धर्म प्राप्त करना ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है-त्यागी जी चन्द्रसेन जी

प्रदीप जैन September 5, 2022, 9:49 am Technology

 सिंगोली। दशलक्षण पर्व के पांचवें दिन श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में श्रद्धेय त्यागी जी श्री चंद्रसेन जी ने प्रवचन करते हुए बताया है कि धर्म दस नहीं होते हैं धर्म तो एक वीतराग भाव है दस तो धर्म के लक्षण हैं। तत्वों के अभ्यास से जब जीव की श्रद्धा गुण कि पर्याय सम्यक होती हैं तो आत्मा के सभी गुण सम्यक दशा को प्राप्त होते हैं। सम्यक दृष्टि के जीवन में श्रद्धा गुण पूर्ण शुद्ध हो जाने पर भी ज्ञान चारित्र आदि गुणों कि शुद्धि में क्रम पड़ता है किन्तु अल्प काल में पुर्णता प्राप्त कर मोक्ष दशा यानी (अतिइंद्रिय परम सुख की दशा)को प्राप्त होता ही हैं।उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव शौच सत्य आदि चारित्र गुण कि पर्याय है इनको पूर्ण रुप से तो मुनिराज जी के जीवन में प्रगट होती है परन्तु गुणस्थान प्रमाण आंशिक शुद्धि ग्रहस्थो के जीवन में भी होती हैं।आपने बताया कि दश धर्म में प्रथम तीन उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव तो आत्मा के भाव रुप है उत्तम शौच, सत्य,संयम,तप,त्याग धर्म को उपाय(साधन)के रुप समझना चाहिए, ऐसे भाव और उपाय से आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य जीवन में उपेय (साध्य )रुप में प्रकट होते है। राहुल भैया रानीपुर द्वारा भी स्वानुभव कैसे करना चाहिए इस संबंध में ज्ञान कराया जा रहा हैं। l रात्रि में प्रवचनो के उपरांत कविता बागड़ियां और अपुर्वा ठोला के द्वारा बच्चों में ज्ञान वर्धक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा है। उपरोक्त जानकारी श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के ट्रस्टीयो द्वारा दी गई है।

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