नीमच । मानव जीवन में आत्म कल्याण सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि आत्म कल्याण करना है तो भगवान के प्रति भक्ति भाव और तपस्या को जीवन में आत्मसात करें। भक्ति और तपस्या के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। त्याग बिना आत्म कल्याण नहीं होता है। यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही। वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन में आत्म कल्याण करना है तो मन में तपस्या और भक्ति का भाव लाए। जिस प्रकार दूध से दही, दही से छाछ, और छाछ से मक्खन से घी बनता है तभी वह शुद्ध गुणकारी होता है।
ठीक इसी प्रकार अशुभ से शुभ, शुभ से मन के भाव पवित्र होते हैं। भगवान के उपदेश का अनुसरण करें तो तीर्थंकर पद को प्राप्त कर सकते हैं तभी सच्चे सुख की प्राप्ति हो सकती है। और पवित्र भाव से आत्म कल्याण का मार्ग, वह मोक्ष मिलता है। जहां भगवान जन्म लेते हैं वहां कुबेर 3:50 करोड़ रत्नों की वृष्टि 15 माह तक करते हैं। भगवान को जन्म देने वाली माता को 17 सपने आते हैं। संसार में रहते हुए भगवान के उपदेशों का संयम के साथ पालन करें तो तीर्थंकर पद को प्राप्त कर आत्म कल्याण को प्राप्त कर सकते हैं। मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने कहा कि देव गुरु शास्त्र तीनों के प्रति भक्ति और पवित्र भाव होगा तो आत्मा का कल्याण अवश्य होता है। तत्वार्थ सूत्र का अध्ययन किए बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है। आत्मा का कल्याण निशिध्द बुद्धि से होता है पाखंड से नहीं। जीवन की राह में मन बाधा बनता है संसार की कोई वस्तु बाधा नहीं बन सकती मन के विकारों को दूर करना होगा मन की चंचलता का नाम परिग्रह है। जो व्यक्ति पत्नी के साथ शांति के साथ जीवन व्यतीत नहीं कर सकता उसको संसार में कहीं और शांति नहीं मिल सकती है।
परिवार में यदि खुशी के साथ रहना है तो छोटे-छोटे लड़ाई झगड़ों को छोड़ना होगा और नकारात्मक ऊर्जा से बचकर सदैव सकारात्मक प्रयास की ओर आगे बढ़ना होगा तभी जीवन में आत्मा का कल्याण हो सकता है। परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण के शताब्दी वर्ष मे परम पूज्य मुनि 108 श्री वैराग्य सागर जी महाराज एवं परम पूज्य मुनि 108 श्री सुप्रभ सागर जी महाराज जी का पावन सानिध्य मिला। उक्त जानकारी दिगम्बर जैन समाज एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स, मिडिया प्रभारी अमन विनायका ने दी।