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मेवाड़ रियासत में ठिकाना अठाना कि रही बड़ी अहमियत, आज तक निभा रहे हैं प्रण, जाने शौर्य और पराक्रम की मिसाल अठाना को

नंदकिशोर दमामी May 6, 2022, 10:01 am Technology

अठाना। मेवाड़ रियासत की एक महत्वपूर्ण जागीरी रही है । अठाना मेवाड़ के अति महत्वपूर्ण चुंडावत वंश का ठिकाना है। और चुण्डा के मुख्य वंशज है। चुण्डा जी को मेवाड़ का भीष्म भी कहा जाता है। क्योंकि इन्होंने अपने पिता के नव विवाह होने पर प्रण लिया था कि उनकी छोटी माता से उत्पन्न संतान ही सिंहासन पर विराजमान होगी और उन्होंने यह प्रण बखूबी निभाया। जब उनकी छोटी माता से उत्पन्न संतान राणा मोकल का जन्म हुआ तो उन्होंने राणा मोकल को सिहासन पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया। और आगे से भी अपने वंशजों को यह प्रण मानने की हिदायत दी जिसे चुण्डावत आज तक निभा रहे हैं।

चुण्डा जी आगे चलकर राणा कुंभा जी के गुरु एवं पथ प्रदर्शक हुए इन के सानिध्य में कुंभाजी की ख्याती खूब फैली। इस वर्ष के मुखिया आगे चलकर राणा रतन सिंह हुए जो महाराणा सांगा के साथ सन 1527 मैं खानवा के युद्ध में बाबर की फौज से बड़ी बहादुरी से सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इन्हीं रतन सिंह जी ने जावद तहसील में रतनगढ़ का किला बनवाया था वह तलहटी में गांव आबाद करा जिसे रतनगढ़ कहते हैं जो आज भी विद्यमान है। रतन सिंह के पुत्र साईं दास हुए जब वे बाल्यावस्था में थे तब चित्तौड़ का दूसरा साका 1535में हुआ। गुजरात के सुल्तान ने चित्तौड़ पर चढ़ाई करी तब रानी कर्मावती जी ने जौहर किया साईं दास जी के छोटे होने से उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया पर उनके काका राव दूदा जी एवं राव सत्ता जी चित्तौड़ के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया इसी युद्ध में महाराणा सांगा जी की विधवा पत्नी जवाहिर भाई राठौड़ सेना का नेतृत्व करते हुए युद्ध भूमि में खेत रही वह रानी कर्मावती जी ने जौहर किया। 1565 मैं जब अकबर ने चित्तौड़ की घेराबंदी की तब भी इसी वंश के योद्धाओं ने महाराणा उदय सिंह को उदयपुर सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और खुद वहीं रुके 6 महीने की घेराबंदी के बाद भी जब कोई रास्ता शेष नहीं बचा तब जोहर शाखा करने का निश्चय किया 23 फरवरी 1568 को प्रातः जयमल जी की पत्नी के नेतृत्व में सभी नारियों ने जौहर करा, एवं किया और किले के द्वार खोल दिए गए इस युद्ध में अठाना के पितृ पुरुष श्री साईं दास जी बड़े हो चुके थे जयमल एक फत्ता जी बड़ी बहादुरी से लड़े एवं पाडल पोल पर वीरगति को प्राप्त हुए साई दास जी को सूरजपोल की रक्षा जवाबदारी दी गई अतः वह अपने 14 वर्षीय पुत्र श्री अमर सिंह के साथ सूरजपोल की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध के बाद उदय सिंह जी ने साईं दास जीके भ्राता श्री खंगार जी को गद्दी पर बिठाया भैंसरोड़गढ़ में इनकी तलवार बंदी महाराणा उदय सिंह जिन्हें करें बाद में इन्हें गोठलाई जागीर में दी। इनके दो पुत्र हुए गोविंदास व कृष्ण दास परंतु दोनों के जन्म के वक्त का विवाद हुआ खंगार जी ने गोविंद दास जी को ही अपना उत्तराधिकारी माना वे इनके बाद गोठलाई के रावत हुए दोनों भाइयों ने बड़ी बहादुरी से महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की फोज के दांत खट्टे करें । जब अकबर ने मेवाड़ पर सभी तरफ से छापामार हमले करने शुरू कर दिए तब इसी वर्ष गोविंदा जी ने अकबर की फौज में मिर्जा शाहरुख को नयागांव में रोका नयागांव कि आज एमपी की बॉर्डर है यहीं पर गोविंद दास जी युद्ध में काम आए जिनकी छतरी आज भी मौजूद है। गोविंद दास जी के मेग सिंह हुए जोकि कुल में बड़े विख्यात हुए मेवाड़ की फौज का कई युद्धों में नेतृत्व करा वह कहीं बाहर मुगलिया फौज के पैर उखाड़े इसी क्रम में इन्होंने जहांगीर के लश्करी फौज जिसका सेनापति महबत खान था मात्र 500 राजपूत सरदारों की संख्या हमसे रात्रि में आक्रमण कर भगा दिया। इन्हें काली मेघ को बेगू की जागीरी मिली इनके दो पुत्र हुए बड़े नरसिंह दास व छोटे राज सिंह पिता पुत्र के विवाद के चलते काली मेघ सिह जी ने अपने छोटे पुत्र राज सिंह को बेगू का उत्तराधिकारी बनाया तब महाराणा ने इन्हें पुनः गोठलाई की जागीरी दी । नरसिंह दास जी ने सन 1624 मैं आज जहां अठाना को चुना एवं यहां गांव बसाने का विचार करा । 1628 में अठाना आबाद हुआ सन 1836 में तत्कालीन रावत जी श्री तेज सिंह जी ने इस महल को अपने वर्तमान स्वरूप में बनवाया जोकि 1856 में 07 लाख रुपए की लागत से बना इन के उत्तर में नदी किनारे एक बाग व तेजेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया जिनका नाम आजादी के बाद क्यों बदल कर मंशापूर्ण महादेव कर दिया गया इसे महल के दक्षिण में लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर व बावड़ी बनवाई कार्य संपूर्ण होने के बाद इसका नांगल करा जिसका खर्चा 2 लाख आया सो कुल 9लाख हुआ जिससे इस बावड़ी का नाम नव लखा बावड़ी पड़ा,

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