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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा श्रावण पविया

Neemuch headlines August 27, 2023, 8:08 am Technology

एकादशी वर्ष 2023 में 27 अगस्त, दिन रविवार को यानी आज अधिक श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है। इस बार पुरुषोत्तम मास होने के कारण यह एकादशी द्वितीय श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष में मनाई जाएगी। वैसे तो वर्षभर के हर मास में 2 एकादशी तिथि पड़ती हैं- एक शुक्ल और दूसरी कृष्ण पक्ष में इस बार अधिक मास होने के कारण कुल 24 की जगह 26 एकादशी मनाई जाएगी।

इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी तेजस्वी संतान और वायपेयी यज्ञ का फल देने वाली मानी गई है।

आइए यहां जानते हैं सावन मास की एकादशी की प्रामाणिक और पौराणिक कथा:-

इस एकादशी की कथा के अनुसार द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम: का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दुःखदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई वृद्धावस्था जाती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को ने बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की सबको समान माना है।

सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दुःख पा रहा है, इसका क्या कारण है? राजा महीजित की इस बात प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के जाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के जाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था। सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं?

निःसंदेह मैं Hin जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- है महये! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अतः आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दुःखी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा है अतः उसके दुःख से हम भी दुःखी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा, क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मx से अनेक कष्ट दूर हो Hin के पुत्र होने का उपाय बतलाएं। यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की व्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी। राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दुःख सहना पड़ रहा है।

ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है अतः जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए। लोमश मुनि कहने लगे कि आवण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो, तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अतः संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को पात होता है।

इसके सुनने मात्र से ही वायर्पयों यश का कल मिलता है। ऐसी इस अधिक मास की एकादशी पावन महिमा है।

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