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आचार्य श्री नानेश के 23 वें पुण्य स्मृति दिवस पर 1121 श्रद्धालुओं ने एक साथ आयम्बिल तप का अनुठा आयोजन हुआ

विनोद पोरवाल October 13, 2022, 7:24 pm Technology

कुकड़ेश्वर। भगवान महावीर की आचार्य परम्परा के 81 वे पाठ को सुशोभित करने वाले आचार्य श्री नानालाल जी मा. सा. नानेश की 23 वीं पूण्य तिथि 12 अक्टुबर को उदयपुर सहित राष्ट्र भर में तप त्याग के साथ मनायी गयी।

आचार्य श्री नानेश के देवलोक पश्चात् आचार्य श्री रामलाल जी मा. सा. रामेश आचार्य पद पर सुशोभित हुए थे संयोग से इस वर्ष चातुर्मास हेतु स्वयं आचार्य श्री रामेश उदयपुर के सेक्टर 4 जैन स्थानक भवन में 16 साधु व सेक्टर 4 के विभिन्न भवनो मे 74 साध्वी कुल 90 ठाणा विराज रहे हैं। आप सभी के सान्निध्य मे आचार्य श्री नानेश की 23 वें पूण्य स्मृति दिवस को गुणानुवाद सभा व सामूहिक आयम्बिल तप करके मनायी गयी।

सर्वप्रथम प्रातः नानेश चालीसा व नानेश चिन्तनमणियों का पठन करके गुणानुवाद सभा रखी उक्त अवसर पर आचार्य श्री रामेश ने कहा कि आचार्य श्री नानेश के जिवन पर विशेष प्रकाश डाला व बताया कि आप श्री समता रखने, विवाद न करने सहित अनेक गुणो के धारी ध्यान योगी थे।

सभा को संत हेमगिरी , आदित्य मुनि व लाघन मुनि सहित कई सतिया जी ने भी सम्बोधित किया। उक्त अवसर पर सामूहिक आयम्बिल तप का आयोजन जैन परम्परा मे अनेक तप त्याग होते हैं जिनकी नियत नियमावली रहती है। ऐसा ही एक तप आयम्बिल तप इसे "स्वाद विजय का तप" भी कहा जाता है।

आचार्य श्री नानेश की पुण्य स्मृति दिवस पर उदयपुर सहित देश भर मे आयम्बिल तप की आराधना बड़ चड़ कर की गई। उदयपुर मे आयम्बिल हेतु 1008 तप का लक्ष्य निर्धारित था गुरु देव का प्रताप परन्तु वह भक्त गण श्रद्धावत हो 1121 श्रद्धालुओ ने इस तप किया।

इसी कड़ी में देश भर में साधुमार्गी जैन संघ के द्वारा विराजमान संत,सतियो के सानिध्य में गुणानुवाद सभा व तप हुए।

आयम्बिल तप नही आसान :-

दरअसल आयम्बिल स्वाद विजय का तप है जिसमे पुरे दिवस मे एक बैठक पर एक बार ही भोजन कर सकते है तथा भोजन भी ऐसा जिसमे तेल घी शक्कर मिर्च मसाला नमक आदि का उपयोग नही किया जा सकता मतलब की रुखा सुखा भोजन करना। यही स्वाद विजय का तप है। हजारो सालो से चले आ रहे।

इस तप की जैन धर्म मे बडी महत्ता है :-

इस तरह के तप को उदयपुर मे 1121 से अधिक श्रद्धालुओं ने किया प्रवचन सभा मे पहले आयम्बित तप के पच्छखाण हुए तथा सभी तपस्वीयो ने सामुदायिक भवन मे सामूहिक रुप से आयम्बिल तप किया। प्रश्न यह कि आयंबिल आराधना करने से क्या लाभ होता है। उत्तर आयंबिल में श्रंद्धा और समझ हो तो वह सम्यक् रुप परिणाम देता है I

आयंबिल से आत्मशक्ति बढती, अनंत कर्मों का क्षय होता है, मन पर काबू पा सकते, विघ्नों को हराने का श्रेष्ठ उपाय और उच्च गोत्र कर्म का बंध होता है I आयंबिल निकाचित कर्मों को रोकता है I आयंबिल आहार के प्रति लालसा का मारक हैI आयंबिल आहार के प्रति आसक्ति को तोडता है I आयंबिल से अनंत जीवों को अभयदान दे सकते है I आयंबिल से अनादि अनंत काल के अंतराय दूर होते है I

आयंबिल, अनासक्ति से अरिहंत तक ले जानेवाली आराधना है।

आयम्बिल तप के नियम :-

जिस दिन आयम्बिल करना हो,उसके ठीक पिछले दिन के सूर्यास्त से लेकर आयम्बिल वाले दिन के सूर्योदय तक भी चौविहार त्याग होना चाहिए।आयम्बिल में गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंग, उड़द, तुअर, मसूर, चना आदि धान्य से निर्मित रोटी, थुली, दलिया, खिचड़ी, खाखरा आदि अचित्त पदार्थ ही ग्रहण किये जा सकते है।

आयम्बिल में सभी तरह के विगय,सभी तरह के नमक, मिर्च-मसालों, अथाना मिर्च, काली मिर्च, नींबू, हरी सब्जी, फल (फूट), ड्राइफ्रूट, मुखवास, पापड़ - चिप्स, केर, मैथी आदि व दवाई का सेवन वर्जित है। ऐसे कठिन तप के साथ आचार्य श्री नानेश की पुण्यतिथि व आचार्य श्री रामेश की आचार्य पदवी दिवस मनाया गया देश भर में इसी क्रम मेंअब आचार्य श्री नानेश की स्मृति मे 16 अक्टूबर को रक्तदान शिविर का आयोजन सेक्टर 4 अटल सभागार मे होगा साथ ही देश भर में साधुमार्गी जैन संघ द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा।

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