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1750 की भयंकर त्रासदी से आज तक नहीं सीखा, प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बरकरार

Neemuch headlines August 6, 2025, 6:04 pm Technology

उत्तरकाशी के धराली में हाल ही में हुई प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। पहाड़ों से अचानक बह निकला पानी और मलबा एक सैलाब बनकर सब कुछ अपने साथ बहा ले गया। यह क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से अत्यंत जोखिम भरा माना जाता है।

वर्ष 1750 में भी यहां एक बड़ी त्रासदी हुई थी जब लगभग 2000 मीटर ऊंचाई से एक पहाड़ टूटकर तीन गांवों को भागीरथी नदी में समा गया था। इस हादसे ने आसपास के इलाके में लगभग 14 किलोमीटर लंबी झील बना दी थी। भू-वैज्ञानिकों की चेतावनी: भूस्खलन और बादल फटने का खतरा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक प्रोफेसर महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट ने बताया कि इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि भूकंप, भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। प्रोफेसर बिष्ट ने बताया कि 1750 में अवांडा का डांडा पहाड़ी का हिस्सा टूटकर भागीरथी नदी में समा गया था, जिससे नदी का प्रवाह बंद हो गया था। इसके अलावा हर्षित में सेना का कैंप पुराने ग्लेशियर एवलांच शूट के पास स्थित है, जहां मलबे का खतरा बना रहता है। भारी बारिश के दौरान यहां भूस्खलन की संभावना बनी रहती है। 1750 की भयंकर त्रासदी से आज तक नहीं सीखा, प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बरकरार आपदा प्रबंधन और पूर्व चेतावनी का महत्व 1978 में भी बादल फटने की वजह से डबरानी के पास कनोडिया गाढ़ में झील बनी थी, जो फटने पर जोशियाड़ा क्षेत्र में बड़े नुकसान का कारण बनी थी। लेकिन उस समय लोगों को पहले से सूचना मिलने की वजह से जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।

हालांकि, 1998 के बाद से इस क्षेत्र में बादल फटने और भारी बारिश की कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। बावजूद इसके प्रभावी आपदा प्रबंधन और पूर्व चेतावनी के उपायों को मजबूत नहीं किया गया है। 60 सेकेंड में तबाह हुआ धराली, हादसे वाली जगह का हेलिकॉप्टर से सीएम धामी ने लिया जायजा अवैध निर्माण और पर्यावरणीय नुकसान प्रोफेसर बिष्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि उत्तरकाशी क्षेत्र में बढ़ते अवैध निर्माण कार्य आपदाओं को और भी भयानक बना रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में बिना उचित अनुमति के निर्माण कार्य भूस्खलन का जोखिम बढ़ाते हैं। ये निर्माण न केवल प्राकृतिक जल निकासी को प्रभावित करते हैं, बल्कि बारिश के दौरान मलबे और पानी के बहाव को भी तेज कर देते हैं। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में और भी ज्यादा नुकसान हो सकता है। उत्तरकाशी के धराली और आसपास के क्षेत्र की प्रकृति ने बार-बार साबित किया है कि यहां आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में प्रशासन, सरकार और स्थानीय लोगों को मिलकर सतर्क रहना होगा, पर्यावरण संरक्षण करना होगा और अवैध निर्माणों पर रोक लगानी होगी ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।

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