नीमच । जैन तीर्थों की रक्षा के लिए साधु संतों ने कठिन तपस्या की और सैकड़ो साधुओं की बलि भी अन्य धर्म के लोगों ने युद्ध में हत्याएं कर दी थी। लेकिन साधु संतों ने तीर्थ स्थान की रक्षा के लिए अपने पुरुषार्थ व पुण्य के संघर्ष को जारी रखा और जैन तीर्थ की रक्षा करने में सफल हुए।
आने वाला युग खतरनाक है इसलिए जैन अल्पसंख्यक नहीं बने सनातन धर्म के साथ रहे। अंग्रेजो ने अपना शासन चलाने के लिए भारत में सभी धर्म का विभाजन करवाया था जो समाज को नष्ट करने की एक साजिश थी लेकिन ऋषि मुनियों ने अपनी तपस्या के बल पर इस साजिश को विफल कर दिया और आज भी भारत में सभी धर्म अपने-अपने मार्ग पर चलकर अपने-अपने धर्म की रक्षा करने के लिए अग्रसर है। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज के शिष्य पन्यास मुनी तत्व रुचि विजय जी मसा ने कहीं । वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ ट्रस्ट पुस्तक बाजार के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में धर्म आगम पर्व पर नवकार के 68 अक्षर 68 तीर्थ ऐतिहासिक वृत चित्र प्रसारण के मध्य आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि पिता की आज्ञा पुत्र नहीं मानता है तो पुत्र को साथ में तो रखना पड़ता है लेकिन उससे अलग नहीं हो सकते इसी प्रकार जैन धर्म और हिंदू धर्म में कोई विवाद है तो लड़कर अलग नहीं होना है साथ रहकर ही समस्या का निराकरण करना है।
मुनि श्री ने पुणे तीर्थ आदिनाथ प्रतिमा, आचार्य हीरसेन सुरी जी द्वारा अकबर बोध, हरि सेन, शत्रुंजय तीर्थ, वालदीपुर तीर्थ, श्री बल्लभपुर तीर्थ गुजरात, आदि गिरी तीर्थ, मीनाक्षी मंदिर मदुरई, बद्रीनाथ, केदारनाथ, पार्श्वनाथ आदि के इतिहास की जानकारी पर वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रकाश डाला। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। प्रतिदिन सुबह 7.30 बजे प्रवचन करने के व साध्वी वृंद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया।