नीमच । संसार के भौतिक साधन हमें सांसारिक सुख देंगे ऐसा अनुभव होता है लेकिन वास्तव में वे दुख का कारण बनते हैं। संसार दुःख का आधार है और तपस्या सच्चे सुख का प्रमुख आधार है। सुख चाहिए तो त्याग तपस्या के मार्ग पर चलना होगा। सम्यक तत्व की अनुभूति के बिना संसार में सच्चा सुख नहीं मिलता है। यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिल्डिंग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नवनिर्मित श्रीमती रेशम देवी अखें सिंह कोठारी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि संसार के सभी पदार्थ भ्रम है। सच्चाई तो नवपद ओली जी की आराधना की तपस्या है। तपस्या के बाद आत्मा में अनुभूति होती है। संसार में अति आहार ही शरीर में रोग उत्पन्न करता है। जिस प्रकार अंधेरा होने पर सुख की विद्युत की रोशनी करते हैं। हवा आने पर दरवाजे खिड़कियां बंद करते हैं। सफाई के लिए झाडू निकालने के लिए पंखे की हवा को बंद करते हैं। दरवाजा चरित्र है। झाड़ू तपस्या है। झाड़ू के बिना सफाई नहीं होती है उसी प्रकार तपस्या के बिना पाप कर्मों का क्षय नहीं होता है। नव पद आराधना की ओली में आहार फीका होता है संयम तपस्या का फल मीठा होता है। पिछले जन्म के पुण्य कर्म ही हमें सुख देते हैं। श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिके सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है।
धर्मसभा में जावद जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया, जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।