शिवजी का 12वां ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर कैसे हुआ प्रकट ? दर्शन करने से मिलता है बहुत पुण्य

Neemuch headlines February 26, 2025, 2:41 pm Technology

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है तथा प्राणी सब पापों से मुक्त होकर सांसारिक सुखों को भोग कर मोक्ष को पाता है। राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित शिवाड़ नामक स्थान पर स्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिव महापुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32-33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में स्थित है। प्राचीन काल में शिवाड़ का नाम ही शिवालय था। शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अधिकांश समय जलमग्न रहने के कारण अदृश्य ही रहता है।

शिवरात्रि पर यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है तथा प्राणी सब पापों से मुक्त होकर सांसारिक सुखों को भोग कर मोक्ष को पाता है। विज्ञापन ऐसे प्रकट हुए घुश्मेश्वर महादेव श्वेत धवल पाषाण देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्धाज गोत्रीय ब्रहांमण रहते थे,उनके सुदेहा नामक पत्नी थी। संतान सुख से वंचित रहने एवं पड़ोसियों के व्यंग बाण सुनने से व्यथित होकर पति का वंश चलाने हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा के साथ करवाया। घुश्मा,भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी वह प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन-अर्चना करती थी एवं उनका विसर्जन समीप के सरोवर में कर देती थी। आशुतोष की कृपा से घुश्मा ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया तो सुदेहा के हर्ष की सीमा नहीं रही,परंतु बहन घुश्मा के पुत्र के बड़े होने के साथ साथ उसे लगा कि सुधर्मा का उसके प्रति आकर्षण एवं प्रेम कम होता जा रहा है। पुत्र के विवाह के उपरांत ईर्ष्या के कारण उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी एवं शव को तालाब मे फेंक दिया। विज्ञापन प्रात:काल जब घुश्मा की पुत्रवधू ने अपने पति (घुश्मा के पुत्र)की शय्या को रक्त रंजित पाया तो विलाप करती हुई अपनी दोनों सासों को सूचना दी।

विमाता सुदेहा जोर जोर से चीत्कार कर रोने लगी जबकि घुश्मा जो शिव पूजा में लीन थी,निर्विकार भाव से अपने आराध्य को श्रृद्धा सुमन समर्पण करती रही। सुदेहा,सुधर्मा व पुत्रवधू की मार्मिक चीत्कारे,विलाप एवं पुत्र की रक्त रंजित शैय्या भी घुश्मा के भक्तिरत मन में विकार उत्पन नहीं कर सकी। घुश्मा ने सदैव की भांति पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन सरोवर में कर आशुतोष (भगवान शंकर)की स्तुति की तो उसे पीछे से मां-मां की आवाज सुनाई दी जो उसके प्रिय पुत्र की थी। जिसे मृत मानकर पूरा परिवार शोक कर रहा था। विस्मित घुश्मा ने उसे शिव इच्छा-शिव लीला मानकर भोले शंकर का स्मरण किया तब आकाशवाणी हुई की हे घुश्मा तेरी सौत सुदेहा दुष्टा है उसने तेरे पुत्र को मारा है। मैं उसका अभी विनाश करता हूं। परन्तु घुश्मा ने स्तुति की “प्रभु मेरी बहन को मत मारो, उसकी बुद्धि निर्मल कर दो। क्योंकि आपके दर्शन मात्र से पातक नहीं ठहरता, इस समय आपका दर्शन करके उसके पाप भस्म हो जाएं”।

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