नीमच ।अखिल भारतीय साहित्य परिषद् जिला नीमच द्वारा गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर एक विचार व कवि गोष्ठी का आयोजन रविशंकर वर्मा जी के निवास पर किया गया । सरस्वती पूजन के पश्चात गोष्ठी का प्रारम्भ रविशंकर वर्मा एवं श्रीमती वीना वर्मा द्वारा समवेत स्वरों में प्रस्तुत गुरु वंदना से हुआ। परिषद के जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश चौधरी ने उपस्थित सभी साहित्य मनीषियों का स्वागत करते हुए भारत में गुरु परम्परा को रेखांकित किया।
डॉ. संजय जोशी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज जो भी हम हैं गुरु के कारण हैं। गुरु के बिना माया मोह से छूटना मुश्किल हैं। गुरु अपने शिष्य से कुछ न चाहते हुए अपने शिष्य क़ो सब कुछ देना चाहता है। गुरु अपने शिष्य क़ो अपने जैसा बना देता है। समाज से संस्कार विलुप्त होने का प्रमुख कारण गुरु का सम्मान न होना हैं। गुरु की महिमा से दूर होने के कारण ही बच्चे सुसंस्कारीत नहीं हों रहे हैं। तुलसी ने भी मानस के प्रारम्भ में गुरु वंदना करते हुए गुरु की महिमा को रेखांकित किया हैं। दुनिया में आज सारे संबंधो क़ो नजर लग गई, आज केवल माता पिता और गुरु के रिश्ते बचें हैं। ये तीनो चाहते हैं की उनका बेटा या शिष्य उनसे बड़ा आदमी बने । रविशंकर वर्मा ने जीवन में गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मेरे जीवन में जो भी सकारात्मकता है वह मेरे गुरुजी के आशीर्वाद का परिणाम है। के के जैन ने कहा कि त्रिदेव भगवान विष्णु, शिव और ब्रम्हा से भी बड़ा गुरु को माना गयाहै | गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की और ले जाता है। गणेश खंडेलवाल ने कहा कि गुरु पूर्णिमा वेदद्व्यास जी का जन्मदिन है जिन्होंने सनातन नातन धर्म धर्म को वेद, पुराण और महाभारत जैसे ग्रन्थ हमे दिए। कवि गोष्ठी का प्रारम्भ सलीम भाई की कविता - मानव जन्म सुधारो, जन्म मनुष्य फेर मिले ना मिले, सत्य सबक हमको समझाकर आत्मज्ञान सुधारो से हुआ ।
श्रीमती वीना वर्मा ने अपनी कविता पायो जी मैंने गुरु रतन धन पायो, ये तन मेलो धुंधलो, गुरु ने ज्ञान क़ो साबुन लगायो, गुरू ने ज्ञान क़ो दर्पण दिखायो, गुरु ने परम सत्य बतायो द्वारा गुरु की महत्ता प्रस्तुत की अम्बिका प्रसाद जोशी ने अपनी कविता प्रस्तुत करते हुए कहा - आदिकाल से अद्यतन तक जिसका हुआ गुणगान, जिसका अपना कुछ नहीं शिष्य ही हैं निज सम्पत्ति अभिमान, दस दिशाओं में हों आपका मंगल गान | रविशंकर वर्मा की कविता का भाव था-गुरुवर आप मिले हैं ज़ब से जीवन नया मिला तब से। पंचमहाभूत और पंचकोष की बातो क़ो सहज समझाया हैं । कृति संस्था के अध्यक्ष बाबूलाल गौड़ का विचार था कि - भावनाओं का अथाह समुद्र हैं यह हमारा मन, सार्थक शब्द खोज लो कविता भी सुंदर बन जाती हैं., मन की धारा यह बन गई. लोगों के दिलो में खिल गई. गोष्ठी का समापन धर्मेंद्र शर्मा 'सदा' की कविता से कुछ यूँ हुआ शीश झुकाऊ मै श्रद्धा से और गुरुवर का गान करूं / जन्म दिया हैं मुझको जिसने वह माँ प्रथम गुरु मेरे मेरी/ गुरु पूनम की इस बेला में माँ का पावन ध्यान करूँ / इतना सामर्थ्य नहीं मेरा कि उनकी महिमा का गान करूँ। विचार और कवि गोष्ठी का समापन करते हुए ओमप्रकाश चौधरी ने अपने जीवन के अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने अपने पहले गुरु जिन्होंने मुझे अक्षर ज्ञान दिया से लेकर मेरे माता पिता, शिक्षक कार्य क्षेत्र के मेरे साथी, अधिकारी वे सब जिनसे मैंने अपने जीवनक्षेत्र में जो कुछ भी सीखा उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। अंत मैं आभार संस्था के महासचिव अम्बिका प्रसाद शर्मा ने व्यक्त किया। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साहित्य परिषद् की और से अम्बा माता आश्रम निपानिया में पूज्य गुरूजी महा मंडलेश्वर सुरेशानंद जी सरस्वती का पूजन कर उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस अवसर पर अध्यक्ष ओमप्रकाश चौधरी, महासचिव अम्बिका प्रसाद जोशी, राजेश जायसवाल, श्रीमती मीना जायसवाल आदि उपस्थित थे।