नीमच । मनुष्य सच्चा सुख चाहता है और लक्ष्मी कमाने की अंधी दौड़ में रात दिन सदैव भागता रहता है। लोगों को सब अच्छा और स्थाई सुख चाहिए लेकिन स्थाई पुण्य कर्म करने के लिए किसी के पास समय नहीं है। हम दिखावा नहीं करें और साधारण जीवन चाहिए तो हमारा कल्याण हो सकता है।
अन्याय अनीति से कमाया धन कभी सच्चा सुख नहीं देता है। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज के शिष्य तत्व रुचि विजय जी मसा ने कहीं । वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ ट्रस्ट पुस्तक बाजार के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में धर्म आगम पर्व पर आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि बही खाता लिखने की परंपरा प्राचीन काल में राजा विक्रमादित्य ने अपने शासन में नीति पूर्वक पुण्य कर्म के के साथ जन सेवा के लिए धन अर्जित करने के लिए प्रारंभ की थी।
राजा विक्रमादित्य को साधु संतों से प्रेरणा मिली कि वह शासन में जो भी कार्य करें जनकल्याण के लिए करें और उसमें पारदर्शिता रखें इसीलिए उन्होंने खाता बही लिखने का प्रचलन प्रारंभ करवाया। खाता बही में गौतम स्वामी की लब्धि उपकारों को याद रखना, शालीभद्र की बुद्धि मोक्ष को ध्यान में रखना, बाहुबली का बल जनकल्याण को ध्यान में रखना इस प्रकार हमारे पुण्य में कर्म बढ़े और सद्गति हो दुर्गति नहीं हो इसका पूरा ध्यान रखना तभी खाता बही लिखना सार्थक होता है। गरीब और परेशान किसानों से ब्याज नहीं लेना चाहिए और उनकी सहायता समय- समय पर करना चाहिए। यही सच्चा धर्म होता है। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई।
प्रतिदिन सुबह 7.30 बजे प्रवचन करने के व साध्वी वृंद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया