नीमच । मनुष्य जीवन में प्रतिकूल स्थिति आने पर मनुष्य को क्रोध आ जाता है। तो संसार के प्रत्येक मनुष्य को क्रोध की स्थिति बनने पर उस स्थान से दुर हटकर धैर्य पूर्वक शांत रहना चाहिए और उस गलती के सुधार र के के लिए एक दिन बाद प्रयास करना चाहिए। क्रोध जिस कारण से आता है। उस कारण का निराकरण करने का प्रयास दूसरे दिन करें तो क्रोध कभी आएगा ही नहीं। क्रोध के त्याग बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता है। यह बात मुनि सुप्रभ सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री दिगंबर जैन मंदिर नीमच में मंगलाष्टक अभिषेक शांति धारा घट यात्रा ध्वजारोहण कार्यक्रम में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारा सम्मान होने पर ज्यादा प्रसन्न नहीं होना चाहिए उसे सामान्य स्थिति में ही समभाव में रहना चाहिए। और यदि हमारा अपमान होने या विपरीत परिस्थिति आ जाए तो भी क्रोध नहीं करना चाहिए। धैर्य पूर्वक शांत चित रहेंगे तो क्रोध पर नियंत्रण किया जा सकता है। महान साधु संतों द्वारा समय- समय पर नागरिकों के सुझाव पर अपना रास्ता बदल लेते थे लेकिन कुछ समय बाद उस संत की विनम्रता धैर्यता को देखकर दुश्मन भी सरल बन कर उन्हें वापस वही सम्मान देते थे। इसलिए यदि हम साधु संतों के विनम्र व्यवहार को जीवन में आत्मसात करें तो हमारे सामने भी क्रोध और विवाद की स्थिति नहीं बनेगी। यदि हम दूध को गर्म करते हैं तो वह उबलने के बाद उफान पर भी आता है लेकिन यदि हम पानी को उबलते हैं तो वह गर्म होकर भाप बनकर उड़ जाता है लेकिन उफान पर नहीं आता है इसलिए हमें हमारे क्रोध को नहीं कर उफान पर नहीं लाना है उसे पानी की तरह भाप बनाकर उड़ा देना है तो हमारे सामने आने वाले सभी विवाद शांत हो सकते हैं।
पहले हमें स्वयं शांत होने की कला को सिखना होगा लेकिन संसार में लोग दूसरों को शांत करने में ज्यादा ऊर्जा नष्ट कर देते हैं। यदि किसी व्यक्ति को क्रोध आ रहा है तो हम उसे अकेला ही छोड़ दें तो उसका क्रोध धीरे-धीरे कम हो जाएगा। संसार में लोग धन दौलत और सांसारिक पदों को प्राप्त करने के लिए रात दिन परिश्रम के साथ दौड़ भाग कर रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें शांति की सफलता नहीं मिल रही है जबकि वास्तव में मनुष्य को शांति के लिए अद्भुत पद की दौड़ में दौड़ना चाहिए लेकिन इस दौड़ में कोई नहीं दौड़ता है चिंतन का विषय है मनुष्य अपनी अंतरात्मा में रहेगा तो उसे कभी क्रोध नहीं आएगा मनुष्य जिस प्रकार अपने घर में सुरक्षित रहता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य अपनी आत्मा में संयमित और शांत रहता है। गुरु हमें संसार की कठिनाइयों से बचने का उपाय बता सकता है मोक्ष मार्ग पर चलना तो हमें स्वयं ही होगा तभी हमें जीवन में सफलता मिलेगी और आत्म कल्याण हो सकता है। गुरु आज्ञा को जीवन में आत्मसात कर आचरण में लाना होगा तभी हमें आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है और जीवन में मुक्ति मिल सकती है।
दिगंबर जैन समाज. के अध्यक्ष विजय जैन विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन जैन विनायका ने बताया कि आचार्य वंदना आरती के साथ हुई। सुबह 6:45 बजे मंगलाष्टक विधान से प्रारंभ हुआ। विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी भैया जी भावेश जैन ने गणधर वलय विधान करवाया। और संगीतकार प्रथम जैन दमोह ने विभिन्न भजन प्रस्तुत किये। गणधर गंणधर वलय विधान में समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने ने कहा कि क्रोध के त्याग के लिए स्वयं की आत्मा में शांत होकर तपस्या करनी चाहिए तो क्रोध का वास्तविक प्रभाव हमें पता लग सकता है।