मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैलम पहाड़ी पर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां मल्लिकार्जुन (मालियों के राजा) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है।
ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर त्रेता युग में बना था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती यहां मल्लिकार्जुन नाम के एक राजा के रूप में रहते थे। एक बार, भगवान शिव ने यहां एक तपस्या की थी। तपस्या के दौरान, उन्होंने अपनी सभी शक्तियों का त्याग कर दिया और ज्योतिर्लिंग का रूप धारण कर लिया।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अब ऐसे में इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कहानी क्या है और महत्व क्या है।
इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में:- मल्लिकार्जुन में मल्लि इसका अर्थ है माली या फूलों का राजा। वहीं कार्जुन इसका अर्थ है अर्जुन यानी कि महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा या जो युद्ध में जीतता है। वहीं मल्लिकार्जुन नाम का अर्थ है "फूलों का स्वामी"।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव यहां मल्लिकार्जुन नाम से विराजमान हैं। मंदिर द्रविड़ शैली में बना हुआ है और इसमें भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियां हैं। बता दें, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।
यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहां है?:-
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह श्रीशैलम नामक शहर में स्थित है। यह दक्षिण भारत में स्थित है, और हैदराबाद से लगभग 210 किलोमीटर और गुंटूर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई?:-
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश का प्रथम विवाह हो जाने से कार्तिकेय बेहद नाराज हुए और वह सभी से नाराज होकर क्रोंच पर्वत चले गए। कई देवताओं ने भी कार्तिकेय को वापस लाने के लिए चेष्टा की। लेकिन कार्तिकेय ने सबकी प्रार्थनाओं को अस्वीकार कर दिया। मां पार्वती और भगवान शिव पुत्र वियोग की कहानी से बहुत दुखी हुए और फिर दोनों स्वयं क्रोंच पर्वत चले गए। माता-पिता के आगमन को सुनते ही कार्तिकेय और दूर चले गए। आखिर में पुत्र के दर्शन की लालसा में भगवान शिव ज्योति रूप धारण कर उसी पर्वत पर विराजमान हो गए। उस दिन वहां प्रादुर्भूत शिवलिंग मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ।
शास्त्रों में पुत्र स्नेह के चलते शिव-पार्वती हर पर्व पर कार्तिकेय को देखने के लिए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या तिथि के दिन स्वयं भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती आते हैं। वहीं ऐसा कहा जाता है कि इसी पर्वत के पास चंद्रगुप्त नामक एक राजा की राजधानी थी। एक बार उसकी कन्या किसी विपत्ति से बचने के लिए अपने माता-पिता के महल से भागकर इसी पर्वत पर चलीं गई। वहां जाकर वो वहीं के ग्वालों के साथ दूध और कंदमूल से अपना जीवन निर्वाह करने लग गई। इस राजकुमारी के पास एक श्यामा गाय थी। जिसका दूध प्रतिदिन कोई दुह लेता था। एक दिन उसने चोर को दूध दूहते हुए देख लिया। जब वो क्रोध में उसे मारने दौड़ी तो गौ के निकट पहुंचने पर शिवलिंग के अतिरिक्त उसे कुछ न मिला। बाद में भगवान शिव भक्त राजकुमारी ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया। तभी से भगवान मल्लिकार्जुन वहीं प्रतिष्ठित हो गए।