नीमच | महाभारत काल के समय एक बार जब श्री कृष्ण के हाथ की उंगली में चोट लग गई थी तो द्रोपती अपनी साड़ी का कपड़ा फाड़ कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया था और उनके जीवन रक्षा की थी। बाद में जब द्रौपदी पर कौरवों के दुशासन ने साड़ी का चीर हरण कर लाज हटाकर बुरा कर्म करने का प्रयास किया तब द्रौपदी ने सच्चे मन से श्री कृष्ण को पुकारा और तब श्री कृष्ण ने साड़ी का चीर बढ़ाकर द्रोपदी की लाज बचा कर रक्षा की। इसलिए हमें भी भाई या बहन दोनों में से कोई भी संकट हो में हो तो दोनों को एक दूसरे का सहयोगी बनकर सच्ची मानवता का परिचय देना चाहिए। तभी सही अर्थ में भाई-बहन का रिश्ता मजबूत होता है। जिन भाई बहन में सच्चा प्रेम होता है उस परिवार में सुख शांति रहती है और वह परिवार निरंतर प्रगति करता है।
यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में भाई-बहन के रिश्तों के बीच धन दौलत का स्वार्थ आ रहा है और रिश्ते बिगड़ रहे हैं और प्रेम कमजोर हो रहा है जबकि वास्तव में धन के लालच में व्यक्ति को इस प्रकार का कदम नहीं उठाना चाहिए। ठीक इसी प्रकार जब महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ तब उनकी भक्त बहन सुदर्शना उनके निवार्ण पर दुःखी हो गई और कहा कि अब वह अपना दुख किसको बताएगी तब उनके भाई नंदीवर्धन ने कहा कि महावीर स्वामी इस संसार से गए हैं लेकिन उनकी आत्मा उनके जीव दया के उपदेशों के माध्यम से इस संसार के भले के लिए निरंतर कार्य करती रहेगी इसलिए हमें दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। दिवाकर जैन दिवाकर गुरु चौथमल जी महाराज साहब ने बहनों माता बालिकाओं के लिए ज्ञान का धन दिया और संकल्प दिलाया था कि जैन धर्म के ग्रंथ और शास्त्र गीता के समान ही महत्वपूर्ण है इनका अध्ययन करें तो जीवन में कोई संकट नहीं आएगा जिस प्रकार गीता में 18 अध्याय है।
पहला अध्याय आत्मा का तथा अंतिम अध्याय मोक्ष का है ठीक इसी प्रकार गुरु दिवाकर चौथमल जी महाराज साहब द्वारा रचित निग्रंथ प्रवचन जैन समाज की गीता है जिसको पढ़कर हम अपने जीवन का कल्याण कर सकते हैं । पुद्गल और जीव दोनों एक दूसरे के पूरक है दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रहते हैं । जीव दया का जानना ही आत्मा का कल्याण होता है। अलोक आकांक्षा, लोक में 6 ग्रंथ है । महान संतों ने परिश्रम किया और उनके ग्रंथ को पढ़ने से हमें रागद्वेष की गंठान खोलने का मार्ग मिलता है। ग्रंथ सांसारिक जीवों को उपदेश प्रदान करता है। गौतम स्वामी को महावीर स्वामी ने कहा था की एक क्षण का भी आलस्य नहीं करना चाहिए और आराधना में सदैव लिन रहना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है । समयक दर्शन ज्ञान चरित्र में रमन करना चाहिए। आत्मा का कोई रूप नहीं होता है । आत्मा शरीर में रहती है। आत्मा का ज्ञान सभी का सामान नहीं हो सकता है । आत्मा शांति प्रदान करने वाली होती है। सबकी आत्मा अलग-अलग होती है। आत्मा कभी एक नहीं हो सकती है । कर्म के अनुसार आत्मा होती है। आत्म भाव से ज्ञानी ही आत्मा को जान सकता है।
मिथ्या जीव अजीव धर्म धर्म के कारण आत्मा भटक सकती है । मिथ्यात्व और गलत तथ्य से बचना चाहिए जीवन में सुख दुख भी आना जाना चाहिए तभी जीवन का सच्चा अनुभव हो सकता है जिस प्रकार गाय एक स्थान पर बंधी रहती है तो वह मर्यादा में रहती है। बंधन मर्यादा का प्रतीक होता है। व्रत नियम लेंगे तो जीवन में क्रोध नहीं आता है क्रोध सदैव विनाश का मार्ग है इसलिए क्रोध से सदैव बचना चाहिए। शुभ कर्म में निरंतर आगे बढ़ेंगे तो निश्चित ही सम्यक दर्शन का ज्ञान होगा, 6 खंड का अधिपति सम्राट भी व्रत नियम का पालन करें तो उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। संस्कारों की मर्यादा रहेगी तो भाई-भाई में प्रेम बना रहेगा भाइयों में प्रेम जागृत कर सभी को धर्म से जोड़ना चाहिए तभी अर्थों में मानवता कल्याणकारी सिद्ध होगी। साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि आत्मा दुःखी या सुखी नहीं होती है वह एक समान रहती है। बहन को भाई की बुराई नहीं करना चाहिए और भाई को भी बहन की बुराई नहीं करना चाहिए। दोनों को दोनों की अच्छाई का ही वर्णन करना चाहिए। तभी परिवार में सकारात्मक सोच के साथ सफलता मिल सकती है। सकारात्मक सोच होगी तो सब कुछ अच्छा होगा। महावीर स्वामी ने भाई बहन के प्रेम को आत्मा कल्याण का मार्ग बताया है। वीरवाल समाज की आदर्श साध्वी सरस्वती की पुण्यतिथि स्मरण दिवस पर आज गुरुवार सुबह 9 बजे जैन दिवाकर भवन में दो सामयिक तपस्या दिवस के रूप में गुणानुवाद सभा के साथ मनाई जाएगी। तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन , शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की। धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रशमुनिर्जी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा. ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला।
चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।