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नवपद ओली जी तपस्या पर अमृत प्रवचन श्रृंखला, स्वयं के दोषों को दूर किए बिना अरिहंत परमात्मा नहीं बन सकते - साध्वी अमिदर्शा श्री जी महाराज साहब।

Neemuch headlines April 4, 2025, 4:27 pm Technology

नीमच। नवकार मंत्र के निरंतर जाप कर अपने पाप कर्मों का क्षय करना चाहिए तभी अंतरात्मा में निहित दोषों का निवारण होता है। परमात्मा और हमारी आत्मा दोनों के गुण समान है लेकिन परमात्मा ने अपनी अनंत ज्ञान से अपनी आत्मा के गुणों को प्रकट कर दिया और हमने अपने अंतर में निहित गुणों को प्रकट नहीं किया इसलिए हमारा मोहिनी कर्म का क्षय नहीं होता है। स्वयं के दोषों को दुर किये बिना अरिहंत परमात्मा नहीं बन सकते हैं।। यह बात साध्वी अमीदर्शा श्री जी मसा ने कही। वे श्री जैन श्वेतांबर भीडभंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में आयोजित अमृत प्रवचन श्रृंखला में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि श्रीपाल रास चरित्र में उपाध्याय विनय जी महाराज ने कहानी तथा यश विजय जी महाराज ने तत्व पर अपनी रचना लिखी थी। अरिहंत पद की आराधना में परिचय बिना प्रेम नहीं और प्रेम बिना आत्मा का परमात्मा मिलन नहीं होता है। च्यवन कल्याणक, जन्म कल्याणक, 56 दिगकुमारी तीनों से इंद्र का आसान चलायमान होता है।

आत्मा का स्वभाव उज्जवल और पवित्र बनना है इसलिए हमें तपस्या ओलीजी की आराधना करना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। मनुष्य यदि संसार में रहते हुए सुख में भी प्रभु के विरह में आंसू बहाए तो उसकी आत्मा पवित्र हो सकती है और उसका आत्म कल्याण हो सकता है। परमात्मा का वर्णन उज्जवल और सात्विक है। हमें मोबाइल या टीवी देखते हुए भोजन नहीं करना चाहिए वह भोजन सात्विक नहीं तामसिक बन जाता है। यदि हमें सात्विक गुण ग्रहण करना है तो भोजन एकांत में करना चाहिए। दुःख आने पर रोने से पाप कर्म बढ़ता है और दुखों को स्वीकार कर आगे बढ़े तो केवल ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। अरिहंत पद जाप करने से कर्मों का क्षय होता है तथा मान प्रतिष्ठा रिद्धि सिद्धि समृद्धि मिलती है। और मस्तिष्क रोग भी दूर होता है। हम सभी सच्चे मन से अरिहंत पद की प्रार्थना कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाए । - धर्म सभा में लब्धि पूर्णा श्री जी महाराज साहब ने श्रीपाल रास चरित्र में कुंभल राणा और मैयना सुंदरी की तपस्या के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि निस्वार्थ भाव से तपस्या करें तो उत्कृष्ट फल मिलता ही है तपस्या कभी व्यर्थ नहीं जाती है उसका पुण्य फल अवश्य मिलता है। पात्रता और योग्यता से अधिक अपेक्षा करते हैं तभी हम दुःखी होते हैं इसलिए हमें शाश्वत ओली की तपस्या का पुण्य कर्म करना चाहिए। साध्वी मसा ने उज्जैनी नगरी के राजा प्रजापाल और मंत्री मती सागर के धार्मिक जीवन चरित्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भविष्य का भाग्य किसी को ज्ञात नहीं रहता है इसलिए पाप कर्मों की निर्जरा का अवसर मिलता है । कर्म का फल यदि हमें दुख भी प्रदान करें तो उसे हंसते हुए स्वीकार करना चाहिए तभ करना चाहिए तभी सच्चे सुख का अनुभव होता है। यदि क्रोध में भी पिता आशीर्वाद देते हैं तो पुण्य फलदाई होता है। एक राजा की पुत्री राजकुमारी मैयना सुंदरी 64 कला और ज्योतिष शास्त्र में निपुण थी इसलिए उसने कर्मों पर विश्वास किया और दुखों का हंसते हुए सामना किया। धर्म सभा में नीमच की बेटी मृदु पूर्णा, प्राप्ति पूर्णा, केवल पूर्णा, नीमच की बेटी जिनांर्ग पूर्णा श्री जी आदि ठाना का सानिध्य भी मिला। नवपद ओली जी तपस्या पर अभिषेक व अमृत प्रवचन आज श्री जैन श्वेताम्बर भीडभंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में साध्वी अमीदर्शा श्री जी महाराज साहब के पावन सानिध्य में प्रतिदिन नवपद ओली जी तपस्या की आराधना के विषय परअमृत धर्म सभा प्रवचन श्रृंखला पुस्तक बाजार स्थित श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर में सुबह 6.30 बजे छोटी शांति अखण्ड धारा अभिषेक तथा आराधना भवन में सुबह 9:15 बजे अमृत धर्म प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित हो रही है। सभी समय पर उपस्थित होकर धर्म तत्व ज्ञान गंगा का पुण्य लाभ ग्रहण करें।

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