इस वर्ष 5 जुलाई 2020, रविवार को आषाढ़ी पूर्णिमा है, इसी दिन गुरु पूर्णिमा और उपछाया चंद्रग्रहण भी है। जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है। वह 'गुरु' कहलाता है।
साधारणतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाकर शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है। सभी धर्मों में गुरु का अपनी-अपनी तरह से महत्व है, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में गुरु-मंत्र- देवता-यंत्र में कोई भेद नहीं माना जाता है बल्कि कुंडलिनी जागरण के लिए सर्वोपरि सहस्रार चक्र में गुरुदेव का वास बतलाया गया है, जो सबके आखिर में सिद्ध होता है। वे लोग बड़े सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें किसी सद्गुरु से दीक्षा मिली हो।
यहां पर ऐसे लोगों के लिए बतलाया जा रहा है जिन्हें गुरु उपलब्ध नहीं है और वे साधना करना चाहते हैं तथा जिनका प्रतिशत 99 से भी अधिक है। अत: वे निम्न प्रयोग लकर लाभान्वित हो सकते हैं।
कैसे करें पूजन :-
* सर्वप्रथम एक चावल की ढेरी श्वेत वस्त्र पर लगाकर उस पर कलश-नारियल रख दें।
* उत्तराभिमुख होकर सामने शिवजी का चित्र रख दें।
* उस पर शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़कर श्रीगुरुदेव का आवाहन करें-
* 'ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।।'
* हे गुरुदेव! मैं आपका आवाहन करता हूं। फिर यथाशक्ति पूजन करें, नैवेद्यादि आरती करें।
* तथा 'ॐ गुं गुरुभ्यो नम: मंत्र' की 11, 21, 51 व 108 माला करें।
* यदि किसी विशेष साधना को करना चाहते हैं, तो उनकी आज्ञा मानसिक रूप से लेकर की जा सकती है।