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जन्म से जैन होना महत्वपूर्ण नही अपितु कर्म से जैन होना महत्वपूर्ण है- आचार्य श्री विजयराज जी

प्रदीप जैन March 2, 2021, 5:06 pm Technology

दया करूणा त्याग अहिंसा ही जैनत्व की पहचान है।

सिंगोली। स्थानीय श्री वर्धमान स्थानक भवन पर विराजमान प्रज्ञानिधी संयम सुमेरू समरस शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विजयराज जी म सा ने आज की धर्म सभा को संबोधित करते हुए फरमाया कि दया करूणा त्याग अहिंसा ही जैनत्व की पहचान है। हमे अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्म की वजह से आज मनुष्य जन्म ओर मनुष्य जीवन मे भी जैन कुल मिला है जो हमारी अच्छी पूण्याई का ही परिणाम है। हम इस मनुष्य जीवन को यु ही ना गवाये सभी लोग अपने आप को जिनवाणी के बताये मार्ग पर चलाने का प्रयास कर अपने जीवन को सफल बनाने का काम करे । गुरूदेव ने यह भी बताया कि जैन कुल मे जन्म लेना ही जैन नही होता है हमे हमारे कर्म भी जैन दर्शन के अनुसार करने होगे तो ही हम जैन कहला सकते हैं। दया करूणा त्याग अहिंसा के संस्कार हमे विरासत में मिले हैं। इनको हम अपने जीवन में उतारे ओर सच्चे जैन बनने का प्रयास करे। आपने यह भी बताया कि दुनिया में जैन बचेगा तो जीव बचेगा ओर जीव बचेगा तो जगत बचेगा आज के इस चकाचौंध वाले युग में भ्रुण हत्या बहुत अधिक होने लगी है ओर तो ओर जैन परिवारो मे भी भ्रुण हत्या होने लगी हे जो बड़े विचार की बात है। हमारे अहिंसा परमोधर्म को मानने वाला जैन आज कहा जा रहा हे यह देख कर हम भी बड़े विचलित है। जैनो को अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए उसकी जगह आज कुछ लोग के मार्ग भटक कर अहिंसा के मार्ग पर जाना दुखद है। गुरूदेव के कहा की संसार में आने वाला हर जीव अपना परालभ्द लेकर आता है हमे लड़का लड़की मे फर्क नहीं करना चाहिए वैसे भी आज माता पिता की चिंता जितनी बेटी करती हैं उतना बेटा नही करता है। इस बारे मे एक उदाहरण देते हुए गुरूदेव ने कहा कि एक शहर का सेठ एक दिन वृद्धाआश्रम पर गया ओर वहा रह रहे एक बुजुर्ग की सेवा करते हुए पुछा कि आप वृद्धाआश्रम में क्यो हो तो उस बुजुर्ग ने जवाब दिया कि मेरे बेटी नहीं है इसलिए मे यहाँ हु तो सेठ ने पुछा आपके बेटा नही है क्या तो बुजुर्ग ने कहा मेरे एक नही चार चार बेटे हैं इसलिए ही तो मे यहाँ हु? इस पर उस सेठ का मन चकरा गया ओर कहा की मेरे तो छह बेटियां हैं मे तो बेटे की चाह में दर दर घुम रहा हूँ पर मुझे आज अहसास हो गया की बेटी ओर बेटे मे कोई फर्क नहीं है बेटी किसी बेटे से कम नहीं होती है ओर मेरे तो एक नही छह बेटियां हैं मुझे तो गर्व करना चाहिए।

गुरूदेव ने यह भी बताया कि हमे जीवन मे शान्ति चाहिए तो हमेशा त्याग को अपनाओ हमेशा शान्ति ओर सकून मिलेगा और राग द्वेष को अपनाओगे तो हमेशा जीवन अशांत रहेगा। इसलिए जीवन मे त्याग को महत्व दे। आज की धर्म सभा में इन्दौर चित्तौड़गढ़ मंदसौर छोटी सादडी कदवासा आदी स्थानो के श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।

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