नीमच । बिना विवेक के सत्संग नहीं मिलता है और सत्संग के बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है। जिनवाणी को जीवन में आत्मसात किए बिना मोक्ष मार्ग नहीं मिलता है। है। संत दर्शन बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है। संसार में रहते हुए यदि मनुष्य जन्म मिला है और यदि हमने पुण्य कर्म नहीं बढाए और पाप कर्म करते रहे तो हमें अगले जन्म में पशु योनि में जन्म लेना पड़ता है। यह ने बात आचार्य जिन सुंदर श्री जी महाराज साहब कहीं। वे भीडभंजन पार्श्वनाथ मंदिर मंडल ट्रस्ट के तत्वावधान में रेलवे स्टेशन मार्ग स्थित त कृषि उपज मंडी के समीप जिन कुशल दादावाड़ी में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कलयुग में मनुष्य स्वार्थ में इतना डूब गया है कि आज आधुनिक युग में डॉक्टर ऑपरेशन के बहाने किडनी निकाल कर बेचने का पाप कर्म कर रहे हैं। चिंता का विषय है ।
पुण्य कर्मों को छोड़कर पाप कर्मों की ओर बढ़ने के कारण ही मनुष्य इस प्रकार के पाप कर्म करने की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए हमें आने वाली युवा पीढ़ी और छोटे बच्चों को धार्मिक संस्कार पाठशाला से जोड़कर पुण्य के मार्ग की ओर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा देना चाहिए तभी आने वाला भविष्य सुसंस्कारित युवा पीढ़ी वाला होगा। सत्संग और साधु संतों के सानिध्य के अभाव में ही युवा वर्ग में विवेक नहीं उत्पन्न हो रहा है इसलिए बिना विवेक के मनुष्य पशु के समान होता है। आज परिवार विखंडित हो रहा है पति-पत्नी, सास बहू, ननंद भोजाई, देवरानी जेठानी और भाई-भाई में विचार नहीं मिल रहे हैं। अविवेक से पाप उत्पन्न होता है इसलिए सदैव पुण्य कर्म करते रहना चाहिए। जिस व्यक्ति के जीवन में साधु संतों की अमृतवाणी का मार्गदर्शन मिलता रहता है वह व्यक्ति कभी भी पाप कर्म का अपराध नहीं करता है। मंदिर दर्शन पूजा विधान और दो पहिया वाहनों पर बैठने की मर्यादा शिष्टाचार का संस्कार अवश्य सीखना चाहिए। आधुनिक युग में महाविद्यालय में विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से रोजगार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर अवश्य बनाया जा रहा है लेकिन सांसारिक व्यवहारिक ज्ञान के कक्ष क्षेत्र में बच्चे आत्मनिर्भर नहीं बन पा रहे हैं क्योंकि व्यवहारिक ज्ञान का संस्कार सिखाया ही नहीं जा रहा है चिंतन का विषय है। विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण अवश्य होता है लेकिन उसमें संस्कार नीति का व्यवहार का ज्ञान नहीं होता है चिंतन का विषय है।
आधुनिक युग में बेटियों को शिक्षा का ज्ञान तो प्रदान किया जा रहा है लेकिन बेटियों को घरेलू कार्य, स्वादिष्ट तथा निरोगी काया रखने वाला भोजन निर्माण आदि की कला के संस्कार नहीं सिखाये जा रहे हैं चिंता का विषय है। प्रवचन सुनना सबसे बड़ी आराधना होती है। मनुष्य जन्म में मिलने के बाद पांच इंद्रिया व शरीर स्वस्थ है तो हमें पुण्य कर्म करना चाहिए। पाप कर्म से सदैव बचना चाहिए तभी अगले जन्म में म चना चाहिए मानव जन्म न्म मिलेगा। मनुष्य को पिछले जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में अवश्य मिलता है इसलिए सदैव पुण्य कर्म करते रहना चाहिए। पाप कर्म से सदैव बचना चाहिए। पूर्व जन्म में हमने तपस्या साधना की उसी का परिणाम है कि हमें इस जन्म में मानव कुल मिला है। गाड़ी धन संपत्ति सोना चांदी सब यही संसार में रह जाएगा हमारे साथ सिर्फ हमारे पुण्य कर्म ही साथ जाएंगे इसलिए सदैव पुण्य कर्म करने की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पाप कर्मों से सदैव बचने का प्रयास करना चाहिए तभी जीवन का कल्याण हो सकता है और आत्मा को मोक्ष मिल सकता है। पुण्य के लिए परिश्रम और पुरुषार्थ करना चाहिए। पुण्य को बचाना है तो पुण्य को अपना बनाना चाहिए। सिद्धि तपस्या अनमोल रत्न होती है। चातुर्मास के समय ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए इससे मन पवित्र रहता है और पाप कर्म कम होते हैं आचार्य श्री धर्म बोधी महाराज ने धर्म सभा में कहा कि तीर्थ यात्रा में दर्शन और के साथ धर्म अध्यात्म का लाभ भी लेना चाहिए इसके बिना तीर्थ यात्रा अधूरी होती में होने वाले पाप को रोकना होगा नहीं तो हमारे जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है।
हम जीवन पर्यंत संकल्प लेवे कि जीवन में कभी भी तीर्थ यात्रा में मजदूर डोली का उपयोग नहीं करेंगे और जीव दया का पालन सदैव करेंगे। श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्रीसंघ नीमच में चातुर्मास के लिए पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा एवं पूज्य आचार्य भगवंत श्री धर्मबोधी सुरीजी मसा आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। आचार्य भगवंत के प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। धर्म सभा में पूज्य आचार्य भगवंत ने कहा कि उनकी श्रीसंघ में सामूहिक सिद्धितप एवं अन्य तपस्याए कराने की भावना है। सामूहिक सिद्धितप जिनको भी करने की भावना हो तो उसके अभिमंत्रित पास आचार्य श्री द्वारा रवि पुष्य मुहूर्त के दिन से पास देना प्रारंभ किए गए। भीड़भंजन श्रीसंघ में चातुर्मास करने के लिए दो-दो आचार्य भगवंत, पन्यास रुचि विजय जी मसा, नय बोधी विजय जी मसा, मुनि कृपा रुचि विजय जी मसा, चंद्र प्रेम विजय जी मसा, दया निधान विजय जी मसा, देवार्य विजय जी मसा भगवंत एवं 8 भगवंतों के व दर्शन वंदन का लाभ नीमच वासियों को मिला। और उसके बाद दादावाड़ी में प्रवचन का धर्म लाभ लिया।
सभा का संचालन श्री संघ सचिव मनीष कोठारी ने किया।