नीमच। आदि गुरू शंकराचार्य जी की जंयति प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है इस अवसर पर व्याख्यानमाला पखवाड़ें का आयोजन किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत म.प्र. जन अभियान परिषद विकासखण्ड नीमच द्वारा एकात्म पर्व, शंकर जीवन दर्शन पर व्याख्यानमाला का आयोजन स्वामी विवेकांनद शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नीमच में किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि एवं वक्ता धनवंतरी विद्यापीठ के महामण्डलेश्वर सुरेशानंद सरस्वती जी ने आचार्य शंकर के चित्र पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभकिया। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा महामण्डलेश्वर का शॉल श्री फल से सम्मान किया गया। जिला समन्वयक वीरेन्द्र सिंह ठाकुर ने स्वागत उदबोधन देकर कार्यकम की रूपरेखा एवं उदेश्य को बताया। महामण्डलेश्वर जी ने आचार्य शंकर के अद्वैत मत के संदर्भ में आचार्य शंकर के जीवन वृत्त एवं वर्तमान जीवन में सनातन धर्म को अपनाने कर अपनी संस्कृति सभ्यता को विश्व में प्रथम स्थान पर रख जीवन को सफल बनाने के लिए मार्गदर्शन दिया उन्होने कहा कि हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकारचार्य जी की मानी जाती है। आदि शंकराचार्य जी ने सनातन परंपरा को एक सूत्र से जोड़कर रखने के लिए देश के चार धामों में मठों की स्थापना की, कहते हैं कि महज 8 साल की उम्र में इन्हें वेदों का ज्ञान प्राप्त हो गया था एवं शंकराचार्य जी ने 32 वर्ष की आयु में समाधि ली। गुरु शंकराचार्य भारतीय गुरु और दार्शनिक थे, उनका जन्म केरल के कालपी नामक स्थान पर हुआ था। आद्य शंकराचार्य को भगवान शिव अवतार के रूप मे माना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के दर्शन का विस्तार किया। उन्होंने उपनिषदों, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों की व्याख्या एवं पुनर्व्याख्या की। आयोजन में सीएमसएलडीपी परामर्शदाता, विद्यार्थी, समाजसेवी, प्रस्फुटन व नवांकुर संस्था सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता, सहित विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारियों ने सहभगिता कर कार्यक्रम के सफल आयोजन में अपना योगदान दिया। संचालन लेखापाल पवन कुमरावत ने किया एवं आभार परामर्शदाता पुनिता मेहरा ने माना ।