नीमच। पड़ोसी मंदसौर जिला मुख्यालय पर पिछले पांच बार के विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया जी का कांग्रेस उम्मीदवार के सामने हारना नीमच में चर्चा का विषय बना हुआ है शेर की दहाड़ वाले जरूर है लेकिन कुछ स्वभाव से कोमल और नरम सुर वाले सहज भाव से जुड़े हैं। यशपाल सिंह जी, विशेष बात यह भी है कि वह मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी और विकाशशील नेता की सोच वाले हैं जो जनता की बात ऊपर तक पहुंचाकर अपने कर्तव्य का निरंतर रूप से निर्वहन करते हुए चल आ रहें हैं और संसदीय क्षेत्र में लोकप्रिय भी है, आख़िर क्यों इस बार अपने संसदीय क्षेत्र के अन्य निर्वाचित विधायको के साथ भोपाल जाने से वंचित रह गए, नीमच शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी यहीं चर्चा आम जनता जनार्दन के मुख पर है चुनाव परिणाम स्वरूप यह किसी को भी यह बात नहीं पच रही है की वहां जब नगर पालिका में 29 भाजपा पार्षद चुनाव जीतकर परिषद में पहुंचें है तो फिर विधानसभा भाजपा केसे हारी यह बड़ा सवाल खड़े करता हुआ नज़र आ रहा है। 29, में से 20 भाजपा के पार्षदों ने घरों से निकल कर अपने स्तर पर उन्होंने यशपाल सिंह जी के लिए जरा सी भी मेहनत करना क्यों मुनासिब नहीं समझा, क्या उनके कहने से लोग वोट नहीं देते तो फिर वह 29, भाजपा पार्षद पार्टी के कोन से बलिदान के प्रतीक चिन्ह लेकर चुनाव जीत परिषद मै पहुंचे थे। या फ़िर के यशपाल सिंह जी से दूरी बनाएँ रखी थी। खेर कारण जो भी हो परन्तु इतने बड़े चुनाव में जब चहूं और मोदी की ग्यारंटी पर जनता का जनादेश मिला है तो पुराने चावल यशपाल सिंह जी केसे हारे यहीं बात सबको खल रही है। हारजीत चुनाव की गतिविधियों का हिस्सा है। लेकीन इस स्थिति चिंताजनक बात बात यह है कि क्या लाड़ली बहनों का प्यार यशपाल जी को मिला नहीं या परिवर्तन की बयार थ। या कोई चूक उनसे कहीं हुई जिसका आंकलन करना यशपाल जी को अब जरूरी बन गया है