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मन की शांति के लिए तपस्या भक्ति आवश्यक - आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी।

Neemuch headlines October 29, 2023, 6:12 pm Technology

नीमच । जीवन में भले ही करोड़ों रुपए आपको मिल जाए लाखों की गाड़ी बंग्ला मिल जाए लेकिन यदि आपके मन को शांति नहीं मिले तो इन चीजों का जीवन में कोई महत्व नहीं है मन की शांति के लिए तपस्या की भक्ति आवश्यक है। यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही।

वें चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पुण्य कर्म से व्यक्ति को धन, निरोगी शरीर, यौवन, होशियारी मनपसंद सुंदरी मिल जाए तो मालामाल हो जाता है लेकिन मोक्ष मार्ग के लिए चित की प्रसन्नता मिलना अत्यंत आवश्यक है। सब कुछ हो और मनप्रसन्न ना हो तो इन सब चीजों के होने का कोई महत्व नहीं है। इसलिए मन की प्रसन्नता तो जीवन में होना ही चाहिए चित् की प्रसन्नता मिलने पर ही मनपसंद मोक्ष का मार्गे प्राप्त होता है। श्रीपाल मैयना के प्रसंग को व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीपाल को मैयना के साथ संयोग हो गया था इससे श्रीपाल का मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो गया। हमारे जीवन में मनपसंद मार्ग नहीं मोक्ष का मार्ग होना चाहिए। तभी आत्मा का कल्याण होता है। प्राचीन काल में स्त्री मर्यादा में रहती थी । मयना सुंदरी ने अपने पिता की आज्ञा को माना और कष्ट के लिए माफी मांगी।

मैयना सुंदरी ने कहा कि मेरे कर्म के कारण ही मुझे दुख मिला है इसमें पिता का कोई दोष नहीं है । समयक दर्शन के साथ जीवन जिए तो पाप कर्मों का क्षय होता है। किसी भी राजा के जंवाई बनने की पहचान उत्तम नहीं होती है। व्यक्ति को स्वयं अपनी पहचान बनाना चाहिए। व्यक्ति जब भी व्यापार या सेवा कार्य में जाए तो पहले मां से आशीर्वाद लेना चाहिए। साधना की ओली तपस्या में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। नवपद की तपस्या में एकाग्रता होगी तो वह फलदाई होगी। किसी की भलाई का कार्य हो तो सदैव सहयोग के लिए तैयार रहना चाहिए। प्राचीन काल में ऋषि मुनि संत महात्मा जड़ी बूटियां से सोना बनाने की विद्या जानते थे। आज भी संसार में कई लोग हैं जो यह कला जानते हैं लेकिन वह गरीब असहाय निर्धन लोगों की सहायता के लिए ही इस कला का उपयोग करते हैं अन्यथा वे इस कला को गोपनीय ही रखते हैं। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य • मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने।

धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।

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