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जलेस ने काव्यगोष्ठी का किया सफल आयोजन

Neemuch Headlines December 28, 2020, 5:21 pm Technology

नवोदित शायरों सहित नामवर रचनाकारों ने सुनाए अपने कलाम किसान आन्दोलन के समर्थन में भी पारित किया गया प्रस्ताव

नीमच। साल 2020 अच्छी-बुरी यादों के साथ अब हमे अलविदा कहने जा रहा है। महज़ 4 रोज़ बाद नए साल का आगाज़ होना है। इस मौक़े पर जनवादी लेखक संघ नीमच ने इस वर्ष की आखरी काव्यगोष्ठी का आयोजन जलेस कार्यालय पर रविवार दोपहर 1 बजे किया। गोष्ठी में शहर के नवोदित और नामवर रचनाकारों ने अपना कलाम पेश किया। साथ ही देश की राजधानी में चल रहे किसान आन्दोलन के समर्थन में प्रस्ताव भी कार्यक्रम के आरम्भ में पारित किया गया। काव्यगोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ रचनाकार के.एल.मोंगिया शामिल हुए। महफ़िल के आरम्भ में नवोदित शायर परितोष उपाध्याय "नाज़" ने अपनी ग़ज़ल- बिन मुश्किलों के तो कोई सफ़र नहीं होता, मैं हार जाता जो मुझमें हुनर नहीं होता. पेश की और खूब दाद बटोरी, इसके बाद विजय कुमार "विजय" ने खेल खिलोने मिलते हैं बस नर्म बिछोने मिलते हैं- सोच नहीं मिलती आपस में घर के कोने मिलते हैं ग़ज़ल सुनाई. जिसपर उनकी काफी सरहाना हुई| काव्यगोष्ठी का संचालन कर रहे आलम तौक़ीर "आलम" ने, हैरत हुई हमे के वो ऐसा भी कर गया- वादा शानस था जो जुबां से मुकर गया, ग़ज़ल पेश की. प्रियंका कविश्वर ने अपनी रचना, ना हों जिसमें दुश्वारियां ऐसी राह मांग रहा है, सच भी अब झूठ से देखो पनहा मांग रहा है. सुनाई जिसपर उनकी काफी प्रशंसा की गई| कामरेड शैलेन्द्र सिंह ठाकुर ने ऐ किसान होशियार! नौ जवान होशियार! सफेदपोश रहबरों की चाल अब चले नहीं. गीत प्रस्तुत किया। महफ़िल में कामरेड किशोर जेवारिया ने तंजिया तौर पर कहा कि, हरे भरे वृक्षों को तो पहले कटवाया जाता है- और फिर पौधा रोपण का अभियान चलाया जाता है. जिसपर उन्हें खूब दाद मिली. इस मौक़े पर मनासा के विजय बैरागी ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की और कविता लेखन पर भी प्रकाश डाला।कार्यक्रम की अगली कड़ी में जलेस के संयोजक निरंजन गुप्त 'राही' ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लें पेश की. राही ने कहा की ज़िंदगी जीने के लिए प्यार है, और ज़िंदगी ऊब की तकरार है। इसके पश्चात मशहूर कवि हाजी मुहम्मद हुसैन शाह "अदीब" ने अपनी कविता. है पंथ इनका कंटकित, चुनौतियाँ हज़ार हैं-है फिर भी कार्यरत सतत ये श्रेष्ठ पत्रकार हैं. सुनाई और पत्रकारिता का महत्व बताया। काव्यगोष्ठी के आखिर में अध्यक्ष के.एल.मोंगिया ने अपनी मकबूल कविताएं प्रस्तुत की. श्री मोंगिया ने कहा की कोमल गीतों के म्रदुस्वर पर हर साज़ बजा करते हैं, और वैभव के प्रांगण में भी तो रंग सजा करते हैं। साथ ही अपने उद्बोधन में युवा वर्ग में साहित्य के प्रति झुकाव पर ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा कि यह हमारी खुशकिस्मती है कि युवा वर्ग भी साहित्य में दिलचस्पी ले रहा है। इससे हमे यकीन हो गया कि साहित्य अमर है।कार्यक्रम का संचालन आलम तौक़ीर "आलम" ने किया और आभार, निरंजन गुप्त "राही" ने माना।

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