हाल ही में संपन्न हुए खेलों के महाकुंभ यानी टोक्यो ओलंपिक में भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमों का प्रदर्शन शानदार रहा।
महिला टीम ने बेहतरीन प्रदर्शन कर लोहा मनवाया, लेकिन पदक से चूक गई। वहीं पुरुष हॉकी टीम ने इतिहास रचते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया था। इस ऐतिहासिक प्रदर्शन ने एक बार फिर भारतीय हॉकी में नई जान फूंक दी है। भारतीय हॉकी टीम का इतिहास स्वर्णिम रहा है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद इस स्वर्णिम युग के दाता थे। चर्चित कवि डॉ. कुमार विश्वास ने स्टोरीटेल पर अपने शो ‘द कुमार विश्वास शो’ में मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े कई रोचक और अनछुए किस्से सुनाए।
हॉकी नहीं कुश्ती में जाना चाहते थे ध्यानचंद:-
मेजर ध्यानचंद के पिता हॉकी के एक अच्छे खिलाड़ी थे, मगर ध्यानचंद को बचपन में हॉकी से कोई लगाव नही था। उन्हें रेस्लिंग पसंद थी। जब वे सेना में भर्ती हुए तो शारीरिक गतिविधि के लिए उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया और यहीं से उन्हें हॉकी से लगाव हुआ और यही लगाव पहले शौक में और फिर जुनून में तब्दील हो गया।
दिलचस्प है ध्यान सिंह से ध्यानचंद बनने की कहानी:-
कुमार विश्वास बताते हैं कि मेजर ध्यानचंद का नाम पहले ध्यान सिंह था। नाम बदलने की कहानी दिलचस्प है। सेना में कार्यरत होने के कारण दिन में उन्हें हॉकी खेलने का समय नहीं मिल पता था। तब स्टेडियम में रात के वक्त लाइट की भी सुविधा नहीं हुआ करती थी। हॉकी के प्रति ध्यानचंद का ऐसा जुनून था कि वे अभ्यास के लिए चांदनी रातों का इन्तजार किया करते थे। जब दुनिया सो रही होती, तब वे अभ्यास करते। उनके इसी जूनून को देख कोच ने उनसे कहा था, ‘ध्यान वह दिन जरूर आएगा जब खेल की दुनिया में इस आसमान के चाँद की तरह इस पृथ्वी पर तुम चमकोगे’ और उन्होंने उन्हें एक नया नाम दिया ध्यानचंद, और यहीं से धीरे-धीरे वे ध्यानचंद के नाम से विख्यात हो गये। ध्यानचंद साल 1926 में पहली बार विदेश (न्यूजीलैंड) गए थे। यहां टीम ने एक मैच में 20 गोल कर दिया, जिसमें से 10 गोल तो अकेले ध्यानचंद ने किये थे।
न्यूजीलैंड में भारत ने 21 मैचों में से 18 मैच जीते और पूरी दुनिया ध्यानचंद को पहचानने लगी। कुमार विश्वास कहते हैं,‘ऐसा कहा जाता है कि उस समय ध्यानचंद का ऐसा खौफ था कि 1928 में ब्रिटेन की टीम ने ध्यानचंद की टीम से हार के डर से ओलंपिक से अपना नाम ही वापस ले लिया था।
जब फील्ड में नंगे पांव उतरे ध्यानचंद:-
कुमार विश्वास एक किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि तानाशाह हिटलर जर्मनी की टीम को किसी भी कीमत पर जीतते देखना चाहता था। भारत को हराने के लिए मैदान गीला कर दिया गया, ताकि सस्ते जूते पहनने वाले भारतीय खिलाड़ी अपने पांव नहीं जमा सकें। ब्रेक तक उनकी यह रणनीति काम भी आई, मगर ब्रेक के बाद स्टेडियम में बैठे दर्शक तब चौंक गये जब उन्होंने ध्यानचंद को नंगे पांव खेलते देखा। भारत ने जर्मनी को हिटलर की आंखों के सामने 8-1 से रौंद दिया था।
हिटलर ने दे दिया था फील्ड मार्शल बनाने का ऑफर:-
हिटलर बीच मैच से ही उठकर चला गया, मगर ध्यानचंद के प्रदर्शन से काफी प्रभावित हुआ और भारतीय टीम को भोजन पर बुलाया। ध्यानचंद से हिटलर ने पूछा, ‘हॉकी खेलने के अलावा क्या करते हो? तो जवाब मिला ‘मैं इंडियन आर्मी में लांस नायक हूं…।’
इसपर हिटलर ने कहा, ‘मेरे यहां आ जाओ, मैं तुम्हें फील्ड मार्शल बना दूंगा…। ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता से इनकार कर दिया था।’