भोपाल। मध्य प्रदेश का सड़क परिवहन ढांचा लंबे समय से निजी बस ऑपरेटरों पर निर्भर रहा है। जिन शहरों और गांवों में कभी सरकारी बसें नियमित रूप से चलती थीं, वहां अब यात्रियों को महंगी निजी बसों पर निर्भर रहना पड़ता है।
ऐसे में जब खबर आई कि 21 साल बाद एमपी में फिर से सरकारी बसें दौड़ने वाली हैं, तो यह खबर लोगों के बीच उत्सुकता और राहत दोनों लेकर आई। पिछले दो दशकों में प्रदेश में बसों की कमी, अनियमितता और महंगे किराए बड़े मुद्दे रहे हैं। तमाम शिकायतों के बावजूद यात्रा का विकल्प सीमित था। लेकिन अब सरकार ने न सिर्फ नए परिवहन मॉडल की योजना बनाई है, बल्कि 15 साल से पुरानी 135 निजी बसों के परमिट भी निरस्त कर दिए हैं, जिससे साफ संकेत मिलता है कि राज्य एक बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। राज्य शासन ने संकेत दिया है कि वह एक आधुनिक और सुरक्षित सरकारी बस सेवा को फिर से शुरू करने की तैयारी में है। इसके लिए परिवहन विभाग पुराने मॉडल को हटाकर एक न्यू ट्रांसपोर्ट स्ट्रैटेजी लेकर आ रहा है, जिसमें नए रूट, नई AC और नॉन-AC सरकारी बसें, डिजिटल टिकटिंग सिस्टम, रियल टाइम ट्रैकिंग, निर्धारित किराया आदि जैसे फीचर्स शामिल किए जाएंगे। यह मॉडल दिल्ली और महाराष्ट्र की बस सेवाओं के तर्ज पर बनाया जा रहा है, ताकि यात्रियों को भरोसेमंद यात्रा मिल सके।
क्यों रद्द किए गए 135 बसों के परमिट? पिछले कुछ महीनों से इंडोर और आसपास के जिलों में 15 साल पुरानी बसों की जांच की जा रही थी। रिपोर्ट में सामने आया कि कई बसें फिटनेस टेस्ट में फेल हो गईं, कुछ बसें लगातार ओवरलोड चल रही थीं। इंजन, ब्रेक और बॉडी में गंभीर तकनीकी खराबियां थीं, यात्रियों की सुरक्षा खतरे में थी,कुछ रूट्स पर ज्यादा किराया वसूला जा रहा था। इन शिकायतों के आधार पर परिवहन विभाग ने 135 बसों के परमिट निरस्त कर दिए। सरकार का कहना है कि अब राज्य में ओल्ड और अनफिट बसों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकारी बसें वापस लाने का असली उद्देश्य क्या है? प्रदेश में पिछले कुछ सालों में रोड एक्सीडेंट्स में तेजी आई है। कई निजी बसों की वजह से ओवरस्पीड, ओवरलोडिंग, ब्रेक फेल, अनफिट वाहनों के कारण हजारों लोग घायल हुए हैं। सरकार मानती है कि सरकारी बसें चलने से यात्रा सुरक्षित होगी, किराया नियंत्रित होगा, ग्रामीण इलाकों में बेहतर कनेक्टिविटी मिलेगी बाजारों, स्कूलों, कॉलेजों तक पहुंच आसान होगी।