लगवा दी गई हो, चेक पर हस्ताक्षर गलत या पुरे ना हो या मैच ना होना ,आदि।

नोटिस / सुचना के समाप्ति के पश्चात केस फाइल करने की समय सीमा :-

नोटिस के 15 दिनों का नोटिस पीरियड ख़त्म होने के पश्चात, यानी चेक अनादर के 45 दिनों में कोर्ट में केस फाइल कर देना ही चाहिए । 1 माह के अन्दर केस को फाइल करना अनिवार्य है, इस समय सीमा समाप्ति के बाद धारा 138 NIA का केस फाइल नही किया जा सकता। परिसीमा समाप्त होने पश्चात - यदि समय सीमा समाप्त हो जाये तो केवल धारा 142 नेगोशिएबल इन्स्तुमेंट अधिनियम के तहत, कोर्ट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर, उसमे पूरी जानकारी, किस वजह से देरी हुई एवं अन्य जानकारी भर कर, प्रार्थना की जा सकती है, उसके पश्चात , जज दोनों पार्टीज को बुला कर, पूछ कर, अपने समन्वय से निर्णय ले सकते है।

नोटिस :-

जिस पक्ष के माध्यम से चेक मिला था, उसे चेक अनादर के पश्चात 30 दिनों के भीतर सुचना देना अनिवार्य है. उस सुचना में सभी तथ्यों का स्पष्ट रूप से विवरण करना चाहिए . और सुचना में 15 दिनों का नोटिस पीरियड प्रतिवादी को देना भी अनिवार्य है. सुचना सदेव रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजना चाहिए. क्योकि उसमे AD वापिस आती हे जो कोर्ट में साक्ष्य के रूप में उपयोग की जा सकती है। जानकारी नोटिस में अनिवार्य रूप से डालनी चाहिए - जैसे – नोटिस भेजने वाले की जानकारी क्या , कब , कैसे - सेवा / वस्तु/ व्यवहार हुए थे, आपके और प्रतिवादी पक्ष के बीच चेक की डिटेल्स – नंबर, नाम, अमाउंट, बैंक डिटेल्स, तिथि एवं अन्य किस बैंक में चेक को कब लगाया , कब अनादर हुआ एवं अन्य, आपको अब कितने रूपये , नोटिस फीस, आदि।

कोर्ट फीस की गणना एवं जमा करना :-

यदि नोटिस के 15 दिनों में भी दूसरा पक्ष बताये गये पैसे वादी पक्ष को नही देता तो, वादी पक्ष को अपने दिए गये पैसो से सम्बंधित दस्तावेजो, नोटिस और साक्ष्यो के साथ अधिवक्ता से मिलना चाहिए और कोर्ट के समक्ष वाद प्रस्तुत की क्रिया करना चाहिए । कोर्ट फीस सभी राज्य के अनुसार अलग- अलग होती है । मध्य प्रदेश में न्यूनतम 200/- तथा चेक राशि की 4%-5% या अधिकतम 1,50,000/- हो सकती है । यह गणना मध्य प्रदेश राज्य 2011 संसोधन के अनुसार होती है। अगर कोई समय लेना चाहता हो तो वो भी धारा 33, कोर्ट फीस अधिनियम १८७० के तहत अधिवक्ता के माध्यम से अर्जी लगवा कर, कोर्ट फीस भरने के लिए समय प्राप्त कर सकता है ।

कोर्ट फीस में छुट :-

धारा 35 कोर्ट फीस अधिनियम 1870, में छुट का प्रावधान दिया गया है । यदि कोई पक्षकार की वार्षिक कमाई 1 लाख से कम है या बच्चा हो या किसी अपवाद में आता हे जो अधिनियम की में दिए गये है तो कोर्ट फीस में कुछ हद तक कटोती भी हो सकती है। छुट के लिए अधिवक्ता से आवेदन बनवा कर, सम्बंधित साक्ष्य की प्रतिलिपि सलग्न कर कोर्ट में प्रस्तुत की जा सकती है । यदि आवेदन से जज संतुष्ट होते है तो वह उसकी अर्जी स्वीकार कर कोर्ट फीस में छुट दे सकते है।

