ज्ञान व धर्म तत्व को समझे बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है -आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी, चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा

Neemuch headlines September 29, 2023, 5:30 pm Technology

नीमच । ज्ञान व धर्म तत्व को समझे बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है। परमात्मा सभी जीवो को सुखी देखना चाहते हैं । परमात्मा को ज्ञात होता है कि कुछ अभावी जीव भी है उसके बावजूद भी परमात्मा सभी जीवों का कल्याण चाहते हैं। जो परिवार के कल्याण की चिंता करता है वह गणधर बन जाता है। जो सभी जीवो के कल्याण की चिंता करता है वह तीर्थंकर बन जाता है। यह बात पूज्य आचार्यश्री जिनेंद्र सागर जी महाराज साहब के शिष्य रत्न, नूतन आचार्य श्री प्रसन चंद्र सागर जी महाराज साहब ने कहीं ।

वे श्री जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ के तत्वाधान में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि बचपन में बच्चे पवित्र विचारों के होते हैं इसलिए वे सदैव सुखी रहते हैं जैसे जैसे इंसान बड़ा होता जाता है । वह दुखी होता जाता है। संयम मार्ग अपनाने वाले साधु संत सदैव सुखी रहते हैं। संसार में रहते हुए व्यवहार पालन के लिए व्यक्ति विवाह बंधन के फेरे में पड़ता है तो वह संसार के फेरे में पड़ जाता है। संसार दुखों से भरा है। संसार में रहकर सुखी रहना बहुत मुश्किल है। मनुष्य के पास जो है वह पर्याप्त है उसमें वह संतुष्ट नहीं होता है इसलिए वह दुखी होता है। मनुष्य सेसार में रहते हुए व्यवहार निभाने के कारण पाप कर्म में आगे बढ़ता रहता है। पीछे नहीं जा पाता है। साधु संत संसार से अलग संयम मार्ग पर चलते हैं

इसलिए उनसे पाप कर्म काम होते हैं। हम भी साधु से प्रेरणा लेकर संयम मार्ग अपना कर पाप कर्मों को कम कर सकते हैं। व्यक्ति व्यापार करने में तथा मॉल में शॉपिंग करने में तो सजग रहता है लेकिन जब धर्म कर्म की बात आती है तो वह सजग नहीं रहता है चिंतन का विषय है। त्याग को जीवन में आत्मसात करेंगे तो आत्म कल्याण हो सकता है। मनुष्य संसार में तो सजग रहता है लेकिन धर्म कर्म में प्रमाद में रहता है। संसार को परमात्मा की दृष्टि से देखे तो एक माह के अंतराल में ही वैराग्य की प्राप्ति हो सकती है। हमें जहां भी पाप समीप नजर आए तो उससे बचना चाहिए। जमीकंद का उपयोग नहीं करना चाहिए इसमें जीव हत्या होती है।

श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।

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