नई दिल्ली/भोपाल। आंध्र प्रदेश के कुरनूल और राजस्थान के जैसलमेर में हाल ही में हुए दो बड़े बस हादसों ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इन घटनाओं में 42 से ज्यादा यात्रियों की जिंदा जलकर मौत हो गई, जिसके बाद अब मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी बसों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो ऐसी दर्दनाक घटनाएं इन राज्यों में भी हो सकती हैं। इन हादसों ने एक बार फिर बसों, खासकर स्लीपर बसों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी को उजागर किया है। जैसलमेर हादसे में बस में किए गए अवैध AC मॉडिफिकेशन को आग लगने की वजह बताया गया, जिसके बाद दरवाज़ा जाम हो गया और 22 यात्री बाहर नहीं निकल सके। ठीक इसी तरह कुरनूल में भी 20 यात्री बस में लगी आग का शिकार हो गए। इन घटनाओं के बाद राज्य सरकारों पर बसों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ गया है। बस बन रहीं आग का गोला, 15 दिन में 42 जिंदगी जलकर हुईं ख़ाक, क्या हैं इन हादसों के पीछे की वजह! सुरक्षा से खिलवाड़ और कागज़ी खानापूर्ति सड़कों पर दौड़ रही कई बसें यात्रियों के लिए ‘टाइम बम‘ जैसी हैं, जिनकी बॉडी बनाते समय सुरक्षा नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं। कई बस ऑपरेटर कम लागत में बस तैयार कराने के लिए छोटे बॉडी मेकर्स से काम कराते हैं, जहां नियमों को ताक पर रख दिया जाता है। अक्सर कागज़ों पर बस का साइज़ और सीटों की संख्या मानकों के अनुरूप दिखाई जाती है, लेकिन असल में डिज़ाइन पूरी तरह अलग होता है। उदाहरण के तौर पर, 13 मीटर लंबी बस का अप्रूवल लेकर उसे 15 मीटर तक बना दिया जाता है। कई मामलों में तो सिंगल एक्सेल चेसिस पर डबल एक्सेल के आकार की बॉडी बना दी जाती है, जो संतुलन के लिए खतरनाक है। इस प्रक्रिया में इमरजेंसी गेट (फायर एग्ज़िट) जैसी सबसे ज़रूरी सुविधा को भी नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। RTO की भूमिका पर गंभीर सवाल इन हादसों के पीछे परिवहन विभाग और RTO कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोप है कि कई राज्यों के ज़िलों में RTO अधिकारी बिना भौतिक जांच के ही बसों को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं। स्लीपर बसों में सीटों की संख्या कम दिखाकर पासिंग कराई जाती है, जबकि बाद में उनमें अतिरिक्त सीटें लगाकर सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जाता है। हाल ही में कई राज्यों में बिना परमिट और बीमा के दौड़ती बसें भी पकड़ी गई हैं, जो दिखाती हैं कि परिवहन विभाग ज़मीनी स्तर पर जांच को लेकर कितना उदासीन है। मांग की जा रही है कि अब ऐसे किसी भी वाहन को फिटनेस देने वाले अधिकारी पर सीधी कार्रवाई होनी चाहिए और दोषी पाए जाने पर उन्हें निलंबित किया जाना चाहिए। सरकार तत्काल उठाए ये कदम विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से कुछ तत्काल और कड़े कदम उठाने की मांग की है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके: 1. राज्यव्यापी स्पेशल ड्राइव: सभी ज़िलों में 48 घंटे के भीतर एक विशेष अभियान चलाकर निजी और सरकारी बसों की तकनीकी और सुरक्षा जांच की जाए। 2. अधिकारियों की जवाबदेही: जिस भी बस में इमरजेंसी गेट बंद मिले या सुरक्षा नियमों का उल्लंघन पाया जाए, तो बस मालिक के साथ-साथ पासिंग अधिकारी पर भी सख्त कार्रवाई हो। 3. खतरनाक मॉडिफिकेशन पर रोक: बसों में फाइबर बॉडी, सीलबंद खिड़कियां और असुरक्षित वायरिंग के इस्तेमाल पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए। 4. अनिवार्य ट्रेनिंग: बस के ड्राइवर और कंडक्टर को आपात स्थिति से निपटने के लिए अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग दी जाए। इसके अलावा, आम जनता से भी अपील की गई है कि अगर किसी बस में सुरक्षा की कमी दिखे, तो वे इसकी सूचना तुरंत सीएम हेल्पलाइन या 112 नंबर पर दें। अब ज़रूरत इस बात की है कि सरकार लापरवाही बरतने वालों पर सिर्फ जुर्माना नहीं, बल्कि आपराधिक मामला दर्ज कर एक कड़ा संदेश दे।