पवित्र आहार बिना साधु महात्मा जी का संयम जीवन सफल नहीं होता - आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा प्रवाहित

Neemuch headlines November 20, 2023, 6:18 pm Technology

नीमच । साधुजी को निर्दोष पवित्र आहार ग्रहण करना चाहिए । गरिष्ठ आहर साधु जी को दान नहीं करना चाहिए। यदि साधु महात्मा जी को गरिष्ठ आहार दान करेंगे तो उनकी साधुता नष्ट हो जाती है। साधु महात्मा जी पवित्र आहार नहीं लेते है तो उनकी तपस्या भक्ति पूर्ण नहीं होती है। ज्ञान भक्ति तब क्रिया ज्ञान सभी में एकाग्रता चाहिए और एकाग्रता पवित्र व कम आहार से आती है। पवित्र आहार के बिना साधु का संयम जीवन सफल नहीं होता है। यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक स्थित जैनआराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार में मानव जीवन में सभी दुखों का मूल कारण पाप कर्म होता है। इसलिए सदैव पाप कर्म से बचना चाहिए और पुण्य कर्म करते हुए जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। पाप कर्म से हटाने का मार्ग पूरी दुनिया में मात्र जैन शासन के पास है। पचखान संकल्प बिना पाप का नाश नहीं हो सकता है।

संसार में मात्र जिनशासन ही पाप से मुक्ति का मार्ग दिखाता है। कभी झूठ नहीं बोले, कभी चोरी नहीं करें, जीव हिंसा नहीं करें। इन सभी पाप कर्मों का पचखान लेकर जीवन जिए तो पाप कर्म नहीं होगा और पुण्य कर्म बढ़ेगा। त्याग का संकल्प नहीं हो तो आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है। पाप के पचखान नहीं करो तो पाप कर्म का फल मिलता रहता है वह कम नहीं होता है। संत श्री जी पचखान कर पाप से बचते हैं। पचखान से पाप नहीं होता है अपने कर्म से शुद्धि करण हो जाए। पाप कर्म से बचना चाहिए । जीव दया का संकल्प नियम पूर्वक होना चाहिए जीवन में कोई भी नियम नहीं तो उसका मूल्य नहीं होता है। उपवास की तपस्या का पचखान करते हैं तो वह पुण्य फल देता है। कोई अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति भी पचखान और नियम का पालन कर ले तो उसकी भी आत्मा का कल्याण हो सकता है।

माता-पिता को धर्म संस्कार संयम नियम का ज्ञान होने के बावजूद भी बच्चे संस्कारहीन क्यों बन रहे हैं आधुनिक युग में सब कुछ अच्छा मिल जाए तो परमात्मा की कृपा है लेकिन यदि मन वचन काया से यदि पुण्य कर्म में व्यक्ति नहीं जुड़ता है तो कोई ना कोई घटना दुर्घटना हो जाती है सब कुछ अच्छा है तो परमात्मा की कृपा होती है लेकिन इस समय ज्यादा सजग रहने की आवश्यकता होती है इसलिए पुण्य कर्म को सदैव नियमित संयम का पालन करते हुए जीवन में आत्मसात करना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। कभी-कभी अपवाद स्वरूप मूर्ख भी यदि नियम संयम का पालन नियमित कर तो उसकी भी आत्मा का कल्याण हो जाता है।

संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

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