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विनय विवेक से संसार नंदनवन बन जाता है - साध्वी सुचिता श्रीजी मसा, उत्तराध्यन सूत्र श्रमण उत्सव प्रभु महावीर की अंतिम देशना स्वरूप उत्तराध्यन ग्रंथ पर विशेष प्रवचन, महावीर जिनालय में उतराध्यन सुत्र तप साधना

Neemuch headlines October 27, 2024, 7:06 pm Technology

नीमच । विनय और विवेक से भक्ति सत्संग का मार्ग मिलता है और भक्ति सत्संग से आत्मा पवित्र होती है, । पवित्र आत्मा से मोक्ष का मार्ग मिलता है । विनय विवेक के बिना मनुष्य पशु समान होता है। विनय विवेक से संसार नंदनवन बन जाता है। यह बात साध्वी सोम्यरेखा श्री जी महाराज साहब की सुशिष्या साध्वी सुचिता श्रीजी मसा ने कही।

वे जैन श्वेतांबर महावीर जिनालय ट्रस्ट विकास नगर श्री संघ के तत्वाधान में श्री महावीर जिनालय आराधना भवन विकास नगर नीमच में धर्म आगम पर्व उतराध्यन सुत्र के उपलक्ष्य में आयोजित धर्म सभा में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि संसार में संयम नियम पालन के लिए विनय विवेक प्रमुख प्रथम प्रवेश द्वार है। महावीर प्रभु का निर्माण कार्तिक वदि अमावस्या को मध्य रात्रि में हुआ था उसके पूर्व परमात्मा ने हम सभी के कल्याण के लिए लगातार 16 प्रहर, 48 घंटे अंतिम देशना प्रदान की थी जिसमें प्रभु ने अंतिम समय मानव जीवन का सार बताया उसमें उत्तराध्यन सूत्र में विनय जिन शासन में प्रवेश का प्रथम प्रवेश द्वार बताया गया है । इस विनय की भूमिका के ऊपर समग्र सृष्टि टिकी हुई है दूसरे अध्ययन में साधु के 22 परिषह के बारे मैं प्रकाश डाला गया है।

साधु के साधना जीवन में प्रवेश के बाद अनेक प्रकार के परिषह आते हैं। और उनको सहन करना ही सच्चा श्रमण होता है। इस प्रकार अचार के बारे में प्रभु ने अपनी अंतिम देशना के माध्यम से आत्म कल्याण का मार्ग दिखाया था जो आज भी प्रेरणादाई प्रसंग है। इस वर्षावास में सागर समुदाय वर्तिनी सरल स्वभावी दीर्घ संयमी प.पू. शील रेखा श्री जी म.सा. की सुशिष्या प.पू. सौम्य रेखा श्री जी म सा, प.पू. सूचिता श्री जी म सा, प.पू. सत्वरेखा श्री जी म सा आदि ठाणा 3 का चातुर्मासिक तपस्या उपवास जप व विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ प्रारंभ हो गया है श्री संघ अध्यक्ष राकेश आंचलिया जैन, सचिव राजेंद्र बंबोरिया ने बताया कि प्रतिदिन 9 बजे चातुर्मास में धार्मिक विषयों पर विशेष अमृत प्रवचन श्रृंखला का आयोजन हो रहा है।

समस्त समाज जनअधिक से अधिक संख्या में पधार कर धर्म लाभ लेवें एवं जिन शासन की शोभा बढ़ावे।

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