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सीहोर में ‘बाल दिवस’ पर भी धूल खा रही है पंडित जवाहरलाल नेहरु की प्रतिमा, दो पूर्व प्रधानमंत्री की प्रतिमाओं में एक का रखरखाव दूसरे की उपेक्षा।

Neemuch headlines November 14, 2024, 12:44 pm Technology

आज बाल दिवस है और इस मौके पर भी सीहोर में बच्चों के प्रिय पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा धूल खा रही है। ये स्थिति अरसे से बनी हुई है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लीसा टॉकीज चौराहे पर स्थापित प्रतिमा की नियमित देखभाल और साफ-सफाई की जा रही है।

यहां जिला मुख्यालय पर बीजेपी के विधायक और बीजेपी के ही नगर पालिका अध्यक्ष है और किसी की भी निगाह पंडित नेहरु की प्रतिमा पर नहीं पड़ी है। इस असमान रवैये को लेकर शहर में चर्चाएं भी हैं और नाराजगी भी। स्थानीय लोगों का कहना है कि कम से कम बाल दिवस जैसे खास दिन पर को पंडित नेहरू की प्रतिमा की ओर ध्यान देना चाहिए। आज 14 नवंबर है और बच्चों के बीच लोकप्रिय ‘चाचा नेहरू’ के जन्मदिन को देशभर में बाल दिवस के रूप में माया जा रहा है। लेकिन सीहोर में उनकी प्रतिमा आज भी उपेक्षित है। पंडित नेहरू की प्रतिमा की उपेक्षा दरअसल सीहोर में दो पूर्व प्रधानमंत्री की प्रतिमा लगी है। एक प्रतिमा शहर के लीसा टॉकीज चौराहा पर लगी है,

जो बीजेपी के लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की है, जबकि दूसरी प्रतिमा भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू है जो शहर के बस स्टैंड स्थित पार्क में लगी है। यहां वाजपेयी जी की प्रतिमा की तो देखरेख होती है लेकिन विडंबना है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा की बरसों से उपेक्षा हो रही है। न तो उसकी साफ़ सफ़ाई होती है न ही आसपास के इलाके की ओर ध्यान दिया जाता है। आज किया जा रहा विजयपुर और बुधनी विधानसभा में उपचुनाव के लिए मतदान, मुख्यमंत्री समेत कई बड़े नेताओं ने की मतदाताओं से अपील बता दें कि जिला मुख्यालय में बीजेपी के विधायक हैं और नगर पालिका अध्यक्ष भी बीजेपी से ही हैं। ऐसे में लोगों का मानना है कि दलगत राजनीति के कारण पंडित नेहरू की प्रतिमा की उपेक्षा की जा रही है। हाल ये है कि बाल दिवस पर भी इस प्रतिमा पर किसी की नज़र नहीं पड़ी। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि हम अपने पुराने नेताओं को किस तरह याद रखते हैं और पार्टी के खांचे में बांटकर देखते हैं। कम से कम आज के दिन तो जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा पर ध्यान दिया जाना था। लेकिन बदलते दौर में प्रतिमाएं भी राजनीति का शिकार होने लगी हैं।

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