धर्म के बिना धन प्राप्ति का कार्य पतन का कारण है-मुनि सुप्रभसागर जी मसा

एम डी मंसूरी June 18, 2023, 6:30 pm Technology

झांतला। तीर्थंकर भगवन्तों ने दो प्रकार का धर्म कहा है। एक मुनि धर्म और श्रावक धर्म। मुनि सांसारिक जिम्मेदारी से निवृत्त, देशकाल की मर्यादा से ऊपर उठे रहते हैं और वे विश्व कुटुम्बकम् के सूत्र को आत्मसात करके चलते हैं।यह बात झांतला नगर में विराजमान आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वातसल्य वारिद्धि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री 108 सुप्रभ सागर जी व मुनिश्री 108 दर्शित सागर जी महाराज ने रविवार को प्रातः काल की धर्मसभा को संबोधित करते हुए धर्म से सीधे मोस पुरुषार्थ का मार्ग यह है। गृहस्थ श्रावक धर्म में जीवन निर्वाह हेतु अर्थ व काम पुरुषार्थ कहा गया, परन्तु उसे धर्म से युक्त ही होना चाहिए। धर्म के बिना धन प्राप्ति का कार्य पतन का कारण है। आचार्यों ने धनार्जन हेतु कुल परम्परा के अनुरूप और अहिंसा धर्म की रक्षा करते हुए व्यवसाय करने की प्रेरणा दी।

जो हिंसक व्यापार करते हुए या हिंसा को बढ़ाने वाले व्यापार करके धनार्जन करता है, वह दान का अपात्र कहा है। हिंसक व्यापार से अर्जित धन सुख शान्ति में बाधक होता है। जैसा द्रव्य होता है, वैसे भाव होते हैं। यदि हव्य शुद्ध होगा तो भाव में भी शुद्ध होगें और हव्य अशुद्ध होगा, तो भावों में भी विकृति आती है। मुनि श्री दर्शित सागर जी ने कहा बचपन गीली मिट्टी के समान होता है उसे जैसा आकार दिया जाए वैसे बन जाते है इसलिए उन्हें अच्छे संस्कार देना भा आवश्यक है। धर्म और संस्कृति के संस्कार हेतु बच्चों को धार्मिक पाठशाला में अवश्य भेजना चाहिए।वही आगामी दिनों में मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में झांतला नगर 20 तारीख को आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी का आचार्य पदारोहण समारोह व 23 तारीख को आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का दीक्षा दिवस बड़े धूमधाम के साथ मनाया जायेगा।

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