नीमच ।परमात्मा के उपदेश का ज्ञान लोगों में बांटने से यह ज्ञान और निरंतर बढ़ता है घटता नहीं धर्म तत्व का ज्ञान ऐसा धन है जो कभी चोरी नहीं होता है। यह ज्ञान आत्मा के साथ आदि अनंत काल तक रहता है। यह आत्मा से कभी मिटता नहीं है यह सदैव साथ रहता है। धर्म तत्व का ज्ञान ग्रहण करने वाला पाप और पुण्य में अंतर करना सीख जाता है तो वह सदैव पुण्य ही करता है और पुण्य करने वाला सदैव अमर होता है पुण्य कर्म कभी मिटते नहीं है अमर रहते हैं। शिक्षा ज्ञान का दान करने से वह सदैव बढ़ता है कभी घटता नहीं। यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही।
वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म ज्ञान की आराधना के लिए बच्चों को बचपन से ही धर्म शिक्षा के संस्कार सीखना चाहिए यही शिक्षा और संस्कार उनके विनम्र चरित्र के भविष्य का निर्माण करने में सहायक होते हैं। आधुनिक युग में माता-पिता अपने बच्चों को चिकित्सक बनने के लिए 60 लाख रुपए खर्च करते हैं लेकिन संस्कारों के अभाव में वह बच्चा अपनी नौकरी तो करता है लेकिन माता-पिता की सेवा का संस्कार भूल जाता है और माता-पिता के बुढ़ापे में बीमार होर्न पर वह माता-पिता की सेवा के लिए समय नहीं दे पाता है। उसके आधुनिक शिक्षा के संस्कारों में धन ही सब कुछ हो जाता है इसलिए वह कहता है कि में धन भेज देता हूं अच्छे डॉक्टर से इलाज करवा लो।
माता-पिता को अच्छे उपचार से ज्यादा अपनी संतान के अपनापन और समय की आवश्यकता होती है इस समय का संस्कार धार्मिक पाठशाला में बच्चा सीख सकता है स्कूल की शिक्षा में नहीं। बच्चों में बचपन से ही घायल पशु पक्षियों के लिए संवेदना का पाठ सीखाना चाहिए ताकि कोई भी घायल पशु पक्षी नजर आए तो वह तत्काल इसकी सेवा कर उसके प्राणों की रक्षा कर सके। जीव दया का संस्कार ही व्यक्ति को सफलता और ऊंचाई के शिखर की ओर ले जाता है। ज्ञान देने से ज्ञान बढ़ता है ज्ञान व्यक्ति के जीवन में विनम्रता का स्वर्णिम उजाला लाता है। इसीलिए अधिकतर माता-पिता गुरुवार को ही बच्चों को विद्यालय में प्रवेश करते थे। ज्ञान पंचमी पर स्वाध्याय कर अपनी आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए तभी हमारा जीवन सफल हो सकता है। महान ऋषि मुनियों संतो का जीवन हमें माता-पिता की सेवा के संस्कार की प्रेरणा देता है। पुरुषों का धर्म साहित्य सदैव निरंतर स्वाध्याय के माध्यम से प्रतिदिन नियमित एक घंटा सुबह अध्ययन करना चाहिए ताकि हमारे मन में धर्म तत्व और आत्म कल्याण की भावना जागृत रहे।
साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि ज्ञान की अराधना करने से मन को शांति मिलती है ज्ञान मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। इस अवसर पर तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन, शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की। धर्म सभी में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा, अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।