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सार्थक सृजन की काव्यगोष्ठी सम्पन, विभिन्न कवियों ने दी भावपूर्ण प्रस्तुतियाँ

Neemuch Headlines December 18, 2020, 8:25 am Technology

नीमच। साहित्यिक संस्था सार्थक सृजन की प्रथम काव्यगोष्ठी अभियन्ता अजीतसिंह चौहान के मेहनोत नगर स्थित मकान पर सम्पन हुई जिसमें नवोदित एवं ख्यातनाम रचनाकरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया । वरिष्ठ कवि गोपाल सिंह चौहान एवं आर.एस. शर्मा ने सरस्वती जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया वहीं सुविख्यात कवियित्री श्रीमती रज़िया सुल्ताना ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

गोष्ठी का आगाज़ नवोदित शायर कुशाल तिवारी की ग़ज़ल उसने बातें भी बड़ी लच्छेदार बनाई थी , हम है कि सबके दिल तोड़ते फिरते है , एक वो है जो सबके दिलों को जोड़ती थी । इसके साथ ही इस रचना की समीक्षा संस्था के अध्यक्ष प्रमोद रामावत प्रमोद ने की ओर ग़ज़ल लेखन के बारे में विस्तार से बताया । इसी तरह दूसरे क्रम में नवोदित रचनाकार श्री शरद गहलोत ने अपनी रचना बीज बोया जो कोमल मन में सुनाई । गोष्ठी में हर रचनाकार की रचनाओं की समीक्षा हुई जिससे ऐसा लगा कि यह गोष्ठी के साथ साथ कार्यशाला भी थी।

दिलीप दुबे ने बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल दो-दो घरों के फ़र्ज निभाती है बेटियाँ ,पिछले जन्म का कर्ज़ चुकाती है बेटियाँ प्रस्तुत करके खूब दात बटोरी। लोकेन्द्र सिंह परिहार ने अपने अन्दाज में जब मसर्रत करीब आई है , ग़म ने क्या क्या हँसी उड़ाई है । बैठे बैठे निकल पड़े आँसू जाने क्या बात याद आई है सुनाई। हरीश मंगल ने तेरा ग़म तेरी याद तेरी जुस्तजू अभी बहुत कुछ है मेरे पास खोने के लिए। दो जिस्म मिले तभी इश्क हो यह जरूरी नहीं , मीरां ने कान्हा की एक झलक पाने के लिए जिंदगी बिता दी सुनाई जिसे सराहा गया।

अभियन्ता अजीतसिंह चौहान ने प्रभावी रचना पाठ किया । उन्होंने पत्थरों ने मेरे शहर की देह बनाई है , बवण्डर की धूल हटे तो तुन देखना और दूसरी रचना ठंड की सुबह जब में देखता हूँ किसान बाबाको,अपने खेतों को तैयार करने के लिए तब मुझे याद आते है पिता सुनाई । इन दोनों रचनाओं की सभी भूरी भूरी प्रसंशा की । इसके बाद आलम तौकीर आलम ने इलाज़ वो है मेरा , क्या है इन दवाओं में , सुकून पाया है मैंने उसकी बाँहों में इस पर संस्था के अध्यक्ष प्रमोद रामावत प्रमोद ने "मां का मतलब माँ होता है, माँ से ज्यादा क्या होता है , सबसे पहले माँ होती है उसके बाद ख़ुदा होता है" सुनाकर मां शब्द की व्याख्या की ।

श्रीमती रज़िया सुल्ताना ने "ये दौर तासुब है , लगजिस है उड़ानों की , होंटों पे तबस्सुम है और खार जुबानो में" रिश्तों की तिज़ारत है , खतरों में महोब्बत है । "माँ बाप की इज्जत है तो घर में भी बड़ी बरकत है , तहज़ीब ये कायम में कुछ ख़ास घरों में" सुनाई जिसे खूब सराहा गया।

राजेश शर्मा ने अपनी "हर रिश्ते में अपना नूर बरसेगा ,बस शर्त इतनी सी है शरारतें करो लाखों सी पर साजिश न हो" सुनाई । प्रसिद्ध व्यंग्यकार नरेन्द्र व्यास ने व्यगों की बरसात करते हुए "वो गिद्धों को लगाकर कबूतर के पंख उड़ा रहे है आसमान में ऐसे, जैसे बगल में छुरी और मुंह मे राम" सुनाई ।इसके अलावा भी आपने अन्य रचनाएँ भी सुनाई जो आज की राजनीति पर कटाक्ष करती हुई थी। आर.एस. शर्मा ने "कविता सड़क बुहारे व्यक्ति का अभिनंदन करती हैं" श्रीमती कुसुमलता शर्मा ने "या ख़ुदा अपने बन्दों को आजमाना छोड़ दें , झुक रहे है सज़दे में उन्हें सताना छोड़ दें" और इसके बाद गीत "दुःख को हमने दूर भगाया , सुख ने वंदनवार सजाया" सुनाया जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की । संस्था के अध्यक्ष प्रमोद रामावत प्रमोद ने "यह अदा है देर तक पहले सताया जाएगा , फिर जरासा कनकियो से मुस्कुराया जाएगा" गजल सुनाई। गोपाल सिंह चौहान ने "कोरा दीया था मैं , भर दिया तेल , रख दी बाती" कविता सुनाई। भगत वर्मा ने संस्था के विस्तार करने का सुझाव दिया। इस गोष्ठी के संयोजक मुकेश पोरवाल थे । संजय शर्मा ने भी अपनी रचना सुनाई । कार्यक्रम का संचालन प्रमोद रामावत प्रमोद ने किया वहीं आभार प्रदर्शन अभियन्ता अजित सिंह चौहान ने माना ।

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