कोर्ट में केस फाइल करना :-

धारा 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के केस में पक्षकार अपना एवं साक्ष्यो का बयान शपथ पत्र के माध्यम से ही कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर सकते है अन्य कोई भी माध्यम से बयान प्रस्तुत करना कोर्ट में स्वीकार नही किया जा सकता । वैसे तो 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के अंतर्गत त्वरित कार्यवाहीया होती है और प्रायः मामले 1 साल के अंदर समाप्त होते हैं किंतु फिर भी चेक देने वाले  पक्षकार  के भाग जाने या उसका पता नहीं मिलने के कारण कई बार ऐसे प्रकरण सालों चलते रहते हैं।

कौन केस लगा सकता हें :-

नेगोशिएबल इन्स्तुमेंट अधिनियम के तहत केवल कुछ ही व्यक्तियों को अधिकार प्राप्त है जो चेक बाउंस का केस कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर सकते है. वादी स्वयं - वह व्यक्ति जिसका चेक दिया गया हो वह स्वयं अपने नाम से कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता के माध्यम से अपना वाद प्रस्तुत करवा सकता है । किन्तु सीमित अधिकारों के साथ अन्य व्यक्ति भी केस फ़ाइल कर सकते है जैसे वादी की जगह कोई दूसरा व्यक्ति जो केस के बारे में अधिक जानता है या किसी माध्यम से व्यवहार मे जुड़े हुए है, तो वह भी वादी की जगह केस लगवा सकता है जैसे पत्नी की जगह उसका पति, माँ की जगह उसका पुत्र एवं अन्य।

पॉवर ऑफ़ अटोर्नी :-

यदि कोई व्यक्ति अपनी जगह किसी ओर को पॉवर ऑफ़ अटोर्नी के माध्यम से नियुक्त करता है , तो वह व्यक्ति उस केस को कोर्ट के समक्ष ला भी सकता है और सभी अधिकार वादी के रूप में उपयोग कर सकता है जितने और जैसे की पॉवर ऑफ़ अटोर्नी में उसे दिए गये हो ।

अधिवक्ता :-

यदि वादी स्वयं आने में सक्षम नही है या किसी अन्य कारण से, किसी अधिवक्ता को अपनी जगह वाद के लिए अपनी शक्ति उपयोग के लिए प्रदान कर सकता है, तब वह अधिवक्ता पूरा केस कोर्ट के समक्ष वादी के नाम से लड़ सकता है और जरुरी फैसले भी ले सकता है।

मालिक/प्रोपराइटर :-

कोई व्यवसाय के लिए केस प्रस्तुत करने की दशा में जो भी व्यवसाय के मालिक है वह स्वयं व्यवसाय के नाम के साथ खुदका नाम लिखवा कर, व्यवसाय के हक़ के पैसे दिलाने के लिए, अपना वाद कोर्ट के समक्ष पुरे अधिकारों के साथ प्रस्तुत कर सकता है । म्रत्यु के प्रश्चात उसके वारिस- यदि वादी की म्रत्यु हो जाये तब उनके वैधानिक वारिस को पूरा अधिकार प्राप्त है की वे अपने मृत्य वादी के पैसे वसूलने के अधिकार का उपयोग स्वयं कर सकते है । कंपनी के नाम से उसके डायरेक्टर और संचालक - कोई कंपनी के लिए केस प्रस्तुत करने की दशा में जो भी कंपनी डायरेक्टर और संचालक है वह स्वयं कंपनी के नाम के साथ खुदका नाम लिखवा कर कंपनी के हक़ के पैसे दिलाने के लिए अपना वाद कोर्ट के समक्ष पुरे अधिकारों के साथ प्रस्तुत कर सकते है । यदि जिसने चेक दिया था वह स्वयं मर गया हो और उसके बाद उसका चेक अनादरित हुआ हो, इस दशा में धारा 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत केस नही लग सकता, प्रथम / वादी के समक्ष एक ही मार्ग शेष होगा की वे कोर्ट के समक्ष एक सिविल सूट प्रस्तुत कर सकता है। जब चेक की समय सीमा निकल जाए या नोटिस की भी समय सीमा निकल जाए या धारा 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के अंतर्गत केस लगाने से वंचित रह जाए तो ऐसी दशा में भी सिविल सूट किया  जा सकता है किंतु सिविल सूट में भी 3 वर्ष की समय सीमा है।

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