26 जुन से 02 जुलाई तक श्री नंन्दीश्वर विधान का आयोजन
सिंगोली। देवगण अपने परिवार देवों के साथ उत्साह पूर्वक नन्दीश्वर द्वीप जाकर वहाँ स्थित जिनालयों की पूजा करते है। मनुष्य की वहाँ जाने की शक्ति नहीं है इसलिए यही रहकर भक्ति भाव से पूजा करते हैं।
यह बात नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने सोमवार को प्रातः काल मन्दिर मे प्रवचन के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रभु की पूजा हमारे उपर चढ़े ऋणो के मुक्ति का साधन है।
पूर्वभव के अर्जित पाप कर्म का भार भगवान की पूजा से उतर जाता है। हमारे आचार्यों ने देव पूजा मे श्रावको के ब षटावश्यक कहे हैं। अतः पर्व के दिनों में भगवान की पूजा विशेष निर्जरा का कारण है।
आचार्यों ने पर्व दो प्रकार के कहे है- एक शाश्वत पर्व और एक नैमित्तिक पर्व / अष्टान्हिका पर्व शाश्वत पर्व है। एक पशु ने भी प्रमुदित मन से भगवान की पूजा के भाव किए, तो वह देव पर्याय को प्राप्त हो गया, फिर मनुष्य भक्तिभाव से पूजा करेगा, तो वह निश्चित भव पार हो सकता है।
मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि यदी आप अपने दुखो का नाश करना चाहते हो तो देवाधिदेव अरिहंत भगवान के चरणों कि परिचर्या करो ऐसा कोई भी दुख नही है जो उनके चरणों मे बेठकर चरणों कि पुजा करने से नष्ट न हो उदाहरण हमारे सामने है मैना सुन्दरी ने भक्ति भाव से सिद्धचक्र विधान पुजा करी व गन्दोधक से अपने पति के कुष्ट रोग को दुर करा था भक्ति मे शक्ति होती है ऐसा कोई कर्म नही है जो उनके चरणों कि पुजन से क्षय न हो निघति और निकाचित जैसे कर्म भी जो तपस्या से क्षय नही होते वे भगवान के चरणों कि भक्ति से नष्ट हो जाते है। मिली जानकारी के अनुसार आज से ही अष्टानिका महापर्व के पावन पर अवसर पर मुनिश्री ससंघ के सानिध्य मे श्री नंदीश्वर विधान का आयोजन 26 जुन से 02 जुलाई तक होगा आठ दिन तक चलने वाले विधान मे हर रोज अलग अलग पुण्याजर्क परिवार कि तरफ से विधान होगा जिसमे समाजजन पुजन मे बैठकर पुण्य अर्जित करेगे व मुनिश्री ससंघ के सानिध्य मे प्रातः काल श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा, विधान पुजन एवं मुनिश्री के प्रवचन होगे।
इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहेंगे।